दिखावे की जिंदगी – कविता झा ‘अविका’ : Moral Stories in Hindi

सुहानी जब ससुराल आई तो उसे ऐसा लगने लगा था जैसे उसके ससुराल वाले कुछ ज्यादा ही दिखावा करते हैं। कोई मेहमान उनके घर आता तो काजू बादाम के साथ साथ तरह तरह की मिठाईयां और फल उनके आगे परोसे जाते।

 उन्होंने सुहानी के आने से कुछ समय पहले ही नया घर बनाया था और नई गाड़ी खरीदी थी। सुहानी के पिता राजीव भी इस घर परिवार और उनके द्वारा किए गए स्वागत से बहुत प्रसन्न थे। उनकी बेटी वहां हमेशा खुश रहेगी यही सोचकर उन्होंने शादी में अच्छा खासा खर्च किया था।

“इतनी जल्दबाजी क्या है? थोड़ा जांच पड़ताल अच्छे से कर लीजिए। क्या पता जो आप देख रहें हैं वो सच ना हो।”

“ऐसा हो ही नहीं सकता। लड़का बहुत अच्छा है खूब कमाता है और बहुत बड़ा घर सभी सुख सुविधाओं से संपन्न है। अपनी बेटी वहां राज करेगी।”

सुहानी के पिता ने उसकी मां आनंदी के मन में आती आशंका को दूर करने की कोशिश की।

आनंदी ने सुहानी को शादी के समय सोने के गहने पहनाते वक्त यही कहा…

” बिटिया तुम्हारे हाथ में ही हमारे घर की इज्जत है और अब ससुराल भी तुम्हारा अपना घर है कभी भी उस घर की इज्जत पर आंच मत आने देना।”

 कुछ महीने बाद धीरे-धीरे ससुराल वालों की असलियत सुहानी के सामने आ रही थी।

इस कहानी को भी पढ़ें:

शादी से ही बचेगी घर की इज्जत – मुकुन्द लाल : Moral Stories in Hindi

जितनी  शान शौकत से वो रह रहे थे सब लोन और उधारी के पैसों से था।  उनके ऊपर बहुत ही कर्जा चढ़ गया था। वो लोग आमदनी से ज्यादा खर्च कर रहे थे। 

घर बनाने और गाड़ी के लिए बैंक से लोन लिया था और लगभग सभी सामान ईएमआई पर लिया था।

  सुहानी के पति एक प्राइवेट कंपनी में काम करते थे। जितनी  सैलरी मिलती उससे ज्यादा अपने लेटेस्ट मोबाइल लैपटॉप और कपड़े जूतों पर खर्च करते थे।

उसके ससुर की सरकारी नौकरी थी पर मकान बनाने, नई गाड़ी टीवी, फ्रिज और फर्नीचर सब  तो किस्तों पर लिया था। जिसकी किस्तें समय पर नहीं चुका पा रहे थे जिस कारण अपने पैसे वसूल करने लोगों ने उनके घर आना शुरू कर दिया। 

ये सुहानी को बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था।

एक दिन तो हद हो गई जब एक आदमी ने उसके ससुर का कॉलर पकड़ लिया और उन्हें बेईज्जत करने लगा।

“जब औकात नहीं है किस्तें चुकाने की तो इतने महंगे सामान लेने का क्या शौक है।”

वो उस दुकान से आए सभी सामान वापस ले जाने की धमकी देने लगा।

सुहानी यह घर की इज्जत का सवाल है तुझे कुछ करना होगा। पैसे बाद में भी जोड़े जा सकते हैं लेकिन इज्जत एक बार जाती है तो लौट कर नहीं आती। उसने खुद से कहा और अपना बैंक बैलेंस चैक किया।

सुहानी शादी से पहले नौकरी करती थी जो उसने ससुराल वालों के मना करने पर छोड़ दी। उनका कहना था कि लोग क्या कहेंगे बहू को काम करने भेजते हैं।

पहले वो हर महीने जब भी सैलरी आती थी तो अपने माता-पिता को देना चाहती तब वो मना कर देते।

“तुम अपने शौक पूरे करो। इन पैसों को तुम जैसे चाहो वैसे खर्च करो या बचाओ अपने भविष्य के लिए। ये पैसे तुम्हारे हैं।”

इस कहानी को भी पढ़ें:

सही फ़ैसला – रचना गुलाटी : Moral Stories in Hindi

सुहानी बेफिजूल खर्चे करने वालों में से नहीं थी। वो हर महीने अपने सारे पैसे अपने बैंक अकाउंट से निकालती ही नहीं थी। 

उसने अपने ससुर को उस आदमी के चंगुल से छुड़ाया जो उन्हें पीटने ही वाला था।

“खबरदार… आपको शर्म आनी चाहिए जो अपने पिता समान इंसान पर हाथ उठाने चले हैं।”

“शर्म हमें नहीं इन्हें आनी चाहिए। जो इस बुढ़ापे में उधार की जिंदगी जी रहें हैं। हमें अपने पैसे चाहिए हर हाल में।”

सुहानी ने अपना मोबाइल देखा और बोली…

” बताईए कितनी पेमेंट बांकी है।” 

“नब्बे हजार…”

उसने अपने अकाउंट से पैसे  उस आदमी के अकाउंट में ट्रांसफर कर दिए।

धीरे धीरे उसने सभी की पेमेंट कर दी। उसने अपने गहने तक बेच कर बैंक का लोन चुकाया। ससुराल ही अब उसका घर है और उसने अपने घर की इज्जत को नीलाम होने से बचाया।

“हमें माफ कर दो सुहानी बिटिया। हम झूठे दीखावे में कर्जदार बन गए थे। तुम हमारी बहू नहीं हमारी बेटी बनकर आई हो इस घर में। हम कसम खाते हैं कि अब दिखावे वाली जिंदगी नहीं जीएंगे। कभी उधार और इस तरह किस्तों में कोई सामान नहीं लेंगे।”

“अच्छा तो अब मैं नौकरी कर सकती हूं।”

इस कहानी को भी पढ़ें:

गच्चा खाना – सरोज माहेश्वरी : Moral Stories in Hindi

“हां  बिटिया हम जान गए हैं कि बहू की नौकरी से घर की इज्जत नहीं घटेगी बल्कि तुमने तो हमारी इज्जत बचाई है।”

कविता झा ‘अविका’

रांची, झारखंड 

(यह कहानी मौलिक और अप्रकाशित है जो बेटियां मंच के साप्ताहिक विषय पर आधारित है)

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!