दो आँखें  – पुष्पा जोशी

‘मम्मा प्लीज जाते समय लाइट बंद करते जाना, मुझे लाइट में नींद नहीं आती।’

‘बेटा समायरा ! छोटा बल्ब जलने दो,क्या तुम्हें अंधेरे में डर नहीं लगता?’

‘कैसे लगेगा मम्मा ? तुम्हारी दो आँखें उसे मेरे पास आने ही नहीं देती,कितना ध्यान रखती हो मेरा, बेचारा डर…..डर कर भाग जाता है,और हाँ, कभी भूलकर सपने में भी मेरे पास नहीं आता। सपनों में भी हमेशा रंगीनियां होती है,अंधेरा कहीं नहीं।’

‘अच्छा अब बस कर, सोजा।’ रोजी के होटों पर हल्की मुस्कान आ गई थी,उसने समायरा के सिर पर हौले से हाथ फेरा, लाइट बंद की और सोने चली गई।’

उसके कानों में समायरा के शब्द गूंज रहै थे “तुम्हारी दो आँखें डर को मेरे पास आने ही नहीं देती”

रोजी  को याद आई वे दो आँखें जिन्होंने उसकी नींद उड़ा दी थी, समायरा की तरह वह भी उस समय १३ वर्ष की थी। उसका अतीत उसकी आँखों‌ के आगे घूम रहा था, वह तकिए का सहारा ले बिस्तर पर बैठ गई,उसे याद आया कि किस तरह “एक ख्वाब जाने अनजाने मेरी आँखों में पलने लगा था,आँखें बंद करते ही आ धमकता। किसी अनचाहे मेहमान सा, कुण्डली मारकर बैठ गया था मेरी आँखों में।मुझे  डर लगने लगा था अंधेरे से, रात में भी तेज रोशनी में सोती। माँ कहती ‘ बेटा! सोते सयय इतनी रोशनी काम की नहीं।’ मगर उन्होंने यह जानने की कोशिश ही नहीं कि मैं ऐसा क्यों करती हूँ। उन्हें अपनी पार्टी, पिकनिक से फुर्सत ही कहाँ मिलती थी, पापा अपने काम धंधे में व्यस्त रहते,कभी समय मिलता तो मम्मी कभी पिक्चर का तो कभी किसी पार्टी का प्रोग्राम बना लेती। एक बार मम्मी के साथ उनकी मौसी के यहाँ एक शादी में ग‌ई थी,उस समय मेरी उम्र ११ साल की थी, मम्मी उनके रिश्ते के किसी भतीजे को अपने साथ लेकर आई थी,उसका नाम मदन था,

और वह लगभग १८ साल का था। मम्मी ने उसे हमारे साथ रखने का निश्चय किया था।वह हमारे साथ रहता और उसे भी विद्यालय में भर्ती करा दिया था। कुछ समय मुझे भी अच्छा लगा कि चलो मुझे भी एक भाई मिल गया। माँ पापा के सामने उसका व्यवहार बहुत अच्छा रहता, जैसे बहुत शरीफ हैं,मगर…… मुझे उसकी आँखों को देखकर पता नहीं कैसा एहसास होता, लगता कि वे हर पल मेरा पीछा कर रही है। मैं  सोचती कि माँ इसे क्यों लेकर आई, और माँ बहुत खुश थी कि अब उन्हें मेरी चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है,मुझे मदन के भरोसे छोड़ वे आराम से सैर सपाटे करती,मुझे अच्छा नहीं लगता,उम्र भी छोटी थी एक डर सा लगता था,असुरक्षा का भाव लगता।मेरे कमरे के पास के कमरे में,वह देर रात तक पढ़ाई करता। क‌ई बार माँ से कहना चाहा कि वे उसे वापस भेज दें,मगर माँ को तो जैसे उस पर मुझसे भी ज्यादा विश्वास था। हालांकि उसने कभी कुछ कहा नहीं मगर उसकी आँखों और हाव-भाव से मुझे डर लगता था।



रात में सोती तो वही ख्वाब …..आँखें खुलती और मैं पसीने-पसीने हो जाती। एक दिन अचानक जोर से चीख निकली मेरे मुंह से और माँ पापा दौड़ कर आए,बोले क्या बात है रोजी? क्या कोई बुरा सपना देखा? तू तो कांप रही है,क्या हुआ बेटा? कुछ तो बोल। मैं डर गई थी, आँखों से आँसू झर रहै थे, मैं कुछ बोल नहीं पा रही थी। मैं 

माँ की गोद में ढुलक गई।वे परेशान हो गए मुझे डॉक्टर के पास लेकर ग‌ए। डॉक्टर ने जांच की, कुछ दवा दी और कहा इसे शारीरिक परेशानी कुछ नहीं है,थोड़ी देर में इसे होश आ जाएगा।क्या इसे पहले भी ऐसी कुछ परेशानी हुई,आपसे इसने कभी कुछ कहा।ऐसा लग रहा है, कोई डर इसके अन्दर समाया हुआ है,अगर आप ठीक समझें तो मनो चिकित्सक मोनिका जी, जो मेरी अच्छी मित्र  हैं, उनसे मिल लें।

पापा- मम्मी मुझे मोनिका जी के पास ले ग‌ए। उन्होंने मम्मी पापा को बाहर बैठने के लिए कहा,वे मुझसे अकेले में बात करना चाहती थी। वे मुझे सीधी,सरल लगी उनका बात करने का ढंग बहुत प्रभावशाली था।वे इधर उधर की बातें करती रही फिर जब मैं उनके साथ कुछ सहज हो गई, तब उन्होंने पूछा। बेटा आपकी मम्मी बता रही थी,कि आप कल रात में डर गई थी। बेटा डरने से तो समस्या का हल होगा नहीं, और जब तक आप नहीं बताएंगी हमें पता कैसे चलेगा।क्या कोई ख्वाब आपको परेशान करता है? उनका एक हाथ लगातार मेरे बालों को सहला रहा था।उनकी आवाज में ऐसा जादू था कि मुझे रोना आ गया। वे बोलीं – बेटा !

रोने से शक्ति कम होती है,आपको कमजोर नहीं पढ़ना है, मैं आपकी माँ की उम्र की हूँ, आप अपनी परेशानी मुझसे शेयर कर सकती है,अगर आप नहीं चाहेंगी तो मैं किसी से कुछ नहीं कहूंगी।मैंने अपने मन की बात उन्हें बताई मैंने कहा कि हमेशा एक ख्वाब मुझे परेशान करता है, मुझे लगता है कि चारों ओर अंधेरा है, मैं भाग रही हूं, और कोई मेरा पीछा कर रहा है, मुड़कर देखती हूं तो सिर्फ दो आँखें नजर आती है और मैं डर जाती हूं,कभी लगता है किसी ने मुझे कसकर जकड़ लिया है और मैं छटपटा रही हूं, लगता है किसी ने मेरा सबकुछ छीन लिया है, और कभी-कभी तो लगता है……. कहते-कहते मैं रुक गई।वे बोलीं – डरो नहीं बेटा ! मुझसे कहो उन्होंने मुझे अपने सीने से लगा लिया। मैंने हिम्मत करके कहा- आंटी कभी-कभी तो लगता है मेरे शरीर पर कोई कपड़ा ही नहीं है।    मैंने डरकर आँखें बंद करली। उन्होंने कहा डरो नहीं मैं तुम्हारी मदद करूंगी।



मुझे उनकी बातों पर विश्वास हो रहा था।मन मैं एक सुकून था। और तीन दिन बाद मैंने देखा माँ ने मदन को वापस भेज दिया था।माँ ने पार्टियों में जाना कम कर दिया था, वे रात को मेरे पास बैठती मेरे सिर हाथ फैलती और मैं शांति से सो जाती,अब मुझे वह सपना नहीं आता था।मेरे सपने खुशनुमा होने लगे थे।अब मैं सिर्फ छोटे बल्ब की रोशनी में सोने लगी थी।यह कैसा परिवर्तन था,माँ से एक बार पूछा भी कि उन्होंने मदन को वापस क्यों भेजा,तो वे बोली ‘ बस वैसे ही भेज दिया।’ बाद में मैंने कुछ नहीं पूछा मैं बहुत खुश थी।

यह राज मुझे तब मालुम हुआ जब मेरी शादी अमित के साथ हो गई,और समायरा का जन्म हुआ,तब माँ ने ही मुझे कहा था, कि बेटा समायरा को अपनी नजरों  में महफूज रखना,हर घड़ी उसका ध्यान रखना।कहते हुए वे भावुक हो गई, बेटा मैं एक बार गलती कर चुकी हूँ।वो तो भला हो उन मोनिका मेडम का जिन्होंने समय रहते तुझै सम्हाल लिया, बेटा मैंने सोचा भी नहीं था कि मदन……। बेटा मोनिका जी के कहने पर हमने उस पर नजर रखी वह रात को तेरे पलंग के सामने वाली खिड़की से तुझे देखा करता था,उसकी नजर खराब लगी,दूसरे दिन जब तुम दोनों स्कूल गए थे,हमने उसके कमरे में जाकर देखा उसने तुम्हारी क‌ई अश्लील तस्वीरें बना रखी थी,क‌ई खत भी मिले।तेरे पापा और मुझे आश्चर्य हुआ और उस पर बहुत गुस्सा भी बहुत आया। मैं तो उसे पुलिस के हवाले करना चाहती थी,मगर तेरे पापा ने कहा इसे सुधरने का एक मौका दो, यह इसकी वृद्ध माँ का एकलौता सहारा है।उसे तेरे पापा ने और मैंने, बहुत समझाया,डराया और डाटा भी।उसे गाँव वापस भेजा मगर उसकी गतिविधियों पर आज भी हमारी नजर रहती है।अब वह भी सुधर गया है।बेटा तेरी शादी से पहले हमने अमित जी से सारी बातें शेयर की थी। उन्होंने विश्वास दिलाया था, कि वे तुझसे इस बारे में कभी कुछ नहीं कहेंगे।उसके बाद ही हमने‌ तेरी शादी की।बेटा मुझे माफ़ करना,माँ मुझे सीने से लगाकर रोए जा रही थी और बार-बार यही कह रही थी, बेटा समायरा का ध्यान रखना।”

रोजी को माँ की याद आई, उसकी आँखें नम हो गई। वह अतीत की घटनाओं में इस तरह उलझ ग‌ई, कि उसे समय का ध्यान ही नहीं रहा। अमित की आवाज से वह यथार्थ धरातल पर लौटी ‘क्या  बात है रोजी आज सोना नहीं है क्या? बस सो रही हूँ, एक बार समायरा को देख आऊं, उसने जाकर देखा समायरा शांति से सोई थी, रोजी भी अमित की बांहों में सुकून से सो ग‌ई। उसकी आँखों के ख्वाब बदल‌ ग‌ए थे।

 

प्रेषक-

पुष्पा जोशी

स्वरचित, मौलिक,अप्रसारित, अप्रकाशित

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