दो सहेलियां  – गीता वाधवानी

नीतू और गीतू दोनों पक्की सहेलियां, मानो दो जिस्म एक जान। एक ही मोहल्ले में आसपास दोनों के घर। नर्सरी से कॉलेज तक एक साथ पढ़ाई की। जब शादी की उम्र हुई, तब दोनों को यह चिंता सताने लगी कि कहीं हम बिछड़ ना जाएं। दोनों ने एक दूसरे को वचन दिया कि हम दोनों में से अगर किसी की शादी किसी दूसरे शहर में हो गई तो, दूसरी सहेली भी उसी शहर में शादी करने की कोशिश करेगी। दोनों को लगता था कि हम दोनों एक दूसरे के बिना रह  ही नहीं सकते। एक ही शहर में शादी हो गई तो कम से कम एक दूसरे से मिल तो सकेंगे। 

थोड़े समय बाद नीतू का बहुत अच्छे घर से रिश्ता आया और चंद महीनों बाद ही उसकी शादी हो गई। गीतू अब अकेली पड़ गई थी। अकेले बिल्कुल उसका मन नहीं लगता था और उधर नीतू ने अपने मधुर व्यवहार से अपने ससुराल वालों का दिल जीत लिया था। उसके ससुराल में सब बहुत खुश थे। उसे भी गीतू की बहुत याद आती थी। 

कुछ समय बाद जब उसके देवर के लिए रिश्ता देखा जा रहा था तब नीतू ने बहुत सोच समझकर अपने देवर राहुल के लिए गीतू के बारे में अपनी सास को बताया। नीतू के कुशल व्यवहार से घर के सभी सदस्य बहुत खुश थे इसीलिए उसकी सास ने इस रिश्ते के लिए हामी भर दी और फिर सभी बड़ों ने आपस में बातचीत करके रिश्ता तय कर दिया। गीतू के मां-बाप भी सहर्ष तैयार हो गए थे। राहुल और गीतू का विवाह धूमधाम से संपन्न हुआ। 

दोनों सहेलियों के एक ही घर में होने से उनके परिवार की खुशियां भी दुगनी हो गई। लेकिन किसी की खुशियां और सुख दूसरों से कहां बर्दाश्त होते हैं। कहते हैं कि लोग अपने दुख से इतने दुखी नहीं होते जितने कि दूसरों के सुख से दुखी होते हैं। नीतू -गीतू के ससुराल में भी कलावती नाम की एक चचिया सास थी, जो कि उनकी खुशियां और परिवार की एकता को देखकर मन ही मन कुढ रही थी । शायद उसने उनके परिवार की एकता को तोड़ने की योजना बना ली थी इसीलिए वह शादी समारोह से वापस जाने के बाद बार-बार उनके घर रहने आ जाती थी और इस बार तो ऐसी आई कि जाने का नाम ही नहीं ले रही थी और मेहमान को जाने के लिए कहना, यह तो भारतीय संस्कारों में है ही नहीं। 

एक बार की बात है नीतू नहाने के लिए गई हुई थी, तब गीतू ने सबके लिए चाय बनाई और चाय ठंडी हो जाएगी ऐसा सोचकर उसने नीतू के लिए चाय नहीं बनाई। उसने सोचा कि जब वह नहा कर आ जाएगी तब गरमा गरम चाय बना कर दे दूंगी। लेकिन कलावती ने इस बात का भरपूर फायदा उठाया और नीतू को भड़काने लगी-“नीतू बेटी, तुम तो अपनी सहेली को देवरानी की बजाय छोटी बहन मानती हो, लेकिन देख लो उसने तुम्हारे लिए चाय नहीं बनाई, बाकी सब लोगों को दे चुकी है।”नीतू ने उनकी बात पर कोई ध्यान नहीं दिया। 




फिर एक दिन नीतू कुछ सामान खरीदने बाजार गई। वहां उसे एक और पुरानी सहेली संध्या मिल गई। संध्या ने उसे अपने साथ गोलगप्पे खाने के लिए कहा। तब नीतू ने उसके साथ गोलगप्पे खा लिए और घर आकर गीतू को संध्या के बारे में बताया। तब कलावती ने गीतू को भड़काया-“देखा गीतू बिटिया, तुम तो उसे जेठानी की बजाय बड़ी बहन जैसा सम्मान देती हो। देखो ना, तुम ना जाने कब से गोलगप्पे खाना चाह रही थी लेकिन नीतू को तुम्हारी परवाह कहां, वह तो किसी और सहेली के साथ गोलगप्पे खा कर आ गई और फिर तुम्हें खुशी-खुशी बता भी रही है, बड़ी बेशर्म है।” 

पहले तो दोनों सहेलियां कलावती की बातों पर ध्यान नहीं देती थी लेकिन धीरे-धीरे दोनों पर उनका असर दिखने लगा था। थोड़े समय बाद वह किसी ना किसी बात पर आपस में उलझने लगी थी। दोनों में तू-तू मैं-मैं शुरू हो गई थी। घर की खुशियां समाप्त होती दिख रही थी। 

   तब नीतू और गीतू की सासु मां ने समझदारी दिखाते हुए हाथ जोड़कर कलावती को अपने घर जाने के लिए कह दिया क्योंकि उन्हें वही झगड़े की जड़ नजर आ रही थी और दोनों बहुओं को उनके मायके भेज दिया। मायके भेज कर दोनों बहुओं की मम्मियों को फोन करके पूरी बात बताई। 

दोनों माताओं ने अपनी अपनी बेटियों को समझाया-“यह क्या किया बिटिया, तुम तो कान की कच्ची निकली। अपने बचपन की सहेली की बात पर विश्वास ना करके, तुमने कलावती की बातों पर तुरंत यकीन कर लिया। अपनी बरसों पुरानी दोस्ती को ताक पर रखकर, सच्चाई को जानने की कोशिश भी नहीं की और आपस में झगड़ा शुरू कर दिया। अपने घर की खुशियों को खुद ही नजर लगा दी। बिटिया, कुछ लोग ऐसे होते हैं जो दूसरों की खुशियां बर्दाश्त नहीं कर पाते, कलावती भी उनमें से एक है क्योंकि उनकी तीनों बहुएं आपस में बहुत लड़क है और यहां तक कि कभी-कभी

 बात हाथापाई तक आ जाती है और अपनी लड़ाई में वे कलावती का भी बहुत अपमान करती हैं। तब वे तुम्हारा आपस में मिलजुल कर रहना, हंसना बोलना कैसे बर्दाश्त करती। उनका तो यही प्लान था कि तुम दोनों आपस में लड़ने लगे और तुम दोनों की बेवकूफी ने उनके प्लान को सफल कर दिया। हमें तुमसे ऐसी आशा ना थी। आइंदा ध्यान रखना कि किसी की बातों में नहीं आना, कोई भी समस्या हो ,आपस में बातचीत करके उसे सुलझाना। हमेशा समझदारी से काम लेना, वरना घर टूटते देर नहीं लगती। तुम्हारी सासू मां ने कलावती को अपने घर जाने के लिए कहकर बिल्कुल सही कदम उठाया है।” 




नीतू और गीतू को बात समझ में आ गई थी। दोनों को अपनी भूल का एहसास था

। दोनों ने अपने-अपने कान पकड़े और हंसते-हंसते एक दूसरे को गले लगा लिया और एक साथ चल पड़ी, अपनी ससुराल। 

स्वरचित गीता वाधवानी दिल्ली

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