वृद्धाश्रम के एक कमरे में लेटी हुई सुधा देवी बुखार से तप रही थी उपर से सर्दी और जानलेवा खांसी उनको चैन नहीं लेने दे रही थी l
उनके साथ ही उनके कमरे में रह रही जानकी उनको सम्भाल रही थी l
बहुत ही ज्यादा बैचेनी होने पर सुधा देवी बोली “जानकी लगता है अब अंत समय आ रहा है” l
बस अंतिम बार अपने बेटे बहु और पोते पोती को देख लूँ मन को शांति मिल जाएगी l
उनकी आँखों से आंसू बहने लगे थे l
जानकी देवी बोली कहने भर से मौत नहीं आ जाती है पगली वर्ना हर कोई मर जाता l
अपनी किस्मत में जब तक भुगतना है तब तक तो जिंदा
रहना ही होगा l
तुम चिंता मत करो आज बड़े बाबु ने डॉ को बुलवाया है और भी लोगों को बुखार आ रहा है
सभी का इलाज हो जाएगा l
तब तक तुम यह दवा खाओ कल बाबु दे गए थे तुम सो रही थी तब l
कुछ ही देर बाद वहां डॉ की टीम आ गई थी l
एक एक रूम में जाकर अब सुधा देवी के कमरे में
एक महिला डॉ साथ में एक नर्स ने प्रवेश किया, जैसे ही वह सुधा देवी के पास आई और उनका चैकअप करने के लिए हाथ बढ़ाया उनके चेहरे को देखकर वह चौक गई और उनके नाम बताने के पहले ही वह बोली सुधा आंटी आप l
सुधा देवी सकपका गई और बोली हाँ मेरा नाम सुधा है बेटा तुमको कैसे पता चला, और चश्मे को ठीक कर गौर से डाॅ को देखने लगी बोली तुमको मैं पहचान नहीं पाई बेटा l
मैं मनाली हूँ आंटी आपकी पड़ोसी आपकी सहेली बीना की बेटी याद कीजिए मैं बचपन में आपके घर कितना खेलती थी राकेश के साथ l
“पर आप यहाँ क्यों हो ” ? राकेश कहाँ है “उसने आपको यहाँ क्यों रखा है आंटी” ?
आपका तो अपना ही कितना बड़ा घर है l
यह सुनकर वह मनाली का हाथ पकड़ कर रोने लगी तभी अचानक उनको ज़ोर से खांसी का ठसका लगा और वह बेहोश हो गई l
उनको तुरन्त अस्पताल ले जाया गया सारे चेकअप के बाद उनको निमोनिया निकला इस कारण उनको भर्ती कर लिया गया l
मनाली सरकारी अस्पताल में ही डाॅ थी सुधा देवी की सारी जिम्मेदारी उसने अपने कन्धे पर ले ली l
वह उनका हर वक्त ध्यान रखती ड्यूटी के समय उसने एक नर्स को उनके ध्यान रखने को लगा दिया l
अब वह धीरे धीरे ठीक होने लगी थी l
मनाली जब भी उनके पास होती उनके मन में उसको देख एक गिल्टी सी होने लगती थी l
उनको याद आने लगता था उनके बड़े से बंगले के पास ही
उनके साथ पढ़ी उनकी बचपन की सहेली बीना अपने छोटे से परिवार के साथ रहती थी l
किस्मत से उनकी शादी एक बड़े बिजनैसमेन से हुई थी नौकर चाकर बड़ा सा घर धन दौलत की भी कोई कमी नहीं थी इस कारण उनके मन में घमंड सा आ गया था, वही उनके घर के पास छोटे से घर में एक साधरण सी बाबु की नौकरी करने वाले बीना के पति और बेटी मनाली l
यूँ तो सुधा देवी उनसे अच्छी तरह मिलती जुलती रहती थी, पर अक्सर वह अपनी दौलत का रुआब बीना को बता और जता ही देती थी कभी कभी l
मनाली अक्सर उनके बेटे राकेश के साथ खेलती दोनों साथ ही पढ़ते थे क्योंकि बीना देवी अपनी इकलौती बेटी की परवरिश में कोई कमी नहीं रखती थीं l
इस कारण दोनों के बच्चों ने बड़े स्कुल से पढ़ाई की थी, मनाली पढ़ने में अच्छी थी इस कारण उसको मेडिकल कॉलेज में प्रवेश मिल गया था l
राकेश और मनाली एक दूसरे को पसन्द करते थे प्यार करते थे, परंतु धन दौलत का घमंड स्टेटस की आड़ लेकर उन्होंने मनाली को घर की बहू बनाने से साफ इंकार कर दिया l
राकेश ने बहुत जिद्द की परंतु उन्होंने उसको कसम देकर अपने बराबरी के खानदान की लड़की राकेश के लिए चुनकर उसकी शादी करवा दी l
शादी में बीना देवी सपरिवार आई परंतु उसके तुरन्त बाद ही उन्होंने घर को बेच कर एक दिन चुपचाप दूसरी जगह चले गए l
उसके बाद उन्होंने उनकी कोई सुध भी नहीं ली क्यों कि वह नहीं चाहती थी मनाली के कारण उनके बेटे बहू के रिश्ते खराब हो l
शादी के कुछ दिनों बाद ही अचानक ही उनके पति का स्वर्गवासी हो गये l
बिना मरज़ी की शादी होने के कारण बेटे राकेश का रवैय्या उनके प्रति बदल गया था, वह उनसे बहुत कम बात करने लगा था और अपना ज्यादातर वक्त बिजनैस में लगाने लगा था l
पत्नि रमीला लाड़ प्यार मे पली बड़ी बड़े घर की बिगड़ी हुई बेटी थी वह दिनरात पार्टी में ही व्यस्त रहती थी l
यह बात सुधा देवी को नहीं सुहाती थी वह अक्सर उसको टोकती रहती थी l
जो रमीला को नहीं सुहाता था इसी बीच उनके घर खुशी ने दस्तक दी रमीला ने दो जुड़वां बच्चों को जन्म दिया l
वह बहुत खुश रहने लगी, पर रमीला की दिनचर्या नहीं बदल पाई वह आया के भरोसे छोड़ कर कितने समय तक बाहर रहती बच्चों का ध्यान भी नहीं रखती, वह राकेश से शिकायत करती तो घर में लड़ाई झगड़े होते l
आखिर एक दिन रमीला ने गुस्से में कहा कि अगर मम्मी यहां रहेगी तो वह बच्चों को लेकर मायके चली जायेगी l
आखिर वहीं हुआ जिसका डर था एक दिन गुस्से में रमीला बच्चों को लेकर घर चली गई l
बहुत हाथ पेर जोड़ने के बाद भी वह आने को टस से मस नहीं हुई बच्चों के बिना राकेश को घर कटाने को दौड़ता था l
आखिर राकेश रमीला की बात मानकर बच्चों की खातिर सुधा देवी को वृद्धाश्रम छोड़ गया l
जाते जाते उसने कहा मम्मी आज अगर तुमने रमीला की जगह मनाली से मेरी शादी की होती तो यह नौबत नहीं आती आज मेरी मजबूरी है मैं बच्चों के बिना रह नहीं सकता हूँ इस कारण आपको यहां छोड़कर जा रहा हूँ l
आज उसी मनाली ने उनकी जी जान से सेवा की अब वह ठीक हो चुकी थी और उनको लेने वृद्धाश्रम से बाबु आ गए थे l
आज वह अपने गलत निर्णय से पछता रही थी l
उनमे इतनी हिम्मत भी नहीं थी कि वह उससे माफी मांग सके और पूछ सके बीना कैसी है कहा है l
वह जाने के पहले मनाली से मिलकर जाना चाहती थी पर आज वह अभी तक अस्पताल नहीं आई थी l
उसने नर्स से उसके बारे में पूछा तो वह बोली पता नहीं आज मेडम अभी तक क्यों नहीं आई l
वह दुखी मन से बाहर आई और आश्रम की गाड़ी में बैठने लगी थी कि सामने से मनाली आती हुई दिखी उसके साथ पीछे बीना जी भी थी वह उनको देखकर गले लगकर रो पड़ी l
बीना देवी भी रोने लगी वह बोली बीना मुझको माफ कर दो आज मुझको समझ आया कि धन दौलत से अच्छे रिश्ते नहीं खरीदे जा सकते है l
मैं ने मनाली को ठुकरा कर अपना बेटा भी खो दिया और घर भी l
आज मनाली की सेवा ने मुझको वापस जिंदा तो कर दिया पर
फिर वहीं आश्रम का कमरा और
वहीं बेरंग जिंदगी मुझको अब तो और भी चैन से जीने नहीं देगी l
बीना बोली नहीं सुधा तुम अब आश्रम में नहीं हमारे साथ रहोगी अपनी बेटी के घर l
घर चलो सुधा तुम अकेली नहीं हो हम आज भी तुम्हारे ही है l
सुधा देवी बीना देवी के बड़प्पन और स्नेह को देखकर अपने किए व्यवहार पर लज्जित हो रहीं थीं आज उनको समझ आ गया था कि दिल बड़ा हो तो दौलत किसी भी काम की नहीं होती l
उनके पास अथाह दौलत थी पर दिल नहीं था जो उनकी बाल सखी के पास बहुत बड़ा था l
मंगला श्रीवास्तव इंदौर
स्वरचित मौलिक कहानी