दीदी मुनि – अनामिका मिश्रा

दीदी मुनि कहती थी अनुष्का उन्हें।

वैसे भी हावड़ा  में बंगाली भाषा में,शिक्षिका को दीदी मुनि कहकर संबोधित किया जाता था।अनुष्का को पता चला। अनुष्का के पिता का तबादला हावड़ा में हुआ था। वहां उसका कहीं दाखिला नहीं हो पा रहा था, क्योंकि वहां के स्कूल का एक नियम था कि, बंगाली भाषा भी पढ़ना आवश्यक है, और उसकी जानकारी होनी चाहिए। 

अनुष्का के लिए ये बहुत ही कठिन था। 

पर दसवीं कक्षा में थी,उसके पिता ने बंगाली में शिक्षा के लिए दीदी मुनि को रखा था। अनुष्का को दीदी मुनि बहुत ही प्यार से बंगाली भाषा सिखा रही थी। दीदी मुनि ने अनुष्का की मां को अपने घर आने के लिए कहा। 

एक दिन अनुष्का की मां ने कहा, “चलो अनुष्का, आज दीदी मुनि के घर हो आते हैं, बहुत दिनों से बुला रही हमें!” अनुष्का अपनी मां के साथ उनके घर गई। 

झाड़ी झंकर,जंगल जैसा रास्ता, पगडंडी से होते हुए दीदी मुनि का घर दिखा। 

छोटी सी कुटिया थी दीदी मुनि की। 

अनुष्का ने कहा, “मां लगता है सबरी के यहां ले जा रही हो!” और कहकर जोर से खेल खिलाने लगी। 




उसकी मां ने कहा, “चुप कर ऐसा नहीं कहते,क्या हुआ गरीब है तो,तुझे बंगाली तो सिखा रही है ना!”

दोनों उनके घर पहुंची।दीदी मुनि बहुत ही खुश हुईं। 

अनुष्का ने देखा बस दो कमरे थे, और एक स्टोव रखा था, जिसमें दीदी मुनि खाना पकाया करतीं थीं, पास ही एक पानी का घड़ा रखा हुआ था,बहुत ही सादा जीवन था। दीदी मुनि के दो बेटे थे,पति की मृत्यु हो गई थी,कई वर्ष बीत चुके थे, वो यूं ही अकेले पढ़ा कर,अपने बच्चों को बड़ा कर रही थी। 

पर दीदी मुनि के चेहरे पर कभी चिंता के भाव नहीं दिखते थे,हमेशा मुस्कुराते चेहरे से मिला करती थी। अनुष्का को उन्होंने बंगाली भाषा पढ़ना लिखना सिखा दिया था। अनुष्का ने देखा दीदी मुनि सांवली छोटी कद की थी,दूसरी अच्छी जाति के लोग उन्हें महत्त्व भी नहीं देते थे। 

समय यूं ही बीतता गया और अनुष्का की पढ़ाई पूरी होते होते शादी हो गई। अनुष्का जितनी  प्रतिभाशाली थी, ससुराल उसे उल्टा ही मिल गया। 

पुराने रीति रिवाज और तौर तरीके में उसकी प्रतिभा कहीं दबकर रह गई थी। पिता को तो नहीं मां को जल्दी थी कि, उसकी शादी हो और वो अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाए। वो मायके कई बार आए गई,पर दीदी मुनि से मुलाकात नहीं हो पाई थी। एक बार जब वो मायके आई,तो दीदी मुनि ही अनुष्का से मिलने आई। 




अनुष्का को देख कर बोली, “कितने दिन हुए तुमसे मिले, अपनी दीदी मुनि को तू तो भूल ही गई,समय मिले तो एक बार आना जरूर!”

अनुष्का को बहुत खुश ना देख वो अनुभवी महिला सब समझ चुकी थी।

अनुष्का की माँ ने एक दिन उससे कहा,”परसों तू चली जाएगी,कितने दिन हो गए, कोई इतने प्यार से बुलाए तो उसके घर जाना चाहिए,चल मेरे साथ में तुझे ले चलती हूं, तू तो रास्ता भी भूल गई होगी!”

अनुष्का अनमनस मन से तैयार हुई। दोनों दीदी मुनि के घर जाने लगीं। वही झाड़ी झंकर पगडंडी सा रास्ता,इस बार अनुष्का चुपचाप थी। 

पर वो तो चौंक गई,जब उसने देखा वहांं, दीदी मुनि की कुटिया महल में बदल गई थी। उसकी मां ने कहा चल अंदर, गेट खोल कर दोनों अंदर जाने लगी। दीदी मुनिआराम कुर्सी में बैठी थी। अनुष्का और उसकी मां को देखकर बहुत खुश हुई। आलीशान घर देख अनुष्का की नजर ठहर ही नहीं रही थी। 

तब दीदी मुनि ने कहने लगीं, “कैसा लगा घर अनुष्का, तेरे भाइयों की मेहनत का फल है ये,दोनों की सरकारी नौकरी लग गई है,और ऊंची पोस्ट पर हैं दोनों, अब सोच रही हूं कि, दोनों की शादी कर निश्चिंत हो जाऊं, तुम्हें भी बुलाऊंगी, शादी में,तू तो ससुराल जाकर भूल ही गई हमें,…..

देख अनुष्का ये जीवन धूप छांव की तरह है,सब दिन एक सा नहीं रहता, तू भी अपनी प्रतिभा को उजागर कर,देखना सब कुछ बदल जाएगा, क्यों अपनी इच्छा को दबा रही है, इतनी पढ़ी लिखी हो कर, खुद में हिम्मत हो तो,सब आसान हो जाता है!”

अनुष्का दीदी मुनि की बातों से प्रभावित हुई…..और दीदी मुनि जो कह रहीं थीं, वो अकेली औरत होकर, उन्होंने कर भी दिखाया था, ज़िंदगी की धूप छांव को सहकर वो जीत गई थी,कुछ खोकर बहुत कुछ पा गई थी। 

#कभी धूप कभी छांव 

स्वरचित अनामिका मिश्रा 

झारखंड जमशेदपुर

 

 

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