एक तरफ ससुराल एक तरफ माएका

एक बेटी के लिए जितना ससुराल प्यारा होता है उतना ही मायका भी लेकिन जीवन मे कई बार ऐसा भी समय आता है जब उसे एक साथ दोनों तरफ की जिम्मेदारियाँ निभानी होती है बेटी को समझ नहीं आता है की वह बहू का धर्म निभाए या फिर बेटी का क्योंकि एक तरफ ससुराल होता है एक तरफ मायका। इस कहानी के नायिका मीरा कैसे इस परिस्थिति को संभालती है जरूर पढ़िये। 

मीरा की  सास-ससुर  की शादी की आज 30 वीं वर्षगांठ है। इस वजह से मीरा पूरे घर को सजाने सँवारने में लगी हुई थी।  उसे पार्टी करना बहुत पसंद था।  शादी के बाद मीरा का अपने सास-ससुर की  वर्षगांठ मनाने का पहला अवसर था और वह चाहती थी कि इस  अवसर को अपने सास-ससुर के लिए यादगार बना दे। इस वजह से वह केक भी खुद बना रही थी।  मीरा केक बहुत ही स्वादिष्ट और लजीज बनाती थी, जब वह मायके में होती थी, अगर आस-पास किसी भी बच्चे का  जन्मदिन मनाया जाता था तो वहाँ बच्चे आते थे, मीरा दीदी चलो ना आज मेरा केक बना दो  और मीरा को भी यह सब करने में भी बहुत आनंद  आता था।

वर्षगांठ की तैयारियां करते-करते कब दिन बीत गया मीरा को पता भी नहीं चला।  शाम होने को आ गई, सारे रिश्तेदार आने लगे। मीरा  ने अपने पति रोहित से अपने सास-ससुर के लिए डिजाइनर ड्रेस मंगवाए थे।  उसको  पहन कर जैसे ही मिस्टर शर्मा और उनकी वाइफ आए, ऐसा लगा  था उनकी उम्र 30 वर्ष पीछे चली गई हो और फिर से जवान हो गए हों । सभी  मेहमानों ने इस डिजाइनर  ड्रेस के लिए  शर्मा दंपति को बधाई दी और कहा, “वाह मिस्टर शर्मा कहां से खरीदा है।  आप तो बिलकुल नवविवाहित जोड़े लग रहे हैं ।”



मिस्टर शर्मा ने जवाब दिया भाई अब हमारी कहां उम्र है यह सब खरीदने की।  यह सब तो हमारी लाडली बहू मीरा ने खरीदा है। हम तो ऐसे ही अपनी वर्षगांठ मना लेते थे लेकिन बहू ने जिद किया कि नहीं इस बार आप की वर्षगांठ धूमधाम से मनाई जाएगी।  फिर हमने भी सोचा कि बहू का इतना मन है तो चलो इसमें क्या करना है मना ही लिया जाए।  आप सब शामिल हुए हमारी शादी कि वर्षगांठ में इसके लिए आप लोगों को हार्दिक धन्यवाद।  मिस्टर शर्मा ने सब लोगों को संबोधित कर कहा।

केक काटने के बाद सब लोग पार्टी में मशगूल  हो गए।  डीजे भी लगा हुआ था कोई डांस कर रहा था कोई खाने खाने का आनंद ले रहा था। लेकिन मीरा कहीं नजर नहीं आ रही थी।  उसका  पति रोहित भी उसे ढूंढ रहा था।  आप लोगों ने मीरा को कहीं देखा है वह नजर नहीं आ रही  है। अचानक से पार्टी मे शांती छा गई।  क्योंकि सब मीरा को ढूंढने में लग गए। आखिर मीरा कहां गई? तभी किसी ने आवाज लगाई मीरा तो छत पर बेहोश पड़ी हुई है। सब दौड़कर छत के ऊपर गए, वहां, सचमुच में मीरा  बेहोश पड़ी हुई थी, जल्दी से रोहित मीरा को  कार  में बैठाकर डॉक्टर के पास ले गया। डॉक्टर ने जांच करने के बाद  रोहित को अपने पास बुलायी और बोली रोहित चिंता  की कोई बात नहीं है बल्कि अब तुम जाकर सबसे पहले लड्डू लेकर आओ तुम बाप बनने वाले हो । 

रोहित बहुत खुश हुआ और डॉक्टर से बोला क्या मैं मीरा से मिल सकता हूं ? डॉक्टर ने कहा, “हां हां क्यों नहीं तुम्हारी पत्नी है।” रोहित जैसे ही मीरा के पास गया मीरा बहुत खुश थी रोहित भी बहुत खुश था। रोहित ने मीरा को डांटते हुये कहा  कि तुम छत पर क्या करने गई थी और किसी को कुछ बताया क्यों नहीं।  मीरा बोली  “रोहित मुझे शाम से ही पेट में दर्द हो रहा था लेकिन मैं किसी को यह बात बता कर पार्टी के  रंग में भंग नहीं करना चाहती थी। इस वजह से मैंने सोचा कि छत पर जाकर आराम करते हुये  पार्टी इंजॉय भी करूंगी और थोड़ी देर बाद पेट दर्द ठीक हो जाएगा तब तक अचानक से पता नहीं कब चक्कर आ गया मुझे पता ही नहीं चला। रोहित बोला अब तुम्हें अपने आपको बहुत ही केयर करना पड़ेगा क्योंकि तुम अब मां बनने वाली हो ।  थोड़ी देर बाद मीरा को रोहित गाड़ी में बैठा कर घर ले गया। घर आकर सबको यह खुशखबरी सुनाई। सब बहुत खुश हुए।

सारे रिश्तेदार अभी वहीं  रुके हुए थे सब  ने मीरा को रेस्ट करने की सलाह दी और धीरे-धीरे सारे मेहमान विदा हो गए। अगले दिन से मीरा  फिर से अपने घर को संभाल लिया था।  ऐसा लग रहा था कि मीरा को अब कुछ हुआ ही नहीं है लेकिन रोहित उसे रोज समझाता था कि  तुम्हें अब आराम की जरूरत है। इतना काम मत किया करो। तुम कहो तो कोई  नौकरानी रख दूं।

मीरा बोली, “अरे नहीं रोहित तुम भी बहुत जल्दी घबरा जाते हो इतना भी कौन सा घर मे  ज्यादा काम है जो नौकरानी रखने की जरूरत है।  बस खाना ही तो बनाना रहता है और जब जरूरत होगी तो नौकरानी रख लेंगे फिर मम्मी जी भी तो हैं  ही। एक दिन मीरा और उसकी सास बैठी हुई थी तभी उसकी सास ने कहा, “देखो बहू दो-तीन महीने में तुम्हारे डिलीवरी का डेट आने वाला है और तुम्हें तो पता है कि मेरे कमर में दर्द रहता है । 



उस वजह से  ज्यादा देर खड़ा भी नहीं हो पाती हूँ। देखो बहू मैं तुम्हारी कोई हेल्प तो कर नहीं पाऊंगी और फिर नौकरानीयों पर भी उतना मुझे भरोसा नहीं है। अपने घर के चिराग के लिए मैं कोई रिस्क नहीं लेना चाहती हूं । मैं तुम्हें यही सलाह दूंगी कि तुम जब तक डिलीवरी नहीं हो तब तक अपने मायके चली जाओ रोहित के पापा का भी यही ख्याल है।”

मीरा भी कई दिनों से यह सोच ही  रही थी।  क्योंकि उससे भी अब काम हो नहीं रहा था हमेशा शरीर में दर्द रहता था।  लेकिन वह किसी से कह नहीं रही थी  । मीरा की सास ने जैसे ही कहा कि बहु तुम मायके चली जाओ मीरा ने उसी समय अपने मां को फोन कर अपने पापा के साथ  ले जाने के लिए बोली। मीरा की  मां ने कहा, “हां बेटी मैं भी सोच ही रही थी कि तुम को यहीं बुला लूँ  लेकिन बेटी तुम्हारे पापा भी आजकल बीमार चल रहे हैं तुम्हें तो पता ही है कि उनका जब से हार्ट  का ऑपरेशन हुआ है। 

तब से वह ज्यादा कुछ कर नहीं पाते हैं और फिर उन्हें डॉक्टर ने ज्यादा इधर-उधर आने जाने के लिए भी मना किया है। तुम्हारा भाई भी कल ही वापस अपनी फैमिली को लेकर बेंगलुरु जा रहा है। तुम ऐसा करो दामाद जी को लेकर क्यों नहीं आ जाती हो। मीरा बोली , “ठीक है वह  शाम को जब आते हैं तो मैं उनसे बात करती हूं।” शाम को जब रोहित ऑफिस से घर आया तो मीरा ने अपने मायके जाने की बात कही।

लेकिन रोहित ने इस बात से इनकार कर दिया,“वहां जाकर क्या करोगी वहां तुमको कोई देखभाल करने वाला नहीं है, कुछ हो जाएगा तो कौन देखेगा।  तुम्हें तो पता ही है कि तुम्हारे भैया भी अब नहीं है और पापा भी बीमार रहते हैं।  अगर यहां पर कुछ बात हुई तो कम से कम हम हैं पापा हैं। लेकिन मीरा ने रोहित की बात काटते हुए कहा कि तुम बहुत जल्दी घबड़ा जाते हो।  क्या हो जाएगा मुझे? तुम्हें पता है कि अब मुझसे कोई भी काम नहीं होता है।

तभी रोहित की मां ने भी रोहित से कहा, “हां बेटा बहू को कुछ देने के लिए  मायके भेज देने में ही भलाई है।  क्योंकि हम भी नहीं चाहते हैं कि कोई रिस्क हो।” जब सब का मन है  तो रोहित भी क्या कर सकता था रोहित बोला ठीक है एक-दो दिन रुको संडे के दिन सुबह में मैं तुम्हें तुम्हारे मायके पहुंचा दूंगा। 

संडे को मीरा अपने मायके चली आई ।अब मायके मे उसकी मां उसको कुछ भी काम नहीं करने दे रही थी।  जबकि खुद मीरा की मां के पैरों में दर्द रहता  था लेकिन वो अपनी बेटी को एक भी काम नहीं करने देती थी।  सच ही कहा गया है मां तो मां ही होती है सास भले ही कितना ही मां बनने का नाटक कर ले लेकिन वह कभी नहीं बन सकती है। मीरा की सास ने मीरा के मायके जाते ही अपनी बेटी को बुला लिया था । 

अब तो मीरा के सास को लगता ही नहीं था कि उनको शरीर में कोई दर्द भी है या बीमार भी हैं।  अपनी बेटी के बच्चों के साथ दिन भर खेलती रहती थी जो उनकी बेटी को खाना पसंद था सब कुछ बना कर खिलाती थी।



सच बात है जब औरत सास की भूमिका में होती है तो वह अलग रूप में होती है और वह जब मां के भूमिका में होती है तो वह अलग नजर आती है अभी मीरा की सास अपने मां की भूमिका में थीं।  

जब मीरा को करने का समय था तो उसको यह बोल कर मायके भेज दिया था की वह बीमार है उससे नहीं हो पाएगा और मीरा जैसे ही मायके पहुंची अपनी बेटी को बुला लिया था। इधर मीरा भी अपने मम्मी के साथ अच्छे से रह रही थी  क्योंकि यहां घर का कोई भी काम नहीं करना पड़ता था धीरे-धीरे डिलीवरी का डेट नजदीक आने लगा।  मीरा एक छोटे शहर में रहती थी , वहां पर कोई ढंग का हॉस्पिटल नहीं था । तो रोहित ने एक दिन फोन करके कहा कि मीरा मैं तुम्हें लेने आ रहा हूं क्योंकि मैं अब कोई रिस्क नहीं लेना चाहता हूं। मीरा की मां भी अपने ऊपर कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी।  अगर कुछ भी हो जाएगा तो ससुराल वाले उन्हीं पर इल्जाम लगाएंगे कि हमने तो बोला था मीरा को ले जाने के लिए आप ने ही नहीं भेजा था। इसलिए उन्होंने कहा  कि हां हां मीरा तुम अपने ससुराल चली जाओ फिर कोई दिक्कत हो तो आ जाना यहां पर।

रोहित मीरा को लेकर अपने घर वापस आ गया था।  अब मीरा के आखिरी दिन चल रहे थे लेकिन यहां आते हुए इस बार मीरा ने अपने सासू मां के व्यवहार में बदलाव महसूस किया।  मीरा दिन भर देखती थी कि सासु माँ कैसे अपनी बेटी और उसके बच्चों के पीछे लगी रहती थी उनसे तो एक बार बस शिष्टाचार में हाल-चाल पूछ लिया जाता था।  लेकिन मीरा कर भी क्या सकती थी।

डिलीवरी डेट के दो-तीन दिन पहले ही रोहित ने मीरा को हॉस्पिटल में भर्ती करवा दिया था।  मीरा ने एक सुंदर सा गोरा चिट्टा लड़के को जन्म दिया जो  बिल्कुल ही रोहित का फोटोकॉपी लग रहा था।  सब बहुत खुश थे कुछ  दिनों के बाद हॉस्पिटल से छुट्टी होने के बाद मीरा वापस अपने घर आ गई थी। मीरा सोच रही थी कि चलो मेरी ननद यहां पर है कुछ दिन इनको और रोक लूंगी तब तक मेरी हेल्प हो जाएगी।

लेकिन यह क्या उसकी ननद तो अगले दिन ही अपने ससुराल जाने के लिए अपने हस्बैंड को बुला लिया था उसने सोचा  कि यहां रहेगी तो उसे ही सारा काम करना पड़ेगा भाभी की सेवा भी करना पड़ेगा अब तक तो अकेले रहती थी तो मां से जो मर्जी करवाती रहती थी। जब यह बात मीरा को पता चला कि उसकी ननद आज जाने वाली है तो उसने रोहित से बोला कि अपनी बहन को कुछ दिनों के लिए  रोक क्यों नहीं लेते हो।  

रोहित ने अपनी बहन से कहा, “टीना कुछ दिनों के लिए रुक क्यों नहीं जाती हो तुम्हारी भाभी भी तब तक घर का काम करने लायक हो जाएगी फिर तुम चली जाना। टीना ने  तुरंत जवाब दिया, “भैया तुम्हें तो पता ही है कि कितने दिनों से हम लोग यहीं पर हैं वह तो मां अकेले थी तो हम लोग आ गए थे।  बच्चों की पढ़ाई कितने दिनों से छूट रही  है फिर आपको तो पता ही है कि आपके जीजाजी भी इतने दिनों से होटल का खाना खा रहे हैं ।

रोहित समझ गया था कि उसकी बहन यहां रहना नहीं चाहती थी इसलिए उसने आगे कुछ नहीं बोला। अगले दिन ही टीना वहां से अपने  ससुराल चली गई थी। अब मीरा की सास फिर  से अपने दर्द का बहाना बनाना शुरू कर दिया था, जब देखो कराहती रहती  थी ऐसा लगता था कि कितने दिनों से  बीमार है। मीरा सब समझ रही थी जब मुझे करने की बारी आई तो यह बीमार हो गई और जब इनकी बेटी यहां पर इतने दिनों से थी तब तो यह एक बार भी बीमार नहीं पड़ी।

रोहित ने  मजबूरी में 1 सप्ताह के लिए ऑफिस से छुट्टी ले लिया था और मीरा की जितना हो सके दिनभर सेवा करता था।  एक दिन जब सब लोग बैठे हुए थे तो मीरा की  सास ने रोहित से कहा कि बेटा क्या तुम अब मीरा की सेवा करने के लिए अपनी नौकरी छोड़ दोगे।  1 सप्ताह में तो तुम्हारा बच्चा बड़ा हो नहीं जाएगा तुम ऐसा क्यों नहीं करते कुछ दिनों के लिए मीरा को उसके मायके ही  क्यों नहीं छोड़ आते।



रोहित सोचा माँ  भी ठीक कह रही है नौकरी से छुट्टी लेकर कब तक सेवा करता रहूंगा। जब बच्चा थोड़ा बड़ा हो जाएगा तो मैं मीरा को वापस लेकर आ जाऊंगा।  लेकिन इस बार मीरा नहीं जाना चाहती थी उसने कहा  कि रोहित तुम्हें तो पता ही है कि माँ भी बीमार रहती है।  वह भी कोई ज्यादा ठीक तो है नहीं,  पापा को ही संभालते-संभालते उनका पूरा दिन बीत जाता है अगर ऐसे में मैं चली जाऊं तो मेरे और बच्चे को कैसे कर पाएंगी।

यही हम कोई नौकरानी रख लेते हैं ।  रोहित बोला हां तुम सही कह रही हो हम एक नौकरानी ही रख लेते हैं। तभी मीरा की सास बोली, बहू नौकरानी रखना  कोई बड़ी बात नहीं है लेकिन जो  सेवा तुम्हारी मां करें देंगी एक नौकरानी कभी नहीं कर सकती है।”  चाहे कुछ भी हो जाए मीरा इस बार  ठान ली थी कि वह अपने मायके नहीं जाएगी।  

रोहित बोला कि ठीक है मैं एक नौकरानी की बात करता हूं।  अगले दिन रोहित ने एक नौकरानी को किसी कंसल्टेंसी कंपनी के द्वारा बात करके लाया था।  अभी नौकरानी को आए हुए एक सप्ताह भी  नहीं बिता था कि मीरा की सास उसे डांटना शुरू कर दी थी।  तुम्हें काम करना नहीं आता है, तुम्हें पोछा लगाना नहीं आता है। कुछ दिन मे ही  वो नौकरानी चली गई।  मीरा की  सास की ऐसी हरकतों की वजह से अब कोई भी नौकरानी इस घर में काम करने को तैयार नहीं थी।

जो भी नौकरानी रोहित खोज कर लाता था।  रोहित की मां उसे डांट कर भगा देती थी। मीरा समझ गई थी कि अब  मायके जाने के अलावा उसके पास कोई विकल्प नहीं है।  अगले दिन रोहित, मीरा को उसके मायके पहुंचा दिया था। मीरा अपने मायके जाकर अपनी मां को सब कुछ बताया कि मुझे लगता था कि मेरी सासू मां दुनिया की सबसे अच्छी सासु मां है, लेकिन मुझे यह नहीं पता था।  

सासु माँ तो सिर्फ सास ही होती है बहू के लिए कभी भी मां नहीं बन सकती है। मीरा की मां ने मीरा को समझाया।  नहीं बेटा ऐसी बातें नहीं करते हैं वह तुमसे बड़ी हैं । तुम्हें तो पता ही है कि बुढ़ापा में आदमी चिड़-चिड़ा हो जाता है और फिर तुम उस घर की बहू हो जो भी करना है तुम्हें   ही तो करना है। रोहित का कोई और भाई तो है नहीं जो उन्हें करेगा। 

 

मीरा ने कहा,  माँ मैं यह नहीं कह रही हूं कि मैं उनको सेवा नहीं करूंगी लेकिन उनको भी तो ऐसा नहीं करना चाहिए।  मीरा की मां ने बोला, “कोई नहीं बेटी इसी बहाने तू मेरे पास आ गई हो यही कम है क्या? धीरे-धीरे समय गुजर गया और मीरा का बच्चा 6 महीने का हो गया।  रोहित मीरा को वापस अपने घर लेकर आ गया था।  मीरा भी अब धीरे-धीरे स्वस्थ हो गई थी और घर का सारा काम करने लगी थी।

एक दिन अचानक मीरा के पड़ोसी वर्मा अंकल का फोन आया कि बेटा जल्दी से तुम सिटी हॉस्पिटल पहुंच जाओ।  तुम्हारे पापा का दुबारा से हार्ट अटैक आया हुआ है हम लोग उनको लेकर हॉस्पिटल में ही आए हुए हैं।  मीरा बहुत परेशान हो गई थी।  क्योंकि उसका भाई भी बंगलुरु रहता था उसे भी आने में कम से कम 1 दिन तो लग ही जाएगा।  मीरा ने जल्दी से रोहित को फोन किया  और उसे मायके जाने की बात कही।

रोहित मीरा को बहुत मानता था।  उसने बोला ठीक है तुम जल्दी से तैयार हो जाओ मैं ऑफिस से आ ही रहा हूं।  रोहित जल्दी से वापस आया और मीरा को सीधे हॉस्पिटल लेकर गया।  वहां जाने के बाद पता चला कि मामूली सा अटैक आया था।  कुछ हुआ नहीं है एक दिन में ही मीरा के पापा को हॉस्पिटल से छुट्टी मिल गई थी। रोहित से  मीरा ने कहा कि रोहित तुम वापस चले जाओ मैं अभी कुछ दिन तक मम्मी के पास ही रहूंगी क्योंकि तुम्हें पता ही है कि पापा  की अभी तबीयत ठीक नहीं है।



रोहित बोला, “ठीक है मीरा तुम जितना दिन चाहो रह लो।” रोहित जैसे ही अपने घर पहुंचा उसकी मां ने पूछा कि मीरा कहां है तो रोहित ने बताया कि मीरा  का मन था अपने मायके में ही रहने का इसलिए मैंने उसे वहीं पर छोड़ दिया। 

तभी मीरा की मां बोली वाह बेटा क्या बात है आजकल शादी होते ही बेटे भी बदल जाते हैं, बेटे को अपनी मां की चिंता नहीं है बल्कि अपने सास-ससुर की चिंता है। तुम्हें यह  नहीं दिख रहा है कि तुम्हारे मां-बाप बीमार हैं।  इनको कौन करेगा और अपने सास-ससुर की इतनी चिंता हो रही है। रोहित बोला, “नहीं माँ मुझे तुम्हारी भी उतनी चिंता है जितना उन लोगों की है।”  

आपको तो पता ही है कि जब-जब मीरा को जरूरत पड़ी थी उसके मम्मी-पापा हमेशा मीरा का ख्याल रखा। अब  अगर मीरा को उनकी जरूरत है तो मीरा को उनका साथ देना चाहिए।  फिर आप लोगों को करने के लिए मैं तो हूं ही। कुछ दिनों के बाद मीरा के भैया-भाभी भी आ जाएंगे फिर उसके बाद मीरा यहां आ जाएगी। अगले दिन ही मीरा की सास ने अपने दर्द का बहाना बनाकर बेड से उठ ही नहीं रही थी।  रोहित परेशान हो गया था ,

कि अब वह करे तो क्या करें वह जाकर बाहर से दवाई तो लेकर आया लेकिन जब उसकी मां को कोई दर्द था ही नहीं तो वह दवाई क्या करेगा।  जैसे ही रोहित ऑफिस गया मां ने उस दवाई को फेंक दिया था। शाम को रोहित के आते ही उसकी मां ने बोला बेटा बहू को तुम क्यों नहीं बुला लेते हमारी हालत देख ही रहे हो ।  रोहित ने फोन करके मीरा को अपनी मां के हालत के बारे में बताया। मीरा चिंतित हो गई थी वह करे तो क्या करें एक तरफ उसका मायका था एक तरफ ससुराल। 

मीरा ने अपनी मां को बताया कि उसकी  सास भी बहुत बीमार हैं  मै क्या करूँ  समझ में नहीं आ रहा है। मीरा की मां ने कहा कि एक लड़की की  शादी होने के बाद उसका ससुराल ही उसका घर हो जाता है ।  अपने मायके की वजह से अपने ससुराल को नहीं छोड़ा जाता है। ऐसा करो तुम अपने ससुराल चली जाओ और फिर कुछ दिनों के बाद तुम्हारा  भाई और भाभी भी तो आने ही वाले हैं।

मीरा का जाने का मन तो नहीं था लेकिन क्या करती ससुराल का धर्म भी निभाना था।  वह अगले दिन ही रोहित को बुला कर वापस अपने ससुराल आ गई। अगले दो-तीन दिनों के बाद उसने देखा कि उसकी  सास तो बिल्कुल नॉर्मल हैं।  उन्हें तो कोई तकलीफ नहीं है वह समझ गई थी उसे यहां पर बुलाने के लिए उन्होंने एक नाटक रचा था। उस दिन के बाद से मीरा का भ्रम टूट गया की बहू कभी बेटी नहीं बन सकती।

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