एक टुकड़ा उम्मीद – मंजुला

“मानव बरामदे में उकडू बैठा था। आँखों में बदलियां उमड़ घुमड़ रही थीं। रात बच्चों से प्राॅमिस करके सोया था कि सुबह वो उनके लिए रोटी ले आयेगा। सुबह के साढ़े आठ बज रहे थे पर उसे कुछ सूझ नहीं रहा था कि करे तो क्या करे। जहाँ वो काम करता था उस फैक्ट्री पर ताला पड़ चुका था। घर में राशन पानी नहीं था। उधार देने को कोई तैयार ना था। ऊपर से ये बारिश भी थमने का नाम नहीं ले रही थी।”

“खुद तो वो और रमा जैसे तैसे गुजारा कर भी लें। पर बच्चों को कैसे समझाये।”

“बच्चे दो बार रमा से पूछ चुके थे। माँ खाना कब बनेगा?

“जब बारिश बंद होगी। जब बादलों के पीछे से सूरज पूरा निकलेगा। तब ही तुम्हारे बाबा काम पर जायेंगे और लौट कर रोटी लायेंगे। रमा उन्हें उम्मीद भरी कहानी सुना सुनाकर बहला रही थी। मानव से नज़रे मिलते ही रमा की आँखें भरभरा आती हैं।”

“बच्चे आस लगाये एकटक आसमान की तरफ देख रहे थे। एकाएक बारिश बंद हो जाती है और बादलों की ओट से सूरज झाँकता है।”

“बाबा सूरज…बाबा सूरज, “कहते राजू और बबलू खुशी से नाचने लगते है।”

“अब तो रमा के पास कोई बहाना भी नहीं बचा था। हताशा से वो मानव की तरफ देखती है। मानव अपना सिर घुटनों में छिपा लेता है।”



“बच्चे मानव का कंधा हिलाते हुए कहते हैं, “बाबा.. उठो ना बाबा..देखो बारिश बंद हो गई। मानव पास खड़े बबलू को गोद में बैठा लेता है। बच्चों के सवाल का क्या जवाब दे सोचते हुए वो आसमान की तरफ देखता है और मन ही मन बुदबुदाता है, अब तू ही कोई रास्ता सुझा भगवान। क्या करूँ मैं? सोचते हुए आँखों से आसूँ की एक बूँद छलक कर मानव के गाल पर ढुलक जाती है।

“तभी धूप का एक टुकड़ा नन्ही चिड़िया की तरह फुदक कर फूलों पर आ बैठता है। मानव एकटक उस धूप के टुकड़े को देखता है। फिर उसके होंठो पर एक मुस्कान तैर जाती है। वो नन्हे बबलू के रूखे गालों को चूमते हुए कहता है, “बाबा अपने राजू और बबलू के लिए रोटी जरूर लायेंगे।”

“सच बाबा, “पास खड़ा राजू चहक कर पूछता है।”

“मानव प्यार से राजू के बालों को सहलाते हुए कहता है, “हाँ बेटा।

“बबलू गोल गोल आँखें घुमाते हुए कहता है, “बाबा, आधी रोटी से पेट नहीं भरता। मैं पूरी खाऊँगा।”

“हाँ मेरे बच्चे! कहते हुए मानव बबलू को सीने से चिपका लेता है।”

“रमा प्रश्नभरी नज़रों से मानव को देख रही थी। मानव राजू से कहता है, “जा बेटा अंदर से एक टोकरी ले आ।”

“राजू दौड़कर टोकरी ले आता है। फिर मानव क्यारी और पेड़ से सारे फूल तोड़ लेता है। मानव को फूल तोड़ते देख रमा समझ जाती है और वो भी घर के बाहर लगे पेड़ से चौडे़ पत्ते तोड़ लाती है।”

“मानव इशारे से पूछता है, पत्ते किस लिए?

“रमा मुस्कुराकर कहती है, “फूल रखने के लिए दोने नहीं चाहिए क्या..?

“रमा और मानव दोनों मुस्कुरा देते हैं।”

“धूप उम्मीद की चिड़िया की तरह बच्चों के आगे पीछे आँगन में चहक रही थी।”

“दोने बनाते हुए रमा हौले हौले गुनगुनाती है, “ओ पालनहारे..निर्गुण और न्यारे, तुमरे बिन हमरा कौनो नाहीं..

#उम्मीद 

-मंजुला

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