दोहरी मानसिकता – संगीता अग्रवाल

” अरे अरे ये क्या राघव तुमने ये चिप्स का खाली पैकेट बाहर क्यो फैंका ?” तृप्ति अपने पति से बोली।

” अरे क्या फर्क पड़ता है एक पैकेट ही तो है बाकी लोग भी तो फैंकते है ना !” राघव लापरवाही से बोला।

” लोग फैंकते है तो जरूरी नही हम भी फेंके सभी ऐसा सोचने लगे तो हो गया देश का कल्याण !” तृप्ति बोली और गाडी से बाहर निकल पैकेट उठा पास के कूड़ेदान मे डाल आई।

दोनो घर वापिस आ गये।

” राघव तुम फिर बाल्टी मे नल खुला छोड़ फोन मे लग गये !” थोड़ी देर बाद तृप्ति कमरे मे आ बोली।

” अरे वो बस मैं नहाने ही जा रहा था कि एक कॉल आ गई !” राघव फोन रखते हुए बोला।

” तो नल बंद करके भी तो आ सकते थे कितना पानी वेस्ट करते हो तुम कितनी बार समझाया तुम्हे पर समझ नही आता !” तृप्ति भड़कते हुए बोली।

” क्यो भड़क रही हो पैसे देते है हम पानी के फ्री का तो नही इस्तेमाल करते तुम्हे तो आदत है बेवजह बात का बतंगड़ बनाने की !” राघव गुस्से मे बोला ओर तौलिया उठा नहाने चल दिया।

ये तो सिर्फ दो उद्धाहरण है जिनसे तृप्ति को चिढ है वरना राघव को तो लाइट , पंखे खुले छोड़ने की, गाडी का इंजन चालू रख कही भी रुक जाने की , पार्क मे घूमते हुए फूल तोड़ लेने की और भी ना जाने क्या क्या बुरी आदते है जो तृप्ति को नही पसंद और वो इसके लिए राघव को टोकती रहती है पर उसके कान पर जूँ तक नही रेंगती।

” राघव चलो जरा मार्केट से थोड़ा सामान लाना है !” रविवार को तृप्ति राघव से बोली।

” ठीक है तुम आ जाओ मैं गाडी निकालता हूँ !” राघव चाभी उठाता हुआ बोला।

” अरे गाडी रहने को पास की मार्केट ही तो जाना है क्यो बेवजह पेट्रोल फूकना वैसे भी इस बहाने थोड़ी सैर भी हो जाएगी !” तृप्ति बोली।

” यार तृप्ति तुम अपनी कंजूसी की आदत नही छोड़ोगी पर मैं कंजूस नही हूँ तुम जल्दी से आओ मैं गाडी निकाल रहा हूँ !” राघव ये बोल बाहर निकल गया मजबूरी मे तृप्ति को भी आना पड़ा।

” उफ़ कितना ट्रैफिक है पता नही लोगो को रविवार को ही बाज़ार निकलना होता है वो भी गाड़ियां ले लेकर ये नही एक दिन तो गाडी को आराम दे और पैदल निकल जाये इन गाड़ियों की वजह से कितना पोल्लुशन हो रहा है !” ज़ाम मे फंसा राघव बड़बड़ाया।

” अच्छा …खुद गाडी मे बैठ दूसरो को ज्ञान दे रहे हो तुम्हे भी तो मैने कहा था पैदल चलने को !” तृप्ति उसे घूरती हुई बोली।




” एक मेरे अकेले के से क्या होता है जब बाकी लोग नही सोचते इस बारे मे तुम भी ना बेवजह मुझे ही बोलती हो !” राघव बोला और ज़ाम खुलने पर गाडी निकाल ले गया।

बाज़ार मे आकर गाडी साइड खड़ी कर दोनो खरीदारी करने लगी।

” उफ़ कितनी गंदी बदबू आ रही है यहाँ !” अचानक तृप्ति नाक पर रुमाल रखते बोली।

” वो देखो नाली ओवरफ्लो हो सारा पानी सडक पर आ रहा है बदबू तो होनी ही है पता नही क्यो लोग सड़को पर गन्द डाल देते है जो उड़ कर नालियों मे पहुँच उन्हे ब्लॉक कर देता है !” अपनी पेंट ऊपर कर साइड से निकलता राघव बोला।

” राघव उन्ही लोगो मे से एक तुम भी हो तो तुम्हे कोई हक नही किसी पर ऊँगली उठाने का !” तृप्ति बोली।

” एक मेरे अकेले के करने से क्या होता है वैसे भी मेरा एक पैकेट ही तो ये नालियाँ नही रोकता ये तो उन जाहिल लोगो की वजह से है जिन्हे सिर्फ कचरा फैलाना आता ऐसे लोगो की वजह से ही देश तरक्की नही कर सकता !” ये बोल राघव एक दुकान मे घुस गया । तृप्ति हैरान थी राघव की बाते सुन कैसे कैसे दोहरे चेहरे रखते लोग जो काम खुद करते उसी के लिए दूसरो को कोसते है फिर कहते है देश कैसे तरक्की करेगा। खैर तृप्ति ने सामान लिया और घर आ गये दोनो।

” राघव तुम जल्दी से नहा लो इतने मैं चाय बनाती हूँ !” बाज़ार से आने के बाद तृप्ति सीधा नहाने गई क्योकि वो गंदगी से गुजर कर आई थी।

” तृप्ति …तृप्ति …पानी ही नही आ रहा यार !” राघव स्नानघर से चिल्लाया।

” लगता है टैंक खाली हो गया सोसाइटी का और अभी लाइट भी नही जो मोटर चल सके !” तृप्ति बोली।




” तो अब मैं क्या करूँ साबुन लगा है मेरे शरीर पर !” राघव बोला।

” वैसे तो तुम्हे पानी देना नही चाहिए क्योकि तुम बहुत पानी बेकार बहाते हो पर तुम गन्द से गुजर कर आये हो तो मैं थोड़ा पानी रसोई से दे रही हूँ पर हां थोड़ा सा !” तृप्ति ये बोल आधी बाल्टी पानी ले आई।

” कैसे कैसे लोग है बताओ सोसाइटी मे सारा पानी ही खत्म कर दिया टैंक का बिना ये सोचे दूसरो को कितनी परेशानी होगी …इसलिए मुझे भारत पसंद नही यहाँ के लोगो मे जरा भी समझ नही !” राघव बाहर आ गुस्से मे बोला।

” वाह राघव तुम सही हो खुद जो गलत काम करते उनके लिए दूसरो को कोस रहे देश को कोस रहे ! तुम्हारा एक पैकेट नाली नही रोक सकता पर तुम्हारे जैसे दस लोगो से तो रुक सकती । तुम्हारे एक के गाडी ले जाने से ट्रैफिक नही होगा पर जब सभी तुम्हारे जैसी सोच रखे तब तो होगा। तुम्हारे एक बाल्टी पानी वेस्ट करने से कुछ नही होगा पर ऐसा सोसाइटी के सभी लोग करने लगे तब तो होगा ना । फिर तुम कैसे दोहरी मानसिकता और दोहरा चेहरा रख सकते हो !”तृप्ति के लिए अब बर्दाश्त करना मुश्किल हो गया तो वो फट पड़ी।

” क्या बकवास कर रही हो तुम !” राघव गुस्से मे बोला।

” सही कह रही हूँ बिल्कुल ..बाकी सब लोग भी तो तुम्हारी तरह सोचते होंगे ना कि हमारे अकेले के से क्या फर्क पड़ता है …इसकी जगह सब ये सोच ले मेरे अकेले से भी बहुत फर्क पड़ता है तो कोई परेशानी ही ना आये ना …देश से तुम्हे क्या मिल रहा क्या परेशानी वो तो तुमने गा दी तुम देश के लिए क्या कर रहे ये सोचा है तुमने ।” तृप्ति बोली।

राघव उसकी बात सुन सोच मे पड़ गया तृप्ति चाय ले आई दोनो ने चाय पी और आराम करने लगे।

तृप्ति के इतना कहने के बाद अगर आप सोच रहे है राघव सुधर गया तो आप गलत है । वो अब भी लाइट खुली छोड़ देता है , कई बार नल भी खुला छोड़ देता है , पैकेटस भी बाहर फैंकने को होता है पर अब वो अपनी गलती खुद सुधार भी लेता है जैसे लाइट खुद से बंद कर देना और याद आते ही नल बंद कर देना । तृप्ति के घूरने पर पैकेट बाहर नही फेंकना पर अब वो देश या देश के लोगो को नही कोसता । अब वो  मुस्कुरा कर कहता है ” आदत है धीरे धीरे जाएगी।”

दोस्तों ऐसे बहुत से लोग है जो राघव की तरह खुद देश की सम्पदा को नुकसान पहुँचाते है , देश को गंदा करते है या प्राकृतिक संसाधनों का दुरप्रयोग करते है फिर देश को ही कोसते है । ऐसे दोहरे चेहरे वाले लोग ही देश की तरक्की मे बाधक है । क्या आप भी इनमे से एक है तो अपनी आदत बदलिए तभी देश का विकास होगा।

आपकी दोस्त

संगीता ( स्वरचित )

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