दुल्हन – कंचन श्रीवास्तव 

मिन्नत करती हुई – रुको न थोड़े दिन और साथ रह लेने दो,देखो न बिगड़ती हालत देखकर लोग कैसे बिलख रहें हैं।इधर उधर भाग रहे ,दवा, दुआ सब कर रहे ।पर कोई फायदा नहीं हो रहा मैं देख रही हूं कि और  पैसे भी खत्म हो गए पत्नी का गहन गिरवी पड़ा है सेठ साहूकार से कर्ज तक ले लिया , बच्चे अस्त व्यस्त हो गए हैं ।

हालत में कोई सुधार न देख पत्नी भी बिमरिया लग रही लगता है कई दिनों से कुछ खाया नहीं ।

मैं जानती हूं कि देह द्वारा निर्मित देह के प्रति तुम्हारी कोई सहानुभूति नहीं होती।

उसमें मेरा आगमन कुछ निश्चित समय के लिए करते हैं । और मुझसे अलग करते वक्त खुद पर दोष भी नहीं लेते ,कोई न कोई बहाना सांसारिक ही बनता है चाहे वो लोग हो या आक्समिक मृत्यु पर फिर भी कभी कभी तो………कहती हुई वो बिलख पड़ती है।

वर्षों का साथ जो होता है ।छोड़ने में तकलीफ़ तो होती ही है।

सच मानो अगर ऐसे में लोगों का ये हाल है तो मेरे जाने के बाद क्या होगा ,सुनो न बहुत जिम्मेदारियां हैं  छोटे बच्चे, अपनों का मोह भला कैसे चलूं बीच भंवर में छोड़कर इन्हें ,माना परिवार है पर कब तक ,जानते हो जब अपना सहारा टूटता है तो कोई साथ नहीं देता ,लाख परिवार में लोग भरे हो।


भाई सबके अपने अपने खर्चे है अपनी अपनी जिम्मेदारियां हैं भला ऐसे में कोई कैसे करेगा और कब तक।

सुनो ना कुछ दिनों की मोहलत और दे दो।

पर नहीं अड़ियल टट्टू की तरह घर आया  , निर्मोही दूत मानने को तैयार नहीं ।

उसका कहना है कि अपने कर्म के आधार पर जीवन और मृत्यु सबकी निश्चित है इसमें कोई कुछ नहीं कर सकता। और उससे जुड़ा हर शख्स अपना अपना भाग्य लिखा कर आया है , तुम देखती नहीं इसलिए तो कुछ समय के बाद सब कुछ सामान्य हो जाएगा।ऐसा लगता है उसके जीवन में वो शख्स था ही नहीं।सुनो – तुम परेशान न हों लोग अपने जीने का सहारा ढूंढ़ लेंगे।

इसलिए तुम चलो। आखिर और कब तक।

ऐसे में निरुत्तर आत्मा खुद में  दुख के दुख को समेट 

परिजनों और अपनों को रोता बिलखता छोड़,देह त्याग पर मजबूर हो जाती है।

 क्या करें संदेशा बैरी पिया यानि परमात्मा का आया है

तो आत्मा रूपी दुल्हन को उसके पास जाना ही होगा।

स्वरचित

कंचन आरज़ू

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