डूबते का सहारा’ – अनीता चेची

कहते हैं बच्चे का मन कोरी स्लेट की तरह होता है जो लिखते हैं ,वहीं अंकित हो जाता है।

 

जब मैं पांचवी कक्षा में पढ़ती थी और महज 10 वर्ष की थी। उस समय हमारे घर में 6-7 भैंसे थी। उन मवेशियों को चराने के लिए हमें पहाड़ में  जाना पड़ता ।

 गांव में चारे की समस्या थी और पानी की  भारी कमी थी। इसलिए हम ज्यादातर  गर्मी के दिनों में अपने मवेशी पहाड़ों में ले जाते और वहीं बैठ कर चराते ।इसी तरह मेरी तीनों सहेलियाॅं भी अपने मवेशी चराने  ले जाती।  जंगल में ही थोड़ी दूरी पर एक तालाब था। जहाॅं हम उन्हें पानी पिलाते । भैंसे पूरा दिन पहाड़ में चरती और हम पत्थरो पर  घर बनाकर गुड्डे गुड़ियों से खेलते।पेड़ों पर बैठ कर ऐ जोर-जोर से गीत गाते। जब हमारे गीतों की आवाज पहाड़ों में गूंजती तब हम बहुत खुश होते । फिर 

 उन गीतों को ओर जोर-जोर से गुनगुनाते। इस तरह सुबह से शाम हो जाती  और  फिर शाम होते ही  मवेशियों को घर वापिस ले आते ।

 हम चारो सहेलियाॅं पानी पिलाने के लिए अपनी भैंसों को तालाब में लेकर जाते। सभी भैंसें पहले तालाब में पानी पीती और फिर भीतर तैरती । 

हम सब किनारे पर खड़े होकर अपनी अपनी भैंसों को देखकर तालियां बजाते।

 एक दिन सभी की भैंसें पानी में तैरती हुई दिखाई दे रही थी  परंतु मेरी खास सहेली गीता की भैंस पानी में दिखाई नहीं  दे रही थी। 

अपनी भैंस को ना देखकर गीता जोर जोर से रोने लगी, मेरी भैंस पानी में डूब गई, अब माॅं मेरी पिटाई करेंगी।’

मैंने कहा, गीता भैंस पानी के अंदर है, थोड़ी देर में बाहर आ जाएगी परंतु उसने  मेरी एक ना सुनी और तालाब में छलांग लगा दी।



थोड़ी ही देर में गीता गहरे पानी

में चली गई, बुलबुले उठने लगे ,यह देख मुझसे  रुका नहीं गया, और उसे बचाने के लिए मैंने भी तालाब में छलांग लगा दी।

मैंने बचपन में एक कहानी पढ़ी थी जिसमें जलपरी डूबते हुए व्यक्ति को बचा लेती है। बस उस जलपरी की भांति मैं भी पानी में तैरने लगी।  सचमुच उस दिन मैं पहली बार  में तैर रही थी।

 मैं उसे पानी के भीतर चारों तरफ   ढूॅंढ रही  थी।नीचे पानी थोड़ा-थोड़ा साफ था परंतु जमीन दिखाई नहीं दे रही  थी, भीतर धुआं धुआं सा  दिखाई दे रहा था। चारों कोनों में घूमने के बाद भी वह  नहीं मिली।मेरा दिल बैठा जा रहा था। मैं रूआंसी होकर उसे ऐसे ढूंढ रही थी मानो कोई मां अपने बच्चे को ढूंढती रही हो ।  मेरी आंखों से आंसू   बह रहे थे।

 परंतु 

  एक उम्मीद  भी थी  कि वह मुझे जरूर मिलेगी।

मैं डूब ना जाऊं इस डर से मेरी बाकी खड़ी  सहेलियाॅं मुझे वापस बुला रही थी परंतु मैं बिना गीता के वापस किनारे पर नहीं आना चाहती थी अबकी बार मैंने गहरे पानी में जाने का निश्चय किया। जैसे ही मैं गहरे पानी में गई, वहाॅं कई जगह पथरीले  पत्थर थे जिन से मेरे पैर छिल गए। थोड़ी ही दूरी पर मेरा पैर गीता के सिर पर लगा।  उसकी छूअन से मैं एकदम खुश हो गई।मैंने पानी में जाकर देखा गीता बेहोश पड़ी  थी। मैं पहली बार तैर रही थी इसलिए मुझे उसे उठाने में बहुत दिक्कत हो रही थी।



 जैसे ही मैंने उसे उठाया मैं खुद  गहराई में चली गई। पानी से मेरा दम घुटने लगा । ऐसा लग रहा था मानो मृत्यु  मुझे  लील रही हो ,सांस लेने में तकलीफ हो रही थी परंतु मैंने हिम्मत नहीं हारी और जैसे तैसे करके गीता को किनारे तक ले आई।

 मेरी सहेलियाॅं मुझे और गीता को देखकर बहुत खुश  थी परंतु  हमारी खुशी थोड़ी देर में ही मायूसी में बदल गई । गीता को होश ही नहीं आ रहा था। फिर हमने उसे पेट के बल लिटा कर दबाया उसके मुंह से बहुत सारा पानी निकला।

थोड़ी देर बाद उसे होश  आ गया उसके होश में आते ही 

मैं बेहोश हो गई

परंतु मुझे थोड़ी देर बाद ही होश आ गया

हम सभी खुशी के मारे जोर जोर से रोने लगे । गीता बार-बार मेरे हाथों को  चूमते  हुए कह रही थी 

‘आज  तुम्हारे ये हाथ  मेरे लिए सहारा  बन गए’।

उस दिन से कई रातो तक मौत का वह दृश्य  हर दिन मेरी नींद में आता और  मेरा दम घोंटता  डर के मारे मैं  रात को सोते-सोते उठ जाती । मुझे ऐसा लगता मानो मैं अभी भी उसी तालाब में तैर रही हूॅं। आंख खुलने पर  सारा भ्रम टूटता।

#सहारा 

अनीता चेची,मौलिक रचना

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