एक थी नन्दा – डॉ उर्मिला शर्मा

नंदा इक्कीस वर्ष की होने को आई थी। पांच बरस से घरवाले उसके ब्याह के लिये लड़का देख रहे थे। पर जहां भी बात आगे बढ़ती और नंदा को देखने के बाद नापसन्द कर दी जाती थी। निहायत ही सीधे स्वभाव औऱ उसके छोटे कद और ऊंची दांत के कारण सभी उसे नकार देते थे। कामकाज करने व सेवाभाव में तो वह अद्वितीय थी। एक लंबे अति साधारण शहरी संयुक्त परिवार से वह थी। सबको खाना खिलाने के बाद ही वह स्वयं खाना खाती थी। खाने में कोई व्यंजन न बचा हो तब भी वह कोई शिकायत न करती थी। सहनशीलता की मिसाल थी वह। उसके पिता राजमिस्त्री का काम करते थे। दो भाई जिन्हें पढ़ने लिखने के से कोई मतलब न था। परिवार में सम्पत्ति विभाजन के बाद उनके हिस्से भी अच्छी- खासी शहर में जमीन के रूप में सम्पत्ति आयी। शराब की बुरी लत के कारण उनका पारिवारिक स्तर गिरता चला गया जबकि उसके चाचा – ताऊ का स्तर शिक्षा के कारण निरन्तर ऊंचा होता चला गया। उसके नकारा भाई भी मनमर्जी पिता के पेशे को अपनाते रहे। कमी होने पे जमीन का टुकड़ा बेच देते थे।

                      तभी जैसे – तैसे एक एक जगह नंदा की शादी तय हई। अति साधारण परिवार था। ससुराल में कुछ दिन तो ठीक रहा किंतु उसके बाद उसके शक्ल और अक्ल को लेकर मीन- मेख निकलना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे ये सब बढ़ता ही चला गया। उसे बदशक्ल और कमअक्ल कहा जाने लगा। पति शराब पीकर उसे पिटता था। कदम- कदम पर उसे प्रताड़ित किया जाने लगा। इसी तरह तीन साल निकल गए। इस दौरान एक बेटी का जन्म हुआ। प्रसव के दौरान कमजोरी व सही देखभाल के अभाव में किसी तरह मौत के मुख से वापस निकली थी। बेटी के जन्म के बाद तो उसपर अत्याचार और बढ़ गया। नन्दा को ससुराल वाले यही चाहते थे कि उसे इतना सताओ की वह घर छोड़कर स्वयं चली जाए। नहीं तो वो लोग निकाल ही देंगे। जुल्म सहते- सहते नन्दा बीमार पड़ गयी। उन्होंने नन्दा के यहां खबर भेजा कि आकर उसे ले जाएं। उसके पिता उसे लिवा लाएं। अब न ससुराल वाले उसे पुनः बुलाने  वाले थे और न ही नन्दा जाने के लिए तैयार थी। नन्दा मायके में ही रहने लगी। बेटी उसकी चार वर्ष की हो गयी थी। नन्दा के मां- बाप ने सोचा कि इस तरह नन्दा का जीवन कैसे चलेगा। उनके नहीं रहने पर क्या होगा। दोनों बेटे भी काबिल न निकले। बड़े बेटे ने विवाह न करने की ठानी थी तथा दूसरा  नन्दा से छोटा था। अब वो दुबारा से नन्दा का ब्याह करना चाहते थे। तभी उसकी मां लंबे जॉन्डिस से अचानक चल बसीं।




                     कुछ दिनों बाद उसके पिता की नजर में एक आदमी मिला जो उन्हीं के साथ राजमिस्त्री का काम करता था। कुछ साल पहले उसकी पत्नी का देहांत हो गया था। उसके तीन बच्चे थे जिनकी उम्र पांच से दस वर्ष के मध्य थी। नन्दा के पिता ने विवाह की बात चलाई तो वह तैयार तो हुआ लेकिन एक शर्त पर। शर्त यह थी कि वह नन्दा को अपनाएगा लेकिन उसकी बेटी को नहीं। नन्दा इस बात के लिए भला कैसे मानती की वह आदमी अपने तीन- तीन बच्चों की देखभाल के लिए उससे विवाह करने को तैयार है किंतु उसकी एक बच्ची को वह बेधड़क न स्वीकारने की बात करता है। लेकिन पिता व भाइयों की जिद के आगे उसे हार माननी पड़ी। हाँ ! उन्होंने उसकी बेटी को एक मिशनरी संस्था में हमेशा के लिए छोड़ दिया। अभागी नन्दा को अपने कलेजे के टुकड़े को इस तरह अलग करना पड़ा। नन्दा नए घर में पति के तीनों बच्चों को मन से अपना ली। उन्हें ही अपनी बच्ची का रूप मानकर उनपर प्यार उड़ेलती रही। दो बेटियां और एक बेटा था। छोटी बेटी तो नन्दा की बेटी के हमउम्र ही निकली। उन्ही बच्चों पर वह अपना सारा ममत्व लुटाने लगी। उसने स्वयं को  पूरी तरह बच्चों की देखभाल व पढ़ाई- लिखाई में खपा दिया। कुछ वर्षों बाद नन्दा को एक पुत्र भी हुआ। परन्तु वह बच्चों की परवरिश में जरा भी भेदभाव न बरती। बेटियों की पढ़ाई में सहयोग वह अपने चचेरे भाई से लेती थी जो स्कूल शिक्षक थे। बेटियों को स्नातक कराया। सिलाई- बुनाई तथा हस्तकला की कई चीजें सिखाई। उसका कहना था कि कम पढ़े- लिखे होने की वजह से जो दुर्दशा उसकी हुई वह अपने बच्चों के साथ न होने देगी। बच्चों के लिये उसका ममत्व देख कोई भी उसे उन बच्चों की सौतेली मां न समझता था।

       बेटियों की शादी भी उसने खूब अच्छे से की। उसके चचेरे भाई यथासंभव उसकी मदद करते थे किंतु उसके सगे भाई नहीं। उसके मायके का शहर में जमीन होने से समय के साथ उसकी व्यावसायिक मूल्य बढ़ गया था। भाईयों ने उसे बिल्डर को देकर अपार्टमेंट बनवा लिया। और अपना शेयर लेकर नन्दा के नालायक भाई मजे में ज़िंदगी जीते हैं। अभावों में जी रही बहन के लिये उनके मन में कोई संवेदना नहीं है। हो भी कैसे …हमारे पितृसत्तात्मक समाज में बेटों के नालायक होने पर भी संपत्ति का वारिस उन्हें ही समझा जाता है। बेटियां तो बोझ होती हैं उसे अपने ऊपर से हटाकर कहीं और फेंक दिया जाता है। वो जिएं या मरें अपनी किस्मत से।

— डॉ उर्मिला शर्मा।

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