एक पत्नी के स्वाभिमान का क्या कोई मोल नहीं..? – निधि शर्मा
- Betiyan Team
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- on Jan 23, 2023
“आज उठने में जरा सी देर क्या हो गई आप तो मेरे मान सम्मान पर चले गए..! आज आपने मेरी स्वाभिमान को बहुत ठेस पहुंचाई क्योंकि सास ताने मारे तो समझ में आता है पर पति से ऐसे शब्दों की उम्मीद मैं या कभी कोई औरत नहीं करती होगी..! क्या औरत का पति के जीवन में बस एक सेविका जितनी भूमिका है..?” नेहा अपने पति मुकेश से कहती है। मुकेश बोला “क्या गलत बोल रहा हूं..? मैंने तुम्हारे मायके में देखा है जब तक तुम्हारे पापा दुकान नहीं जाते थे तुम्हारी मां आगे पीछे लगी रहती थीं। एक तुम हो कि घर के फालतू के काम में इतनी व्यस्त हो जाती हो कि तुम्हें ये भी ध्यान नहीं रहता कि पत्नी के कपड़े में आयरन हुआ है, सॉरी कहने की जगह तेज आवाज में बात कर रही हो।” नेहा बोली “मैं सॉरी आपको क्यों बोलूं जब मेरी कोई गलती ही नहीं है..।
मेरी मां का पापा के आगे पीछे घूमना तो आपने देख लिया, पर आपने ये नहीं देखा कि अपनी पत्नी का कितना सम्मान करते हैं। जहां आप मुझसे तेज आवाज और तू तराक में बात करते हैं, आज तक मेरे पिता ने मेरी मां को तुम नहीं कहा हमेशा आप शब्द से संबोधित करते हैं।” मुकेश बोला “सुना मां इसके शौक तो देखो ये चाहती है मैं इसे आप कह कर बात करूं..! अरे जाओ… पत्नी पतियों को आप करके बात करती हैं या पति..? अपने शौक मन में ही रखो सपने वही देखो जो पूरे हो सकते हैं।” इतना कहकर मुकेश हंसने लगा। नेहा बोली “पतिदेव इज्जत वहीं मिलती है जहां लोग इज्जत देते हैं। औरत कोई पैर की जूती नहीं होती जिसके स्वाभिमान को आप बार बार ठोकर मारेंगे और वो आपको सर पर बैठाएगी, क्या औरत की जगह पति के जीवन में एक सेविका और बच्चे पैदा करने की मशीन जैसी है..? अगर आपको ऐसा लगता है तो अपनी गलतफहमी को दूर कर लें क्योंकि मैं न तो आपकी सेविका हूं न ही कोई मशीन..।” नेहा की सास आशा जी बोलीं “अरे बहू इतना भी क्या गुरुर अगर एक सॉरी बोलने से बात खत्म हो सकती है तो कह दो सॉरी..। पतियों की तुलना तो परमात्मा के साथ की जाती है और तुम हो कि इस तरह से बात कर रही हो..!”
नेहा हंसकर बोली “मम्मी जी इस विषय में ज्यादा कुछ कहना नहीं चाहूंगी पर क्या आपके बेटे के जीवन में मेरा बस इतना ही महत्व है..? जितना मैं जानती हूं देवी देवताओं में पहले देवियों का नाम लेकर उन्हें सम्मान दिया जाता है। तो क्या मेरे घर में मुझे और मेरे काम को महत्व नहीं दिया जा सकता..?” इतना कहकर वो वहां से चली गई। नेहा तो अपनी बात कह कर चली गई इधर मुकेश बोला “देखा मां इसके तेवर, शादी को 12 साल हो गए हैं अब इन्हें इस घर में अपनी एक अलग जगह बनानी है! अगर इतना ही है तो कमाए और खाए आखिर रहती तो मेरे ही पैसों पर है।” आशा जी बोलीं “बेटा अब मैं इस उम्र में तुम्हारे कपड़ों में आयरन तो कर नहीं सकती तो तुम खुद ही कर लो। थोड़े दिन छोड़ दो बहू को, कल को जो तुम कहोगे आखिर उसे वही तो करना होगा।” इतना कहकर आशा जी भी अपने कमरे में चली गई और मुकेश को अपने कपड़ों में आयरन खुद करना पड़ा। कुछ दिन तक ऐसा ही चलता रहा नेहा घर के काम करती परंतु मुकेश का एक काम नहीं करती थी जिससे मुकेश को बहुत परेशानी हो रही थी। एक दिन आशा जी बोलीं “बहू आखिर ये कब तक चलेगा..?
नेहा बोली “जब तक कि आपके बेटे को ये एहसास न हो जाए कि इस घर में मेरा भी कुछ स्वाभिमान है, कम से कम तब तक तो ऐसा ही चलने दीजिए” आशा जी हैरानी से नेहा को देखती रह गईं। एक दिन दफ्तर में मुकेश का मित्र बोला “मुकेश भाई लगता है भाभी जी नाराज हैं तभी आप आजकल ढंग के कपड़े नहीं पहनते और ना ही टिफिन लाते हो।” मुकेश को बहुत बुरा लगा घर आकर उसने नेहा को सुनाते हुए मां से कहा “मां पत्नी अपना कर्तव्य भले न निभाए परंतु पति अपनी कमाई से पूरा घर चलाकर अपना फर्ज निभाता है।” नेहा को मुकेश की बातें बहुत चुभी लेकिन उसने कुछ नहीं कहा। अगले दिन उसकी पड़ोसन वर्षा बातों बातों में बोली “भाभी विज्ञान और गणित में आपकी पकड़ बहुत अच्छी है तभी आपके दोनों बच्चों के अंक बहुत अच्छे आते हैं। आप किसी स्कूल में या फिर ट्यूशन क्लास क्यों नहीं शुरू करतीं..?
कमाई भी हो जाएगी और हमारा भी भला हो जाएगा।” वहीं बैठी आशा जी बोलीं “वर्षा बेटा मेरे मुकेश की कमाई कोई नहीं है फिर बहू को ये सब करने की क्या जरूरत है।” वर्षा बोली “चाची जी मेरे कहने का वो मतलब नहीं था और यहां बात पैसों की नहीं है। आप भाभी के हुनर को कम मत आंको, अक्सर घर की औरतों को लोग महत्व नहीं देते हैं जैसे घर की मुर्गी दाल बराबर..।” इतना कहकर वो हंसने लगी और थोड़ी देर बाद चली गई। वर्षा की कहीं भी बात नेहा के दिमाग में चल रही थी आशा जी बोलीं “बहू इसकी बातों में मत आना बच्चों को पढ़ाने और चार पैसे के चक्कर में कहीं अपने घर के लिए समय ना मिले! क्योंकि मैं इस उम्र में घर के काम नहीं कर सकती पहले कह देती हूं।” इतना कहकर आशा जी चली गईं। अगले महीने वर्षा की मदद से नेहा ने अपने गेराज में ट्यूशन शुरू किया। देखते-देखते 10-15 बच्चों का दो तीन बैच बन गया अच्छी खासी कमाई होने लगी और नेहा घर के काम भी वक्त पर कर लेती थी।
इस बात से आशा जी और मुकेश बहुत नाराज थे। कुछ समय ऐसा ही चलता रहा एक रोज मुकेश दफ्तर से थका हारा लौटकर जल्दी आया था नेहा उस वक्त बच्चों को पढ़ा रही थी । उस रोज मुकेश को एहसास हुआ कि पहले जब वो दफ्तर से जल्दी या देर से आते थे, नेहा गरमा गरम चाय और नाश्ता देती थी और बदले में बस सम्मानजनक कुछ शब्द ही तो चाहती थी। रात में जब नेहा ने खाने के टेबल पर सबको बुलाया तो मुकेश ने खाने से इंकार कर दिया। आशा जी बोलीं “बहू कहीं तुम्हारे महत्व के चक्कर में तुम्हारी गृहस्ती न बिगड़ जाए..!” नेहा बोली” मम्मी जी तो क्या मैं गलत हूं, क्या मेरा इस घर में या आपके बेटे के जीवन में कोई महत्व नहीं है..? जब भी औरत अपने स्वाभिमान की बात करती है सब उसकी विपक्ष में क्यों खड़े हो जाते है.!” आशा जी बोलीं “बहू एक बार बैठकर शांति से बात कर लो कहीं ऐसा न हो कि इन चीजों का प्रभाव तुम्हारे बच्चों पर पड़े।” इतना कहकर आशा जी बच्चों को लेकर सोने चली गं।
नेहा खाने की प्लेट लेकर कमरे में गई तो मुकेश ने खाने से इंकार कर दिया और कहा “जब तुम्हारे जीवन में मैं कोई मायने नहीं रखता और मेरी कोई जगह ही नहीं तो खाना खाकर क्या करूंगा।” नेहा बोली “मेरे जीवन में आपका क्या महत्व है मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकती। बस इस घर में और आपके जीवन में अपनी एक जगह बनाने की कोशिश कर रही थी, ताकि कल को आपके बच्चे आपकी करें और वही बच्चे कहें कि मेरे पिता के जीवन में मेरी मां का कितना महत्व था क्या मैंने आपसे ज्यादा मांग लिया. ?” इतना कहकर नेहा रोने लगी। मुकेश नेहा का हाथ थामकर बोला “मैं अपने व्यवहार को बदलने की पूरी कोशिश करूंगा। इन कुछ महीनों में मुझे समझ में आ गया कि मेरे जीवन में तुम्हारा क्या महत्व है, अगर आदमी जीवन रूपी घर की छत है तो उस घर की नींव एक औरत होती है।
मैं अपनी सारी गलतियों के लिए माफी मांगता हूं।” और नेहा ने भी बात को वही खत्म किया। अगले दिन से मुकेश अपने छोटे-मोटे काम खुद करने लगा और नेहा को पूरा सहयोग करता था। आशा जी को बेटे के लिए खुशी थी परंतु बहू की बात उसने मान ली इस बात का उन्हें बहुत मलाल था। क्योंकि अब खुद से ज्यादा वो पत्नी को महत्व देता था तो कहीं न कहीं आशा जी को अपना सिंहासन हिलता हुआ नजर आया। मित्रों जब पुरुष और स्त्री एक दूसरे के पूरक होते हैं तो जब भी स्त्री अपने स्वाभिमान की बात उठाती है तो हर कोई उसके विपक्ष में क्यों खड़ा हो जाता है.? आपको ये कहानी कैसी लगी अपने अनुभव और विचार कमेंट द्वारा मेरे साथ साझा करें। कहानी को मनोरंजन एवं सीख समझ कर पढ़ें और ज्यादा से ज्यादा शेयर करें बहुत-बहुत आभार
निधि शर्मा
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