सुबह का वक्त था, घर में ख़ुशी और उत्साह का माहौल था।
रेखा, अपने माता-पिता की प्यारी बेटी, ने एक स्वस्थ बेटी को जन्म दिया था। घर के सभी लोग उसके आसपास इकट्ठा थे। मिठाइयाँ बँट रही थीं, बधाइयाँ दी जा रही थीं, और सबकी निगाहें रेखा और उसकी नन्हीं बेटी पर टिकी हुई थीं।
रेखा की मां, सविता जी, बड़े गर्व से कह रही थीं, “हमारी बेटी ने हमें नन्हीं परी दी है। अब उसकी सेहत का ध्यान रखना है। हमें इस बात का पूरा ध्यान देना होगा कि वह जल्द से जल्द ठीक हो जाए।”
इसी बीच रेखा के ससुराल वाले भी पहुंचते हैं।
वे भी खुश हैं, लेकिन रेखा की सास जल्द ही बातों का रुख़ घुमा देती हैं, “अब जल्दी ही दूसरे का भी सोचो। हमें तो इस घर का वारिस चाहिए।”
सविता जी का चेहरा गंभीर हो जाता है।
वह प्यार से अपनी बेटी का सिर सहलाते हुए कहती हैं, “हमारी बेटी का स्वास्थ्य पहले है। अभी उसे ठीक होने का वक्त चाहिए। और दूसरा बच्चा हो या ना हो, ये सबसे पहले उसकी और हमारे जमाई जी की सोच है, अपने जमाई जी पर हमें पूरा विश्वास है कि वे सबसे पहले हमारी बेटी बारे में सोचेंगे। किसी और का दबाव हम बर्दाश्त नहीं करेंगे।”
उसी वक्त, घर के एक और कोने में रेखा की भाभी, सीमा, अकेली बैठी थी।
सीमा ने भी एक प्यारी सी बेटी को जन्म दिया था, लेकिन उसकी हालत ठीक नहीं थी।
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खून की कमी के चलते वह कमज़ोर हो गई थी।
सीमा की सास और बाकी परिवार ने उसका हालचाल तो लिया, मगर उनकी बातें उसके दर्द से ज्यादा उनके अरमानों से भरी थीं।
“सीमा, अब जल्दी ठीक हो जाओ। अगले साल तक एक बेटे की उम्मीद है,” उसकी सास ने ठंडी आवाज़ में कहा।
सीमा ने असहाय होकर देखा, उसे ऐसा लगा जैसे उसकी अपनी ज़रूरतों और स्वास्थ्य की किसी को परवाह ही नहीं थी। सीमा का पति, रोहित, अपनी मां के ही इशारों पर चलता था। वह कभी सीमा का पक्ष नहीं लेता, और हमेशा मां की हाँ में हाँ मिलाता।
“मां ठीक कह रही हैं। अगली बार बेटे की तैयारी करनी चाहिए,” उसने कहा।
सीमा का दिल टूट गया। उसकी हालत इतनी गंभीर थी, लेकिन उसकी ससुराल को उसकी सेहत की बजाय समाज की बातें और बेटे की ख्वाहिशें ज़्यादा प्यारी थीं।
उधर, सीमा के माता-पिता ने जब ये सुना कि उनकी बेटी को ठीक से देखभाल नहीं मिल रही है, तो वे तुरंत उसके पास आ गए।
सीमा की मां ने आँसू भरी आँखों से कहा, “बेटी, अगर ये लोग तेरी परवाह नहीं करते, तो तू चिंता मत कर। हम तेरे साथ हैं।”
सीमा के पिता ने भी गंभीर स्वर में कहा, “हमारी बेटी हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण है। अगर यहाँ उसका ठीक से ध्यान नहीं रखा जाएगा, तो हम उसे अपने घर ले जाएँगे। किसी भी समाज के दबाव में हम नहीं आएँगे।”
सीमा ने अपने माता-पिता का सहारा पाकर ताकत महसूस की।
उसने पहली बार अपने ससुराल वालों के सामने खड़े होकर कहा, “मैं अपनी सेहत और अपने जीवन को दाँव पर नहीं लगा सकती। अगर आपको मेरी सेहत की कोई परवाह नहीं है, तो मुझे अपने परिवार का सहारा है। मैं अगली बार का नहीं सोच सकती, जब तक मैं खुद पूरी तरह से स्वस्थ ना हो जाऊँ।”
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सीमा की इस हिम्मत ने सबको चौंका दिया।
रोहित को भी पहली बार अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने कभी अपनी पत्नी की भावनाओं और स्वास्थ्य को अहमियत नहीं दी थी, लेकिन अब वह समझ चुका था कि उसके परिवार की सोच कितनी गलत थी।
वह सीमा के पास आकर धीरे से बोला, “मुझे माफ कर दो, सीमा। मैं तुम्हारे साथ हूँ।” लेकिन अब फैसला सीमा के हाथ में था। वह जान चुकी थी कि उसकी सेहत और खुशी सबसे ऊपर है।
“पहले मुझे अपनी ज़िंदगी और सेहत पर ध्यान देना है। और जब तक मैं पूरी तरह से ठीक नहीं होती, कोई और बच्चा नहीं।” उस दिन सीमा के ससुराल वालों को एक महत्वपूर्ण सीख देकर हुआ।
वे समझ गए कि बहू भी किसी की बेटी होती है, और उसकी सेहत और खुशियों का सम्मान करना जरूरी है। सीमा की हिम्मत और उसके माता-पिता का साथ उसकी सबसे बड़ी ताकत बना।
दोस्तों, एक महिला की ज़िंदगी और सेहत किसी भी पारिवारिक या सामाजिक दबाव से ऊपर होती है। हर महिला को अधिकार है कि वह अपने जीवन के फैसले खुद ले, चाहे वह बेटी हो या बहू।
आपकी सखी
पूनम बगाई
ससुराल वाले अपनी बेटी की चिंता करेंगे या बहु की, बहू तो दूसरे की बेटी है।