ढोये हुए रिश्ते – कल्पना मिश्रा

कचहरी से आकर लॉन में ही पड़ी कुर्सी पर आँख मूंदकर बैठ गईं वो। अतीत की जिन बातों को अपने दिलोदिमाग़ से हटा देना चाहती ,उन्हें वही बातें बार-बार याद आ रही थीं। मात्र उन्नीस साल की ही तो हुई थी वह, जब बाबा की ज़िद की वजह से पढ़ाई बीच में ही छुड़वाकर ब्याह दी गई.. ये कहकर कि “शादी के बाद पढ़़ लेना!” ससुराल वाले अथाह संपत्ति, ज़मीन ज़ायदाद के मालिक हैं तो कोई कमी नही होगी और लड़का भी पढ़ा लिखा, सुदर्शन है..फिर ऐसा घर,वर मिले,न मिले”

फिर पढ़ाई तो वह नही कर पाई ,हाँ तरह तरह से प्रताड़ित ज़रूर की जाती।सास, ननदें बातों से और पति तन,मन दोनों ही से प्रताड़ित करने में पीछे न रहते। उसे घुटन होती.. छुटकारा पाने के लिए फड़फड़ाती लेकिन इज़्ज़त के डर से रसूखदार बैरिस्टर बाबा,मम्मी पापा अपनी ही बेटी के लिए कुछ नही कर पाये.. “भले घर की औरतें ऐसा नहीं करतीं या एक दिन भगवान सब ठीक करेंगे”… चंद शब्द बोलकर हर बार उसे बहला देते। फिर उसने किसी से भी, कुछ भी कहना ही छोड़ दिया और अपने आप में सिमटती गईं।

 दस महीने बीतते गोद में प्यारा सा बेटा आने पर वह अपने सारे दुख भूल गयीं,पर पिता बन जाने के बाद भी पति का व्यवहार जस का तस ही रहा। ठीक हो भी कैसे? माताजी अपने अय्याश बेटे को “मर्द है और मर्द तो ये करते ही हैं” कहकर बढ़ावा जो देती थीं।

अब बेटे को पालना ,अच्छे संस्कार देना ही उनका एकमात्र लक्ष्य बन गया।समय बीता.. फिर उसकी शादी और दो साल बाद प्यारा सा पोता आ गया।ज़िंदगी में रंग आने लगे। बहू के रूप में प्यारी सी बेटी मिल गई…शायद मम्मी,पापा ने सच ही कहा था कि “भगवान सब ठीक करेंगे।”




“मम्मा, ये ममता कौन है,,,? मेरी फ्रैंड बता रही थी कि पापा ने अपने साथ उसका भी एयर टिकट करवाया है मुंबई के लिए..”  एक दिन जब बहू ने  पूछा तो अनायास ही उनकी आँखों से वर्षों का बंधा बाँध आँसुओं के रूप में भरभराकर बह निकला। फिर उससे अपना अतीत ,ऐसी कई ममताओं की सच्चाई और अपनी मजबूरी.. सब कुछ बयां कर दिया। 

“ओह!!! इतनी तकलीफ़ कैसे सही आपने? ये तो अति हो गई.. लेकिन बहुत हुआ, अब और नही सहना है आपको..”  गले लगाते हुए बहू बोल पड़ी और बेटा आँखों में आँसू लिए चुपचाप खड़ा रहा..शायद वह भी उसका दर्द महसूस कर रहा था।

“लेकिन,,,, लोग क्या कहेंगे? अब इस उम्र में?” वो फिर कमज़ोर पड़ने लगीं।

“इस उम्र से क्या मतलब? तब आप अकेली थी मम्मी…अब हम आपके साथ हैं…और दुनिया आपको नही, बल्कि पापा की असलियत जानेगी।”

फिर उन्होंने बेटे,बहू के भरोसे अपना घर छोड़ दिया..वह घर जो कभी उनका था ही नही। कुछ ही दिनों में कानूनी प्रक्रिया चालू हो गई। धीरे-धीरे लोग भी सच समझने लगे थेे,पति का असली चेहरा सबके सामने आने लगा। दोनों बच्चे चट्टान की तरह उसके साथ खड़े रहे। कभी मन हारने भी लगता तो बहू बेटा डटकर हौंसला बढ़ाते..भावात्मक और आर्थिक संबल देते हुए। और दो साल चली लंबी लड़ाई के बाद अंततः आज पति से छुटकारा मिल ही गया।

“मम्मी !!! सो गईं क्या ? देखिए बारिश होने का अंदेशा है,,,चलिये,,,अंदर चलकर आराम करिये” 

बहू की आवाज़ सुनकर उनकी तन्द्रा टूटी। उन्होंने उसे निहारा और फिर से अपनी आँखें बंद कर ली,,..”आज बारिश हो ही जाये,,,सैंतीस सालों के जबरन ढोये रिश्ते की कड़वी यादें शायद इस बारिश में बह जायें।”

 

कल्पना मिश्रा

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