डिजिटल रिश्ता – दीपा माथुर

दादी दादी मम्मी को समझाओ ना ?
मुझे अभी खेलना है मुंह सुजा कर लक्ष अपनी दादी की
गोद में बैठ गया ।
उसे पता है की सब अब हाईकोर्ट की शरण में जाने के बाद मम्मी की ना कहने की हिम्मत नहीं होंगी।
दादी क्या कम थी मम्मी को आंख मारती हुई बोली
कीर्ति तुम जाओ अपना काम करो।
और लक्ष के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए बोलना चालू हो गई।

“अभी 10nth में ही तो आया है सारे दिन मेरे छोरे के पीछे पड़ी रहती हो पढ़ लेगा मेरा पारू आजा मेरे पास ये तेरी मम्मी तुझे अभी से कलेक्टर बना के छोड़ेंगी।”
लक्ष अपनी जीत पर खुश था।
देखा मम्मी इधर उधर है दादी की गोद से उठा और बेट बोल लेकर बाहर निकलने लगा।
तभी दादी ने हिदायत दी ” लक्ष आपकी मम्मी से मै केवल एक घंटे की इजाजत दिलवाऊंगी याद रहे एक घंटा मतलब एक घंटा समझे।

लक्ष हा,दादी हा,हा ….. और ये गया और वो गया।
दादी ने अपनी रामायण की किताब उठाई और पूजा घर में जाते जाते बोली ” कीर्ति लक्ष अभी एक घंटे में खेल कर आ जाएगा फिर उसे दूध पिला कर थोड़ी देर मेरे पास भेज देना ।
कीर्ति शाम के खाने की तैयारी कर रही थी अतः आटे
से सने हाथ में तुरन्त बाहर आई और बोली ”  हा,मम्मी जी पर  आप संजा पड़े बाद उसे मेरे पास भेज देना जब तक मै अपना काम निपटा लेती हूं।
ये सास,बहू की जुगलबंदी थी।
ताकि दक्ष अपनी राह नहीं भटके और सारे दिन मोबाइल से छुटकारा मिल जाए जो अलग।
जैसे ही दक्ष खेल कर आया दादा साहब भी घूम कर आ चुके थे।
दोनों ने अपने हाथ पैर धोए और मंदिर की तरफ चल दिए जो बरामदे में एक छोटे से कमरे में बना था।
रोजाना सुबह शाम दादा साहब और दादी जी नियम से अपनी पूजन करते थे।

दादी जी जोर जोर से रामायण की चौपाइयों को पढ़ती
थी फिर दक्ष को उसका अर्थ समझा देती थी कुल मिलाकर भक्ति पूर्ण वातावरण था।
एक दिन शाम जब दक्ष खेलने गया तो लेट आया ।
दादा साहब भी घूम कर आ चुके थे।
दादी जी गेट पर खड़ी राह देखने लगी ।
तभी दक्ष आता दिखाई दिया आते ही दादी जोर से बोली
” क्यों रे इतनी लेट क्यों आया?
दक्ष कुछ नहीं बोला बेट रखा और हाथ मुंह धोने लगा हालांकि दादी जी को थोड़ा बुरा लगा पर फिर” बच्चा है

सोच कर इग्नोर कर दिया।
पूजा पाठ शुरू हुआ पर दक्ष आज मंदिर में नहीं आया।
दादी जी ने कीर्ति से कहा ” बुरा मत मानना बेटा पर आज दक्ष का व्यवहार कुछ ठीक नहीं है मुझे लगता है थोड़ा नजर रखने की जरूरत है ।
कीर्ति भी कहा चूकने वाली थी कमरे में जाकर देखने लगी।
दक्ष कमरे में मोबाइल से खेल रहा था।
कीर्ति दक्ष के पास जाकर बोली ” अरे बेटा ये क्या ?
आज पूजन पाठ कुछ नहीं सीधा मोबाइल…।




दक्ष का ध्यान मोबाइल में ही था कोई गेम खेलते हुए बोला” बस मम्मी बस सिर्फ पांच मिनिट अभी इसको हरा दू बस।”
कीर्ति बोली ” कमाल है तेरे पास तो कोई दिख ही नहीं रहा किसको हरा आएगा “
अरे मम्मी आप नहीं समझती ये डिजिटल गेम है इसमें मेरे फ्रेंड ओंन लाइन  है ,चलो अब मुझे खेलने दो आपसे बाद में बात करता हूं।”
कीर्ति को मन ही मन गुस्सा आया पर उस वक़्त कुछ नहीं बोली।
दूसरे दिन भी जब दक्ष का वहीं रूटीन रहा तब कीर्ति को चिंता होने लगी।
अब तो खाना खाने में भी दक्ष परेशान करने लगा था ।
बार बार आवाज लगाते पर जवाब यही मिलता ” अभी आ रहा हूं बस अभी आया…”
पढ़ने के टाइम तो और मुश्किल हो गई मोबाइल में गेम
खलेने के चक्कर में आनन फानन में होमवर्क करने लगा था।
कोई लेसन याद करते हुए तो दिखता ही नहीं था।
फोन छुपा दो तो जिद्द करने लगता ,कभी दादी जी के फोन पर कभी दादा साहब के फोन पर अपना हक जमाने लगता।

एक दिन कीर्ति ने अपने हसबैंड से कहा ” मेरे समझ नहीं आ रहा है क्या करू दक्ष को डायरेक्ट डाटती हूं तो असर कुछ समय रह जाएगा फिर ये तो वैसा का वैसा रहेगा।
दक्ष के पापा  (मनोज) ने समझाया तो बोला ” हा पापा अब ज्यादा नहीं खेलूंगा पर थोड़ा सा तो चलेगा ना?
फिर दिमाग में सल डालते हुए बोला ” पापा फिर में सब दोस्तो के सामने हसी का पात्र बन जाता हूं ना?
प्लीज़ पापा प्लीज़ …।
पर  मनोज बिना कुछ कहे ऑफिस के लिए रवाना हो गए।
दूसरे दिन सुबह सुबह जैसे ही दक्ष उठा अल्साई आंखो से मम्मी की गोद में जाकर लेट गया पर आज कीर्ति ने उसके सिर के बालों को सहलाया नहीं।
दक्ष को कुछ अजीब सा लगा उसने एक आंख खोल कर मम्मी की तरफ देखा और बोला ” मम्मा मुझे प्यार करो ना ।
” अरे रुक रुक बस जीतने वाली ही हूं “
कीर्ति ने मोबाइल में अपनी आंखे गड़ाते हुए कहा ।
15 -20 मिनिट तक इंतजार कर के दक्ष स्वयं उठ गया पर कीर्ति नहीं उठी।
दक्ष सू सू करके दादी के कमरे में चला गया ।
वहां की स्तिथि तो और अजीब थी ।
दादा जी बेड के एक कोने में मुढ़ी पर बैठी थी और अपने मोबाइल में अंगुलिया चला रही थी।
दक्ष की आंखे चमकी बोला ” दादी जी आप ये क्या कर रही है “
दादी जी ने दक्ष की तरफ देखा भी नहीं और बोली” ठहर अभी मै हार जाऊंगी।”




दक्ष ने दादी जी के मोबाइल में झाका और बोला दीदी जी आपने ये बोरिंग गेम क्यों सीखा लाओ मैं आपको अच्छा सा गेम सीखाता हू”
पर दादी जी ने दक्ष के हाथो में मोबाइल नहीं दिया बल्कि बोली ” अरे मुझे तो साप सीढ़ी वाला गेम ही अच्छा लगता है ये मुझे तेरे पापा ने सिखाया है कह रहे थे ।
आजकल दक्ष तो आपसे बात करता नहीं है आप बोर मत हुआ करो ,आपको भी गेम सीखा देता हूं ,मैंने कहा
भी था मेरी आंखे खराब हो जाएंगी”
तो आपके पापा ने कहा ” आप तो बुजुर्ग हो गई हो अब दक्ष भी अपनी आंखो का ध्यान नहीं रख रहा तो आपकी सेवा कोन करेगा ।
तो आप खेल कर कम से कम अपना टाइम तो अच्छे से पास करो।
और दादी जी ने फिर दक्ष को इग्नोर कर दिया।
दक्ष अब दादा जी की तरफ बढ़ा और बोला ” दादा साहब आप क्या कर रहे है ?
आप तो कम से कम मुझसे बात करो?
दादा साहब अपने मोबाइल में आखे गड़ाए बोले ” अब मेरा पोता मोबाइल में बिजी रहने लग गया तो मैंने सोचा देखू तो उसको कितना मजा आता है।
थैंक यू दक्ष वाह बहुत मस्त मज़ा आ रहा है ।
अब कोई दिक्कत नहीं ।
तुम भी जाओ खेलो यहां हम सब तो बिजी है।
दक्ष वापिस मम्मी के पास आया ” मम्मी भूख लगी है प्लीज़ कुछ खाने को दो ना ?
कीर्ति ने भी दक्ष को इग्नोर करते हुए कहा ;” अब मुझे परेशान मत करो तुम खुद ले लो और खालो ।

अब दक्ष जोर जोर से रोने लगा।
चिल्लाने लगा ” मै आप सबके मोबाइल तोड़ दूंगा “
कोई मुझे प्यार नहीं करता है”
तब दादा जी दक्ष को गोद में उठाया और बोले ” देखा ना
रोज आप हम सब को इग्नोर करते हो तो हमे कैसा लगता होगा।
हमे भी ऐसे ही बुरा लगता है जब मम्मी दक्ष खाना खालो,दक्ष होमवर्क कर लो और आप गुस्से में कहते ” मम्मी यार परेशान मत किया करो।
और तो और दादा साहब के साथ खेलना ही बंद कर दिया।
सारा ध्यान मोबाइल बस मोबाइल।
दक्ष सॉरी दादाजी दादी जी अब नहीं करूंगा लो कान पकड़ लिए।
दादी ने दक्ष को उसकी पसंद की खीर खिलाते हुए कहा
” चलो अब मम्मी को भी सोरी बोलो “
दक्ष दादा साहब की गोद में से उतर कर बोला ” ठीक है आज मै मेरे स्कूटर पर जाऊंगा और दोनों हाथ को आगे किया और बोला  ड्रू ड्रू ड्रू ड्रू और भागता हुआ मम्मी के कमरे में गया और गोद में जाकर बैठ गया गालो पर प्यार कर बोला ” सॉरी”
मम्मी ने उसे अपने अंक में भर लिया और बोली आज मै
असली जंग जीती हूं।
चल अब सब मिलकर खाना खाते है।

वास्तव में सखियों आजकल बच्चो को मोबाइल या लैपटॉप से दूर रखना मुश्किल हो रहा है।
और यही वजह है कि उनकी आंखे और स्वास्थ्य दिन पर दिन गिरता जा रहा है।
और साथ में हमारी संस्कृति और रिश्ते दोनों बिखर से गए है।
मोबाइल की वजह से घर का प्रत्येक सदस्य एक दूसरे से दूर हो गए ।


और बच्चो को दोष देना तो आसान है कम हम भी नहीं है ।हम से तात्पर्य मै भी आप में शामिल हुईं ना।
चाहे रचना ही लिखूं मोबाइल तो हाथ में रहता ही है।
ऊपर से व्हाट्स अप और फेसबुक के नोटिस चैन ही नहीं लेने देते है ।
एक फुलका भी पूरा नहीं फूल पाता है जितने चार नोटिस अपना ध्यान आकर्षित करते है।
पर अपना आकर्षण कम कर बच्चो को अपने पास बैठा कर बाते करे,उनके साथ खेले।
और दादा साहब,दादी के साथ समय गुजारने से भी मोबाइल से दूरी कुछ हद तक कम हो सकती है।
सच में अच्छे संस्कार बड़े बुजुर्गो से आसानी से मिल जाते है।

अपने अपने में व्यस्त हो गया है आदमी।
अपनों को भूल डिजिटल रिश्ते में खो गया है आदमी।
सखियों मेरी रचना कैसी लगी जरूर बताएं।
और अगर पसंद आए तो लाइक और फॉलो जरूर कीजिएगा।#मासिक_प्रतियोगिता_अप्रैल
दीपा माथुर।

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