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 ‘ एहसान ‘ – विभा गुप्ता

   चार दिन के भीषण कुहासे के बाद जब हल्की धूप निकली थी तो अयोध्या बाबू ने बड़ी राहत की साँस ली।पत्नी कौशल्या से बोले, ” सुनो जी,बड़े दिनों बाद सूर्यदेव के दर्शन हुए हैं, मैं बाहर के असोरे में बैठा हूँ, धूप सेंकते हुए ही तुम्हारे हाथ के गरम-गरम गोभी के परांठे खाऊँगा।” कहते हुए मुस्कुराए और असोरे पर बिछी चटाई पर पैर फैलाकर बैठ गयें।पत्नी ने आकर उन्हें एक  तश्तरी थमा दी जिसमें दो परांठे के साथ मूली का अचार और आँवले की चटनी भी थी।वे सड़क पर आते-जाते लोगों को देखकर गोभी के परांठे का आनंद लेने लगे।परांठे स्वादिष्ट थें, एक और खाने की इच्छा हुई और पत्नी  से एक और परांठे की फ़रमाइश कर डाली।अंदर से आवाज़ आई कि डाॅक्टर साहेब ने घी-तेल मना किया है ना।सुनकर प्रार्थना करते हुए बोले कि बस, एक ही तो माँग रहा हूँ।

          कौलल्या जी दनदनाती हुई आईं और उनकी प्लेट में परांठा पटकते हुए बोली, ” तबीयत जो बिगड़ी तो हमें न कहियेगा।” पत्नी के जाने के बाद अयोध्या बाबू अपने मुँह में निवाला डाल ही रहें थें कि उनकी नज़र घर के गेट पर फटा-सा कुरता पहने एक आदमी पर पड़ी।रोटी की भूख उसके चेहरे पर साफ़ दिखाई दे रही थी।न जाने क्या सोचकर उन्होंने अपनी तश्तरी का परांठा जाकर उसकी हथेली पर रख दिया और बुदबुदाए- खा ले,तू भी क्या याद करेगा।भूख से बेहाल वह आदमी तो परांठे पर टूट पड़ा।

         रात को जब अयोध्या बाबू सोने के लिए बिस्तर पर गये तो उन्हें पेट में हल्का-सा दर्द महसूस हुआ।वो समझ गये कि थोड़ी-सी बदहज़मी है,पुदिन हरा पीने से ठीक हो जाएगा और जब उन्होंने पत्नी से पुदीन हरा की शीशी माँगी तो कौशल्या जी विफ़र पड़ी,” मैं पहले ही कह रही थी कि अपनी चटोरी जीभ पर नियंत्रण करो,तीन  परांठे! असर तो दिखायेंगे ही।अब भुगतो।” कहते हुए उन्होंने पुदीन हरा की शीशी पति के हाथ पर पटक दी।

             अयोध्या बाबू सोचने लगे,आज अगर वह भिखारी न आता

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