दिल अभी भरा नहीं – Moral Story In Hindi

आज बेटी का विवाह भी अच्छे से निपट गया था। बेटे के विवाह को भी एक वर्ष हो गया था।गायत्री ने अपनी सारी जिम्मेदारियां अच्छे से परिपूर्ण की थी। सब कुछ सही था नहीं सही था तो गायत्री के पति विजय का उनके प्रति व्यवहार। गायत्री ने तो अपने सारे कर्तव्यों का निर्वहन बहुत ही अच्छे से किया था तक भी विजय का गुस्सा नाक पर रखा रहता था। बेटी की शादी में तो हद ही हो गई थी जब गायत्री काम में लगी होने की वजह से विजय की बहनों और बहनोई को खाने में ज्यादा पूछ नहीं पाई थी तब मेहमानों की परवाह किए बिना विजय ने सबके सामने गायत्री को बहुत सुनाया था। उसे ज़ाहिल, गंवार और छोटे घर की ना जाने क्या क्या कहा था। गायत्री अपमान का घूंट पीकर रह गई।आज गायत्री के अंदर दबा आक्रोश बरसाती नदी की तरह उफान पर था। 

आज बेटी की विदाई के बाद जब सारे मेहमान चले गए तब गायत्री को याद आने लगा कि जब उसकी शादी हुई तब वो बहुत कम उम्र की थी। मायके में भी मां सौतली थी। पति विजय उनसे उम्र में करीब दस साल बड़े थे।ससुराल में आकर भी हर चीज़ के लिए बहुत संघर्ष किया। सुबह से शाम तक काम में लगी रहती पर कोई प्यार के दो बोल बोलने वाला नहीं होता था उस पर विजय जैसा पति मिला था जो हर बात पर गालियां देने को तैयार रहता था।

कभी कुछ कहती तो ये कहकर कि मुफ्त की रोटियां खाती है फिर भी शिकायत करती है,अगर इतनी ही दिक्कत है तो अपने मायके जाकर क्यों नहीं रहती जैसे तानों की बौछार से चुप करा दी जाती। वो मायके में अपनी स्थिति से भली भांति परिचित थी इसलिए चुपचाप हालात से समझौता करती रही।असल में विजय तीन बहनों के बाद पैदा हुआ था तो बहुत ही लाड़-प्यार से उसकी परवरिश की गई थी।




अकेला लड़का होने के कारण सभी घरवालों ने उसकी उचित अनुचित हरकत के लिए कभी टोका नहीं था।पुरुषोचित्त दंभ उसमें कूट-कूट कर भरा था। पत्नी जैसी प्राणी को तो वो अपने पैरों की जूती समझता था।

 वो तो गनीमत ये रही थी कि विजय पढ़ाई-लिखाई में अच्छा था और अब बैंक में मैनेजर के पद पर आसीन था इसलिए बच्चों के होने के बाद वो उसके साथ अलग अलग शहरों में रही और बच्चों को अपनी तरह से पाल सकी। 

वैसे भी विजय के क्रोधी स्वभाव की वजह से बच्चें भी उससे दूर ही रहते थे और अपने दिल की बात गायत्री से ही किया करते थे। दोनों बच्चों में बेटा बड़ा था,कंप्यूटर इंजीनियर था,उसने एक वर्ष पूर्व अपने ही साथ काम करने वाली लड़की से शादी की थी, बेटी भी सरकारी टीचर थी उसकी शादी भी बेटे के साथ काम करने वाले उसके दोस्त से आज हो गई थी। बेटा-बेटी की शादी अपनी पसंद से ना कर पाने का भी सारा गुस्सा विजय ने गायत्री पर निकाला था। खैर अब दोनों बच्चों की शादी हो गई थी। गायत्री की दोनों जिम्मेदारियां पूर्ण हो गई थी। छः महीने बाद विजय का रिटायरमेंट भी था।

अब गायत्री अपने लिए जीना चाहती थी। इतने सालों का जो आक्रोश उनके अंदर दबा था वो उससे मुक्त होना चाहती थी। अभी वो सिर्फ पचास वर्ष की ही तो थी,अब उसने मन ही मन बहुत कुछ सोच लिया था। विजय के रिटायरमेंट के बाद पूरा समय विजय के साथ एक ही छत के नीचे रहना उसे अब संभव नहीं लग रहा था। उस छः महीने के बाद के समय की कल्पना करके भी वो सिहर उठती थी। अभी तक तो वो बच्चों की जिम्मेदारियां का सोचकर चुप थी पर अब वो अपने आक्रोश और रोष को और अधिक बढ़ने नहीं देना चाहती थी। इस छः महीने में उन्होंने अपनेआप को आत्मनिर्भर बनाने की सोची।

बहुत पढ़ी-लिखी तो वो नहीं थी पर संस्कृत के श्लोक और भारतीय ग्रंथों जैसे महाभारत और रामायण की कहानियां वो बहुत ही सुरूचिपूर्ण ढंग से सुनाया करती थी। उसके घर के पास एक बड़ा मंदिर था। जहां वो नियम से रोजाना जाती थी। मंदिर के पुजारी जी भी गायत्री से भली भांति परिचित थे कई बार श्लोक पाठ और सुंदर पाठ में वो उसकी ओजस्वी वाणी सुन चुके थे। मंदिर में बहुत बड़ी संख्या में लोग दर्शन के लिए आते थे। उनमें से बहुत से लोग पहले भी पुजारी जी से अपने बच्चों के अंदर अच्छे संस्कार और सनातन धर्म के इतिहास से परिचित कराने का अनुरोध कर चुके थे।




पुजारी जी इस संदर्भ में पहले भी गायत्री से बात कर चुके थे और ये भी कह चुके थे कि इसके लिए उसे उचित पारिश्रमिक भी दिया जायेगा पर अभी तक गायत्री अपनी जिम्मेदारियों की बात करके टालती आ रही थी। अब बेटी की शादी की बाद गायत्री ने इस पर ध्यान दिया और पंडित जी से इस तरह के आयोजन के लिए हां कर दी। अब गायत्री प्रतिदिन एक घंटा मंदिर प्रांगण में बच्चों को धर्म और संस्कृति से अवगत कराती। उसकी इन कक्षाओं को बाल विकास कक्षा का नाम दिया गया।उसकी वाणी में इतना ओज था कि बच्चे तो बच्चे बल्कि बड़े भी मंत्रमुग्ध होकर उसकी बात सुनते थे।

इसी तरह एक महीना निकल गया आज पहली बार जब गायत्री को इन कक्षाओं के लिए पारिश्रमिक मिला तो उसकी आंखों के खुशी के आंसू झलक आए। वो पैसा बहुत ज्यादा तो नहीं था पर फिर भी उसके लिए काफी था। गायत्री ने इस बात का ज़िक्र अभी तक किसी से भी नहीं किया था। धीरे धीरे विजय के रिटायरमेंट का समय भी आ गया।

रिटायरमेंट के दिन घर पर छोटी सी पार्टी थी। विजय और गायत्री के दोनों बच्चे भी आए थे। मेहमानों के जाने के बाद जब सिर्फ विजय,बेटा-बहू और बेटी-दामाद ही रह गए तब गायत्री ने कहा कि आज मै आप लोगों के सामने एक बात कहना चाहती हूं। सभी लोग गायत्री की तरफ आश्चर्य से देखने लगे क्योंकि गायत्री आज तक विजय की उपस्थिति में चुप ही रहती थी।

 गायत्री ने अपनी बात को जारी रखते हुए कहा कि मैंने अपनी शादी को अपने जीवन के बहुमूल्य समय दिया और अपने सभी कर्तव्यों को निभाया पर अब मैं अपने लिए जीना चाहती हूं।मैं अब अपने पति विजय से अलग होना चाहती हूं। ज़िंदगी के हर मोड़ पर मैं तो अपने पति के साथ कदम मिलाकर चलना चाहती थी पर इनके पुरुष होने के अहम और दंभ ने मेरे स्वाभिमान को छलनी कर दिया।

अब मेरे अंदर का दबा हुआ आक्रोश मुझे अपने लिए आवाज़ उठाने पर मजबूर कर रहा है। गायत्री की बात सुनकर जहां सारे बच्चे स्तब्ध थे वहीं विजय ने घमंड से भरी हंसी हंसते हुए कहा कि ठीक है अलग होना है हो जाना पर जब खाने-पीने के भी लाले पड़ेंगे तब दिमाग ठिकाने आ जायेगा। यहां तो मैं अच्छा खासा कमाता था घर सारी सुविधाओं से परिपूर्ण था किसी बात की कमी नहीं थी। पर अब जब दो रोटी भी खुद से कमानी पड़ेंगी वो भी इस उम्र में तो पता चलेगा।




उसकी इस बात पर गायत्री ने बहुत ही स्थिर शब्दों में कहा कि मेरे को काम मिल चुका है पिछले छः महीनों से मैंने अपने लायक कामना शुरू कर दिया है। अब चौकने की बारी विजय की थी। आज उसके अहंकार को वो चुनौती मिली थी जो उसने सपने में भी नहीं सोची थी।

आखिर में तय हुआ कि मकान के ऊपर वाले हिस्से में गायत्री और नीचे वाले में विजय रहेंगे। गायत्री को वैसे भी अभी कल मंदिर के ट्रस्ट की दूसरी शाखा जो शिमला में है उसमे बाल विकास के एक सप्ताह के शिविर आयोजन के लिए वहां जाना है।अलग रहने की पूरी प्रक्रिया सुचारूरूप से गायत्री के शिविर से वापिस आने पर होगी। 

इन सब बातों के साथ गायत्री ने अपनी बेटी और बहू को भी कहा कि बच्चों स्त्री घर तो संभालती है पर उसका आत्मनिर्भर होना बहुत जरूरी है नहीं तो उसको दो रोटी के लिए भी ताने सुनने पड़ जाते हैं। इसके लिए ये आवश्यक नहीं कि वो बाहर निकलकर कोई काम ही करे पर उसके पास इतनी शिक्षा या हुनर होना चाहिए कि आवश्यकता पड़ने पर वो अपने पैरों पर खड़ी हो सके। बेटी और बहू दोनों ही गायत्री के गले लग गई। अब अगले दिन गायत्री अपने शिविर के लिए निकल गई। बच्चे भी अपनी दुनिया में वापिस चले गए। रिटायरमेंट के बाद आज विजय पहली बार घर पर बिल्कुल अकेला था।

आज उसको सारे काम खुद से करने पड़ रहे थे जिसकी उसको बिल्कुल आदत ना थी। आज उसको रह रहकर गायत्री की बहुत याद आ रही थी। आज तो पहला दिन ही था आगे तो पूरी ज़िंदगी उसे अकेले निकालनी थी ये सोच सोचकर उसकी हालत खराब थी। वैसे भी अब तो उम्र भी शरीर का साथ नही दे रही थी।आज उसका अभिमान और अहम उसको ही भारी पड़ गया था। अब उसको अपनी सारी करनी याद आ रही थी। जहां शादी के बाद उसके दोस्तो की पत्नियां बहुत खुश दिखाई देती थी वहीं गायत्री हमेशा डरी-सहमी रहती थी। कभी भी गायत्री के प्रति उसका व्यवहार अच्छा नहीं रहा।

अगर बच्चों की तबियत भी खराब होती तो गायत्री ही सारी रात जागती वो अपना आराम की नींद सोता। उसे तो सिर्फ अपने से मतलब होता। इन सबके बाबजूद अगर उसकी चाय या ऑफिस के टिफिन ले जाने में थोड़ा समय भी ऊपर होता तो वो गायत्री को जली कटी सुनाने में देर ना लगाता। बच्चों को भी एक तरह से गायत्री ने अपने बलबूते पर अच्छे संस्कार देकर बड़ा किया। तभी तो आज उसका बेटा अपनी पत्नी को पूरा सम्मान देता है। ये सब सोचते-सोचते उसकी आंखें भर आई। 




अब विजय ने अपने किए पर पछतावा हो रहा था। अब मन ही मन उसने फैसला किया कि अब आगे की जितनी भी ज़िंदगी बची है वो अपनी तरफ से गायत्री को इस जन्म की पूरी खुशियां देने की कोशिश करेगा। सबसे पहले तो वो गायत्री के आते ही उससे अपनी सारी गलतियों के लिए माफ़ी मांगेगा। यही सोचकर बस वो गायत्री के आने का बेसब्री से इंतजार करने लगा।

गायत्री के आने से पहले उसने माली से पूछकर घर के बगीचे में उसकी पसंद के पौधे और घर के अंदर उसकी पसंद के फूलों के गुलदस्ते लगाए। गायत्री जैसी ही घर पहुंची उसने घर और विजय में बदलाव तो महसूस किया पर वो उन सबको अनदेखा करके अपना सामान लेकर घर के ऊपर वाले हिस्से में जाने लगी तभी विजय ने उसका सामान नीचे रख दिया और कहा मेरे को माफ कर दो, क्या हम दोबारा से नई शुरुआत नहीं कर सकते।

ये कहकर वो घुटनों के बल बैठकर गाने भी लगा कि “अभी ना जाओ छोड़कर के दिल अभी भरा नहीं” वो कुछ कहती इससे पहले ही वीडियो कॉल पर बेटा बहू और बेटी दामाद भी खुशी से तालियां बजाते हुए नज़र आए। गायत्री का चेहरा शर्म से लाल हो गया उसने शरमाते हुए विजय को कहा कि उठ जाओ अब कहीं घुटने दर्द ना करने लगें।

विजय हंसते हुए उठा और बोला अब आगे की ज़िंदगी तुम्हारी शर्तो के अनुसार होगी।तुम अपना बाल विकास की कक्षाएं जारी रखोगी और मैं घर से लेकर बाहर तक कदम-कदम पर तुम्हारे साथ ताल से ताल मिलाकर चलूंगा। तुम्हारे अंदर मेरे व्यवहार की वजह से इतना आक्रोश था पर तब भी तुमने बाहर की दुनिया के सामने हमेशा हमारे परिवार की अच्छी छवि ही प्रस्तुत की और अब भी बाल विकास जैसी कक्षाओं का संचालन कर आने वाली पीढ़ी को संस्कारों से सुसज्जित कर रही हो।

अब चाहे उम्र हो चली है पर मैं तुम्हारे योग्य बनने की पूरी कोशिश करूंगा। स्त्री का मन तो वैसे भी बहुत विशाल होता है,गायत्री ने विजय को दिल से माफ कर अपनी नई जिंदगी की तरफ कदम बढ़ा दिया था।उसने भी हंसते हुए कहा कि सही में आपके साथ रहते हुए दिल अभी भरा नहीं।

दोस्तों कैसी लगी मेरी कहानी? अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें। मेरा इस कहानी को लिखने के पीछे सिर्फ इतना उद्देश्य है कि अगर मन में किसी के व्यवहार के प्रति आक्रोश उपज भी जाता है तो उसको दिखाने में कोई संकोच नहीं करना चाहिए। हर किसी में कोई ना कोई हुनर तो होता ही है और ज़िंदगी कभी भी नया मोड़ ले सकती है।

#आक्रोश

डॉ पारुल अग्रवाल,

नोएडा

V M

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