डॉक्टर अंकल!जल्दी आइए…साहब की तबियत काफी बिगड़ गई है ..पूनम की घबराई आवाज सुनकर
डॉक्टर श्रीधर जल्दी ही अपना बैग संभालते घर से निकल पड़े।
श्रीधर और सुधीर सक्सैना बहुत करीबी दोस्त थे,सुधीर जी को डायबिटीज थी और वो अक्सर चोरी छिपे
मीठा खा लेते और शुगर शूटअप हो जाती थी और उनकी तबियत बिगड़ जाती।फलस्वरूप उनकी केयरटेकर
पूनम डॉक्टर श्रीधर को फोन कर बुला लेती।
वहां पहुंचते ही श्रीधर जल्दी से सुधीर को चैक करते,कुछ मेडिसिन देते और ठीक होने पर सुधीर को मीठी
झिड़की देते…क्यों बच्चा बन जाता है यार!बार बार मना करने पर मीठा खाता है…सुन ले कान खोल कर,अबकी
बार ऐसा किया तो मेरी तेरी दोस्ती खत्म..
किसके लिए जिऊं यार!सुधीर उदास होकर कहते,जब से रीमा गई है सब खाली हो गया,बच्चे बिजी हैं,न पोता
पोती पास में,क्यों इस बोझिल जिंदगी को जिए चला जा रहा हूं?
खबरदार!ऐसा कहा तो!!क्या मुझे नहीं देखता तू?मेरा भी कौन है तेरे सिवा?श्रीधर भावुक होते कहते तो सुधीर
अपनी कही बात वापिस लेता।
फिर भी तेरा बेटा अमन तेरा काफी ध्यान रखता है श्री…तू बहुत भाग्यशाली है।
दूर से सबको ऐसा ही लगता है पर असलियत ये नहीं है..श्रीधर बड़बड़ाया,पर वो ये बात कहकर सुधीर को
निराश नहीं करना चाहता था, जानता था उसकी बीमारी में अगर उसको समाज में कोई सच्चाई और अच्छाई
की किरण नहीं दिखी तो वो डिप्रेस हो जाएगा जो उसके स्वास्थ्य के लिए खतरनाक साबित हो सकती थी।
अच्छा!ये बता…अमन कब आ रहा है इंडिया?इस बार तो शायद वो सिल्विया और बच्चों को भी लाएगा?सुधीर
बोला।
पता नहीं भाई!आ जाएगा,बहुत बिजी हैं दोनो…कौन जाने कब आएंगे?श्रीधर गहरी सांस लेते बोले।
घर लौट के आए तो बहुत उदास थे श्रीधर।पूनम की दी चाय भी ठंडी हो गई थी और वो पुराना बक्सा सामने
खोले अपनी पत्नी उमा और बेटे अमन के पुराने खिलौने देखकर आंसू बहा रहे थे।
साहब!चाय फिर बना दूं?पूनम ने पूछा।
उसे बिना देखे श्रीधर बोले…उमा!क्यों जिद कर रही हो,चाय फिर भी बन जाएगी,देख रही हो न अपने बेटे के
संग खेल रहा हूं मैं इस समय चाय नहीं पियूंगा।
पूनम भौंचक्का होकर उन्हें देखते रह गई…साहब को लगता है फिर बैठे बैठे दौरा पड़ा है,पिछले काफी समय से
उन्हें अपनी मृत पत्नी याद आती तो वो उनसे बोलते रहते थे और भूल जाते थे कि वो इस दुनिया में नहीं थीं
अब।
पूनम ने ड्राइवर रामसिंह को बुलाया और साहब की स्थिति के बारे में बताया।
फिक्र मत करो, मैं छोटे साहब अमन को इनफॉर्म कर देता हूं,इस उम्र में आदमी का कुछ भरोसा नहीं,कभी भी
कुछ हो जाए।
मत भूलो कि वो खुद एक डॉक्टर हैं…पूनम बोली।
हम्मम…तो क्या डॉक्टर बीमार नहीं पड़ते,उन्हें मौत नहीं आती क्या?रामसिंह बोला।
अगले हफ्ते,डॉक्टर श्रीधर फिर बैठे अमन के खिलौनों संग खेल रहे थे कि पीछे से किसी ने आकर आवाज़
दी…बाऊ जी!
क्यों परेशान करता है अमन बेटा!कितनी लुका छिपी खेलेगा मेरे साथ?अब आ भी जा बेटा!
आ गया…अमन ने श्रीधर के गले में अपनी बाहों का हार पहनाते कहा।
अमन!क्या सच में ये तू हो है?अपनी आँखें मलते श्रीधर बोले,उनकी आंखों से अविरल अश्रु बहने लगे थे।
हां बाऊ जी!आपकी याद आई तो मैं चला आया,उसने ये नहीं बताया कि रामसिंह ने मुझे फोन कर बुलाया
था।
बहु और बच्चे कहां हैं, तू अकेला क्यों आया?कब से उन सबको देखने को मन तरस रहा है?
वो नहीं आए क्योंकि इस बार आप हमारे साथ वहीं चलेंगे,सबके साथ मिलकर रहेंगे तो आपका मन भी लग
जाएगा।अमन बोला।
नहीं..नहीं…अपनी धरती से दूर,विदेश में मेरा मन नहीं लगेगा..श्रीधर बोले।
लेकिन बाबा!वहां घर में ही सारी सुविधा का सामान ला रखा है,आपको जरा परेशानी नहीं होगी।
खाक सुविधा है बेटा!चार दिवारी में बंद ऐशो आराम में दम घुटता है मेरा वहां,न घूमने की आजादी न बोलने
की…मैं यहां से कहीं नहीं जाऊंगा।
लेकिन आपकी तबियत अब खराब रहती है,आप अकेले यहां नहीं रह सकते बाऊ जी!
अकेला कहां हूं मैं?पूनम और रामसिंह रोज आ जाते हैं मेरे पास…मिनटों में मेरी समस्या दूर कर देते हैं ,तुम
परेशान मत हो।
लेकिन बाऊ जी…अब मैं आपकी जिद नहीं सुनूंगा,आपको हमारे साथ चलकर रहना हो होगा,मैंने आपकी
टिकट बुक करा ली है।
मेरे से पूछे बिना?श्रीधर दृढ़ता से बोले,लेकिन मैं यहां से कहीं नहीं जाऊंगा,अपनी मातृ भूमि छोड़कर।
बाऊ जी…अमन विरोध करता बोला,ऐसे कैसे चलेगा?
क्यों जब तुम वहां नौकरी करने गए और मनमर्जी से शादी कर ली तब नहीं सोचा था कि ऐसे कैसे
चलेगा…अब मुझे ,मेरे हाल पर छोड़ दो और लौट जाओ यहां से।
ये क्या बात हुई बाऊ जी!हॉयर स्ट्डीज के लिए आपने और मां ने ही कितनी खुशी खुशी मुझे वहां भेजा,तब
आप दोनो कितना खुश होते थे कि सोसाइटी में हमारा सिर ऊंचा कर दिया तुमने,और अब क्या बदल गया?
क्यों तुमने अपनी पसंद की फिरंगी लड़की नहीं चुनी उसके बाद? बुड्ढे बुढिया की कौन सुने?तुम्हारी मां अपने
पोते को देखने की आस लिए इस दुनिया से चली गई.. मैं भी जल्दी उसके पास चला जाऊंगा।
शुभ शुभ बोलिए बाऊ जी!अमन घबराते हुए बोला।
अरे बरखुरदार!फिर आप आजाद हो जाएंगे,मजे से अपनी पत्नी और बच्चों के साथ रहना फिर।
ये तो गलत बात है बाबा!आप मुझ पर आरोप लगाए जा रहे हैं,पिछली गलतियों को माफ करें प्लीज!और
चलिए मेरे साथ।
नहीं…श्रीधर की आवाज काफी दृढ़ थी,पहले मुझे यात्रा पर जाना है।
कहां?वैष्णो देवी,बालाजी या कहीं और?बताइए.. मैं भी आपके साथ चलूंगा।
नहीं…बहुत दूर जाना है मुझे लेकिन मरने से पहले।
बार बार मरने की बात क्यों करते हैं आप?अमन बोला,अभी तो आपको बहुत कुछ देखना है,बच्चों को
आशीर्वाद दिए बिना आप कहीं नहीं जा सकते हैं।
लेकिन श्रीधर ने एक न सुनी और अगले दिन मुंह अंधेरे घर से बिना बताए निकल पड़े।
अमन की आंख खुली तो ये मनहूस खबर पूनम ने उसे दी और वो उछल कर बैठ गया।
चले गए?कहां चले गए??कौन गया उनके साथ?ओह!क्या अकेले ही?उनका ध्यान कौन रखेगा,अक्सर चीजें
भूल जाते हैं वो…
कुछ घंटे वो उनके दोस्तों के पास फोन करता रहा,कहीं नहीं गए थे,सुधीर अंकल से बात की,पूछा कुछ कह
रहे थे क्या?
सिवाय दुखी होने और निराश होने के वो कुछ नहीं कहता था बल्कि वो तो मुझे हौसला देता रहता था,सुधीर
को भी आश्चर्य था।
उधर श्रीधर पैदल अकेले अनजान रास्तों पर भटक रहे थे।अचानक एक ऑटो उनके पास आकर रुका।
डॉक्टर साहब नमस्ते!वो ऑटो वाला बोला।
कौन हो भाई?वो अचकचा के बोले।
नहीं पहचाना आपने?आपने मेरी पत्नी को एक बार मौत के मुंह से बचाया था और बिना फीस के…दवाई भी
मुफ्त दी थी , मैं आपका उपकार नहीं भूल सकता कभी।
ओह!मुझे याद नहीं…डॉक्टर मुस्कराए और चलने लगे।
आप कहां जा रहे हैं? वो बोला।
कोटा जाऊंगा…वो अपनी धुन में बोले।
चलिए! मैं आपको रेलवे स्टेशन छोड़ देता हूं।
नहीं…मैं पैदल ही जाऊंगा…उनके चेहरे पर अजीब से भाव थे।
इन्हें क्या हुआ?ऑटो वाला घबराया,क्या इनकी तबियत खराब है?इनका भी घर में कोई झगड़ा हुआ क्या?क्या
ये बड़े लोग भी आपस में लड़ते हैं और दुखी होते हैं?
तुम जाओ…मैं चला जाऊंगा…डॉक्टर बोले।
नहीं नहीं,प्लीज बैठे, मैं चलूंगा आपके साथ,जहां कहेंगे।
डॉक्टर उसके ऑटो में आ बैठे,शायद उस ऑटो वाले को उनका एड्रेस याद था,थोड़ी देर में वो उनके घर के
सामने जा पहुंचा।
घर की छत पर परेशान,डॉक्टर का बेटा अमन उन्हें देखता खुशी से चिल्लाया…
बाबा!बाबा!!आप लौट आए?
श्रीधर ने घबरा के ऑटो वाले से कहा…दौड़ाओ ऑटो यहां से…जल्दी….
उनकी बेचैनी देखकर ओटी वाले ने अपनी रिक्शा दौड़ा दी।
बेचारा अमन हाथ मलता रह गया लेकिन ऑटो वहां से दूर निकल गया था।।
आप क्यों भाग रहे हैं घर से? ऑटो वाले ने पूछा उनसे…आपका बेटा यही है,वो परेशान है,फिर भी?
तुम नहीं समझोगे…मैं बहुत अकेला हूं…वो विदेश में अपनी पत्नी,बच्चों के साथ रहता है,अब आ गया मुझे लेने।
तो चले जाइए उनके साथ…क्या समस्या है?
अपने देश से दूर?क्या मैं पागल हूं,वहां वो आजादी कहां जो यहां है?तुम मेरा दर्द नहीं समझोगे,छोड़ो।
ये बात आपको तब सोचनी चाहिए जब आप अपने बेटे को विदेश पढ़ने भेज रहे थे डॉक्टर साहब!आप बुरा
मत मानिए पर आज आप मुझे निराश कर रहे हैं…आपकी बहुत इज्जत करता हूं मैं क्योंकि आपने निस्वार्थ
मेरी पत्नी का इलाज किया लेकिन जिंदगी का ये पाठ पढ़ना आप भूल गए…बबूल का पेड़ बोकर आप आम
खाना चाहे तो मुमकिन कहां?
ये अनपढ़ आदमी,आज एक पढ़े लिखे आदमी को जिंदगी का वो फलसफा सिखा रहा था और डॉक्टर
साहब जैसे जमीन पर आ गिरे आसमान से।
जिंदगी में दर्द सबको हैं,उन्हें अपनी ही फिक्र है कि उनका बेटा बाहर सेटल हो गया लेकिन उनका बेटा भी तो
आज तक उनसे इमोशनली नहीं टूट पाया पूरी तरह…जो उनके लिए परेशान है,घर मे अकेला रुककर उनका
इंतजार कर रहा है,छुट्टी लेकर आया है सिर्फ उनके लिए…शायद इस बार वो गलत हैं।
तुम मुझे घर ही ले चलो …डॉक्टर श्रीधर बोले आहिस्ता से।
ऑटो वाला मुस्कराया…थैक्यू डॉक्टर साहब!इस दुनिया में सबके दर्द हैं,कहे,अनकहे …कुछ लोग उसे दिखा देते
हैं ,कुछ छुपा लेते हैं,कुछ दर्द होने पर भी मुस्कराते रहते हैं,आपने पूरी जिंदगी इतनी सच्चाई,बिना स्वार्थ काम
किया,अब क्यों अविश्वास के जहर को दिल में पाले बैठे हैं,अपनी परवरिश और संस्कारों पर भरोसा
रखिए,आपका बेटा आपकी पूरी देखभाल करेगा।
समाप्त
डॉक्टर संगीता अग्रवाल
वैशाली,गाजियाबाद
#अनकहे दर्द