
दुविधा – Blog post by anupma
- Betiyan Team
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- on May 03, 2022
बहुत कश्मकश मैं बैठी थी सिया रेलवे स्टेशन की बेंच पर
उसको देखकर कोई भी कह सकता था की उसका बस शरीर ही है आत्मा कहीं और ही विचरण कर रही है ।
आज बहुत हिम्मत करके पहली बार वो उम्र के 39 वें पायदान पर पहुंच कर खुद के लिए कुछ कर रही थी ।
मन मैं सौ युद्ध एक साथ हो रहे हो ऐसा लग रहा था , शादीशुदा है वो , दो बच्चो की मां भी , क्या उसे ये करना चाहिए या नहीं करना चाहिए , सही क्या है गलत क्या है वो फैसला ही नहीं कर पा रही थी ।
दिमाग और दिल एक दूसरे के साथ तर्क वितर्क की जंग मैं लगे हुए थे और वो निढाल सी बैठी हुई थी
एक तरफ उसकी शादीशुदा जिंदगी थी संयुक्त परिवार वाली जहां परिवार के नाम पर मां पिता जी , ननद का परिवार , देवर , और पति भी था । लेकिन वो खुद इन सबके लिए सिर्फ एक नाम थी जब भी कोई काम हो या कुछ चाहिए हो बस आवाज दे दो और काम हो जाए इतने पर भी कोई खुश नहीं हैं उससे ।
कभी भूले भटके उसको याद आ जाए की वो भी है और कुछ कर ले अपने लिए या मांग ले तो होता तो कुछ नही था उसके मन का , हां पर फिर होती थी चर्चाएं की अच्छी बहू और उनके संस्कार क्या होते है ।
परिवार मैं जब सब साथ रहते है तो कुछ ना कुछ होता ही रहता है सही भी और गलत भी , पर सिया ने जब भी खुद को पाया गलत और अकेले ही पाया , इस भरेपूरे परिवार मैं उसका कोई था ही नही यहां तक पति भी बस रात को साथ सोने को ही पति धर्म समझता है , कितना अजीब है न संस्कारी परिवार मैं संस्कारी बेटे की ऐसी सोच का होना , सिया को याद आ रहा है कैसे एक बार वो बहुत बीमार हुई, हुआ तो सिर्फ सर्दी जुकाम था पर पूरे दो महीने तक वो परेशान रही और उसके गले और नाक से खून तक आने लगा , बीमार तो वो बहुत बार हुई थी कभी कुछ कभी कुछ , इंसान है तो ये सब होता ही रहता है पर उसका पति कभी था ही नही उसके पास की पूछ ले वो कैसी है , डॉक्टर के यहां भी वो खुद ही गई और अकेले कमरे मैं रोती रही । हां रात को आना उसका पति कभी नहीं भूलता था ।
आज वो हिम्मत करके जा रही है उससे सिर्फ मिलने के लिए जिसने उसे दूर रह कर भी उसके साथ होने का एहसास दिया , बिना स्वार्थ के उसको प्यार दिया , उसके बुरे हालातों मैं सिर्फ उसे ये बोला सिया मैं हूं यहां तुम फिक्र ना करो , ये एहसास दिया की तुम कर लोगी सिया अकेले कर लोगी सब ।
तो दिल और दिमाग मैं द्वंद है की सिया सही कर रही हो की नही ।
अचानक से उसके आसपास शोर बढ़ गया , शायद उसकी मंजिल की ओर जाने वाली गाड़ी का वक्त हो गया है ।
सारे द्वंद को बीच नई ही छोड़ के उठ खड़ी हुई और अपनी आरक्षित सीट पर जा कर बैठ गई , अब वो अलग सी शांति महसूस कर रही थी ।
लेखिका : अनुपमा