एक औरत की अहमियत – हेमलता गुप्ता : Moral Stories in Hindi

क्या घर छोड़कर जाने का यह तुम्हारा आखिरी फैसला है सुधा…? देखो अगर एक बार तुम इस घर से चली गई तो फिर मैं तुम्हें मनाने नहीं आऊंगा न हीं तुम्हारी कोई मनुहार करूंगा,  जैसा अब तक करता आया हूं अगर तुम्हें जाना हो तो बेशक जाओ, देखना.. तुम खुद अपनी मर्जी से वापस आओगी!

नरेश की ऐसी बातें सुनकर एक बार को सुधा के  कदम  डगमगाए किंतु वह अपने फैसले पर अडिग थी, आज उसने ठान ही लिया कि चाहे कुछ भी हो जाए वह वापस इस घर में नहीं आएगी, किंतु वह जाएगी कहां…. मायके में भी अब मम्मी पापा नहीं है तो भाई भाभी के ऊपर भी मैं बोझ नहीं बनना चाहती,

थोड़ी देर रुक कर और विचार करके उसने नरेश से कहा…. देखो नरेश हमारी शादी को 15 साल हो गए हैं हो सकता है हम दोनों ने ही शादी में कई समझौते किए हो किंतु मुझे लगता हैमैंने तुमसे ज्यादा समझौते किए हैं, मैं तुमसे 4 दिन का समय मांगती हूं इन चार दिनों में या तो तुम मुझे मनाने आओगे या

फिर मैं अपने आप वापस आ जाऊंगी, मैं भी चाहती हूं 4 दिन में तुम भी अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जी कर दिखाओ और ऐसा कहकर सुधा अपने मायके  चली गई, मायके पहुंचने पर सुधा के भैया भाभी ने कहा.. सुधा तुम यहां कैसे..? सब ठीक है! हां भैया.. तीन-चार दिनों के लिए आई हूं वहां रहते रहते

आपकी याद आने लग गई तो सोचा आपसे मिल लूं! हां बहन बिल्कुल.. यह तेरा भी तो घर है और सुधा ने अपने और नरेश के बीच हुए झगड़े के बारे में कुछ नहीं बताया! दोपहर में सुधा लोन में बैठी बैठी सोचने लगी.. मैंने नरेश और अपने दोनों बच्चों के लिए क्या नहीं किया सुबह से लेकर रात तक में काम पर लगी रहती हूं

लेकिन अगर किसी भी दिन छोटी सी भी गलती हो जाए तो मेरी मेहनत इन लोगों को कभी नजर नहीं आती बल्कि उस गलती को लेकर घर में तनाव का माहौल कर देते हैं, क्या गलती इन लोगों से नहीं होती? अभी 5 दिन पहले शादी में से आने के बाद इतने सारे कपड़े धोए और एक जेब में 100 का नोट निकल गया

जिस पर नरेश ने मुझे बेवकूफ और कम अकल तक कह दिया,  मैंने दिन भर शादी में से आने के बाद थकान के बावजूद इतना सारा काम किया वह किसी को दिखाई नहीं दिया किंतु वह एक छोटी सी गलती सबको नजर आ गई, खाने में भी कभी कुछ काम ज्यादा हो जाता है तो बच्चे भी सुनाने में पीछे नहीं रहते हैं, कहते हैं..

क्या मम्मी आपसे ढंग का खाना तक बनाना नहीं आता, तारीफ चाहे करें चाहे ना करें किंतु कमी जरूर सुना देते हैं, परसों तो हद ही कर दी जब उन्होंने मुझसे कह दिया कि तुम्हें क्या लगता हैतुम्हारे बिना हमारे घर का काम नहीं चल सकता.. अरे 2 दिन बाहर जाकर देखो हम कैसे घर को संभालते हैं,

तो बस इस बार मैंने सोच लिया इस बार घर चला कर दिखा ही दो, हालांकि मुझे पता है मेरे बिना उन तीनों का कुछ भी नहीं हो सकता लेकिन कभी-कभी अपनी अहमियत दिखाना भी जरूरी होता है और वाकई में ऐसा ही हुआ! शुरुआत हुई सुबह की चाय से! तीनों पापा बेटी बेटा एक दूसरे के ऊपर चाय बनाने के लिए दबाव डालने लगे और जैसे-तैसे गुस्से में चाय बनकर भी आई

तो चाय इतनी कड़वी.. तीनों ने फेंक दी! उसके बाद खाना कपड़े और जाने कितने सारे काम जो उन्हें कभी दिखाई ही नहीं देते थे जब सिर पर आए तब उन्हें सुधा की अहमियत पता चली, किंतु अपनी प्रतिष्ठा बचाए रखने के लिए तीनों झुकने को तैयार नहीं थे, जला और कच्चा खाना खाने को मिला सो अलग, सुधा कितना अच्छा खाना बनाती थी पर कभी उस खाने की कदर ही नहीं की,

अगले दिन उन्होंने होटल से खाना मंगवाया, दो-तीन  समय तक  होटल का खाना खाने के बाद तीनों की तबीयत खराब हो गई और उस बचे हुए खाने में से अगले दिन बदबू आने लगी, पूरा घर का माहौल खराब हो गया! जैसे तैसे करके दो-तीन दिन निकाले आखिरकार तीनों ने अपने हथियार डाल दिए, नरेश ने कहा.. बेटा मैं तुम्हारी मम्मी को लेने वापस जा रहा हूं तो बच्चों ने कहा..

किंतु पापा आपकी कसम..! अरे भाड़ में गई ऐसी कसम.. यहां तो जीने के भी लाले पड़ रहे हैं ऐसे में मेरी कसम का क्या महत्व! बच्चे भी कहने लगे.. पापा मम्मी को तो वापस ले ही आओ हमें कभी यह महसूस ही नहीं हुआ कि मम्मी इतना सारा काम करती थी, मम्मी सुबह से लेकर रात तक काम करती रहती  किंतु हमें कभी उनकी अहमियत समझ में ही नहीं आई, जब हमारे सिर पर आकर पड़ी

तब हमें मम्मी की कीमत पता चली मम्मी तो किसी काम को कभी सुनाती ही नहीं थी हमें तो हर चीज तैयार मिलती थी, हमने मम्मी का को कुछ नहीं समझा हमें कभी मम्मी की अच्छाई नजर नहीं आई, नजर आई तो उनसे हुई कोई गलती जो हम न जाने कितनी बार करते हैं, पापा हम तीनों ने सच में मम्मी के दिल को बहुत ठेस  पहुंचाई है,

किंतु पापा अब शायद हम तीनों में अकल आ गई है कि हम मम्मी के बिना बिल्कुल अधूरे हैं, पापा इससे पहले की बहुत देर हो जाए  आप अपनी इज्जत छोड़िए और जाइए इसी समय मम्मी को लेकर  आईए, किसी के जाने के बाद ही किसी की अहमियत क्यों समझ आती है, अब हम मम्मी का कभी निरादर नहीं करेंगे

  हमारी मम्मी दुनिया की सबसे अच्छी मम्मी है, बस हमसे ही समझने में गलती हो गई और अगले ही दिन नरेश जी सुधा  को लेनेउसके मायके पहुंच गए, सुधा को तो पहले से ही पता था यह सब होने वाला है उसने अपनी पूरी पैकिंग करके रखी हुई थी

और शाम को नरेश सुधा को लेकर अपने घर आ गया! आखिर वह भी तो अपने पति और बच्चों से दूर नहीं रह सकती थी बस उन्हें अपनी अहमियत दिखानी थी! 

   हेमलता गुप्ता स्वरचित 

   कहानी प्रतियोगिता “आखिरी फैसला”

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