मातृ-दिवस के अवसर पर साहिल की आँखों से झर-झर आँसू गिर रहें हैं। साहिल अपने माता-पिता की तस्वीर को सीने से लगाए कोरोना महामारी की भयावह त्रासदी को याद कर रहा है।
पूरे विश्व में अप्रत्याशित रुप से कोरोना महामारी फैल चुकी थी।विश्व भर में इस तरह की महामारी के बारे में कोई आशंका नहीं थी।अचानक से आग की तरह फैलनेवाली इस महामारी के कारण सभी देश-विदेशवासियों को दिन में ही तारे नजर आने लगें।इस महामारी के भयानक रुप को देखकर
विश्व स्तब्ध हो उठा।देश-विदेश की स्वास्थ्य सेवाएँ चरमरा उठीं।जो देश स्वास्थ्य सेवा में अग्रणी थे,वे भी घुटने के बल आ खड़े हो गए। उन्हें भी इस महामारी से निबटने का कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था।उन्हें भी दिन में तारे दिखाई देने लगें।
सभी देश अपने सीमित संसाधनों के साथ लोगों की जान बचाने में लगे थे।अस्पतालों में स्वास्थ्य कर्मी और बाहर पुलिसकर्मी लोगों को बचाने में अपनी जान की तिलांजलि दे रहे थे।यातायात के प्रायः सभी साधन ठप्प पड़ चुके थे।गरीब जनता जान बचाने की कवायद में पैदल ही मीलों की दूरी तय कर घर पहुँचने को निकल चुकी थी।
उनकी दुुर्दशा टेलीविजन पर देखकर लोगों के कलेजे मुँह को आ रहें थे।ऐसी विषम परिस्थिति में प्रशासन भी सहायता नहीं कर पा रहा था।उन्हें भी बस दिन में तारे ही आ रहे थे।
कोरोना की पहली लहर तो जैसे-तैसे निबट गई, परन्तु कोरोना की दूसरी लहर ने विश्व में भयंकर तबाही मचाई दी।चारों तरफ हाहाकार मच चुका था।एक ही घर से पाँच-पाँच लोगों की मृत्यु होने लगी थी। शव उठानेवाला भी मुश्किल से मिल रहा था।बच्चे अनाथ हों रहे थे।कोरोना की दूसरी लहर का सबसे भयावह पहलू यह था कि जवान मौतें अधिक हो रही थीं।हरेक व्यक्ति सहमा-सहमा सा था।सभी को दिन में ही तारे नजर आ रहें थे।
साहिल भी अपने माता-पिता के साथ कोरोनाग्रस्त हो चुका था।संयोगवश उसकी पत्नी बच्चे के साथ मायके गई हुई थी।साहिल तो ईश्वर की कृपा से कोरोना की चपेट से निकल चुका था,परन्तु उसके माता-पिता की हालत खराब होती जा रही थी।लाख प्रयासों के बावजूद साहिल न तो माता-पिता के लिए ऑक्सीजन सिलेंडर की व्यवस्था कर सका,न ही
किसी अस्पताल में उनके लिए बेड का इंतजाम कर सका।ऐसी विषम परिस्थिति में कोई एक-दूसरे की मदद करनेवाला नहीं था।मदद तो दूर पड़ोसी भी झाँककर हाल-चाल नहीं पूछते थे।साहिल माता-पिता की उखड़ती साँसें के समक्ष मजबूर और लाचार था।ऐसी भयावह परिस्थिति में बस उसे भी दिन में ही तारे नजर आते थे।
अंततः चार दिनों के अंतराल में उसके माता -पिता ने दम तोड़ दिएँ और वह कुछ नहीं कर सका।साहिल माता-पिता की तस्वीर को जोर से सीने से लगाकर रोते हुए कह उठता है-“माँ-पिताजी!मुझे माफ कर देना।आपको बचाने के लिए मैं कुछ नहीं कर सका!”
उसे रोते देखकर उसकी पत्नी सांत्वना देते हुए कहती है -” साहिल!तुम अपने को गुनाहगार मत समझो।उस समय तो परिस्थिति ही ऐसी थी कि सभी को दिन में तारे नजर आने लगें थे।उस विषम परिस्थिति में तो कितने लोग अपने प्रियजनों का अंतिम दर्शन भी न कर सकें।किसी व्यक्ति का दोष नहीं है,दोष है तो उस भयानक महामारी का!”
साहिल कसकर पत्नी के दोनों हाथ पकड़कर माता-पिता की याद में सुबकने लगता है और तस्वीर की ओर देखकर कहता है -माँ!मातृत्व दिवस की हार्दिक बधाई!”
समाप्त।
लेखिका-डाॅक्टर संजु झा।