एक पिता की जिम्मेदारी – रोनिता कुंडू

सुनिए आपकी पत्नी की काफी नाजुक Pregnancy हैं… पिछले दो मिसकैरेज की वजह से, इनका शरीर काफी कमजोर हो गया है… इसलिए इस बार इन्हें पूरा बेड रेस्ट करना होगा…

डॉक्टर ने विपुल को उसकी पत्नी चारू के बारे में कहा…

फिर दोनों घर आ जाते हैं…

विपुल: तुम घबराओ मत..! चारू..! मैं सब मैनेज कर लूंगा… तुम बस अपना और हमारे बच्चे का ख्याल रखना… बाकी सारी जिम्मेदारी मुझ पर छोड़ दो….

फिर विपुल अपनी मां को कॉल करता है… जो कि अलग शहर में रहती थी… विपुल को अपनी नौकरी की वजह से अपने माता-पिता से अलग रहना पड़ता था… अब जब चारू की ऐसी हालत थी, वह चारू को पूरे दिन अकेला नहीं छोड़ सकता था… और चारू का डॉक्टरी इलाज इसी शहर में चल रहा था… वह वहां से चारू को कहीं ले भी नहीं जा सकता था…

ऐसे में उसने अपनी मां को अपने पास बुलाने का सोचा… काम के लिए तो वह किसी को रख देता, पर वह चारू की देखरेख नहीं करती… ऐसे में किसी अपने का साथ चाहिए और इसी वजह से उसने अपनी मां को फोन किया और कहा…. हेलो मां..! कैसी है..?

मां: हेलो..! मैं ठीक हूं बेटा… और तू कैसा है..?

विपुल: मां..! आपको तो पता ही है… आप दादी बनने वाली हो और पिछले दो बार चारू के गर्भपात की वजह से इस बार भी उसकी प्रेगनेंसी में दिक्कतें हैं… डॉक्टर ने उसे पूरा बेड रेस्ट करने को कहा है… मैं तो पूरा दिन घर पर होता नहीं हूं… इसलिए घर पर कोई तो होना चाहिए, जो चारू को अपनी नज़र में रख सके..




मां: तो एक काम वाली रख दे ना… इसमें इतना परेशान होने की क्या बात है…?

विपुल: मां कामवाली तो है… पर इस वक्त चारू को किसी अपने की ज़रूरत है, अब उसकी मां तो है नहीं, जो उन्हें बुला लूं… ऐसे में आप ही को बुला सकता हूं… क्योंकि, ना जाने कब कौन सी जरूरत आन पड़े..?

मां: देख बेटा..! यह वक्त तो हर औरत की जिंदगी में आता है और हर किसी की इतनी सुविधा नहीं होती, कि उसे पूरा बेड रेस्ट नसीब हो… मेरे तो घुटनों का दर्द तुझसे छुपा ना है… ऐसे में मैं वहां चली भी गई, तो क्या ही मदद कर पाऊंगी..?

विपुल: पर मां..! मैं शारीरिक नहीं मानसिक मदद की बात कर रहा हूं…

मां: देख बेटा…! यहां भी घर हैं हमारा, जिसे छोड़कर जाना मुमकिन नहीं… और आजकल इधर चोरियां भी बहुत हो रही है…और तुम्हारे पापा की भी तबीयत ठीक नहीं रहती…

विपुल अब और कुछ नहीं कहता, क्योंकि उसे अपने मां के बहाने समझ आ रहे थे…

विपुल फोन रख कर चारू से कहता है… तुम चिंता मत करो चारू..! मैं हूं ना… मैं सब संभाल लूंगा…

उसके बाद से विपुल सुबह दफ्तर जाने से पहले, चारू की सारी जरूरत का सामान तैयार कर जाता था और दफ्तर से लौटने के बाद चारों की देखभाल करता…




समय बीतता गया और चारू ने अपनी बेटी को बिना किसी दिक्कत के जन्म दिया…

चारू: आज आपकी वजह से हमें अपनी औलाद का चेहरा देखना नसीब हुआ… सच में, बड़ी भाग्यशाली है हमारी बेटी… जिसे ऐसे पिता मिले… मैंने तो इसे बस अपने अंदर रखा था… पर आपने तो इसके लिए अपना आराम ही अपने अंदर दफन कर दिया… घर और बाहर दोनों को इतने अच्छे से संभाला…

आज आपकी जिम्मेदारी ने ना सिर्फ हम मां बेटी को संभाला, बल्कि एक सीख भी दी… के हमेशा मां ही अपने बच्चे की जिम्मेदारी नहीं उठाती, बल्कि एक पिता भी अपनी जिम्मेदारी बखूबी उठा सकता है… वह कहते हैं ना, एक मां अपने बच्चे को अपने अंदर नौ महीने रखती है… पर एक पिता अपने बच्चे को ताउम्र अपनी ज़हन में रखता है… अगर मां बच्चे को घर में बिठाकर, खाना खिलाती है तो, उस घर की ईंट और वह खाना एक पिता ही जुगाता है…

हां..! वह बात अलग है कि, मां की जिम्मेदारी का हमेशा ही बखान होता है… और पिता की जिम्मेदारी का ना तो कोई बखान होता है और ना ही उसकी सराहना… पिता की हर एक जिम्मेदारी, जो एक बच्चे की परवरिश का अहम हिस्सा होता है… वह हमेशा से ही दबी ही रह जाती है… अगर एक मां अपने बच्चे का खाना बनाने के लिए चूल्हे के पास तपती है, तो एक पिता भी उस चूल्हे में आग देने के लिए, धूप में तपता है… पर अफसोस… पिता की उस जिम्मेदारी को कोई देखना ही नहीं चाहता….

चारू की इन बातों से विपुल भावुक हो जाता है और मुस्कुरा कर चारू को गले लगा लेता है..

धन्यवाद
#जिम्मेदारी
स्वरचित/मौलिक/अप्रकाशित

रोनिता कुंडू

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