निरंजन जी आज काफी दिनों के बाद हल्का महसूस कर रहे थे, क्योंकि तकरीबन एक साल के बाद आज उन्होंने बैडमिंटनखेला था,वह भी अपने बेटे जैसे किराए दार अनूप के साथ। बर्ना तो पत्नी सुहासिनी के जाने के बाद तो उनकी जिंदगी एकदम बीरान सी हो गई थी।बस हरदम अकेले घर में अपने कमरे में बैठे हुए
बस सुहासिनी की यादों में ही खोए रहते।उनका एक ही बेटा था अंकित जो अब अमेरिका में सैटल था और वही रहते हुए अपनी सहकर्मी से शादी भी कर ली थी उनकी बहू नेहा भारतीय थी ।नेहा के पेरेंट्स भी वहीं रहते थे।
अपनी मां सुहासिनी की डैथ की बात सुनकर दोनों बेटा बहू आए थे पन्द्रह दिन तक रूके फिर अंकित ने कहा पापा अब आप हमारे साथ चलिए,यहां आपकी देखभाल करनेवाला कोई नही है।
नहीं अंकित अभी में यहीं रहना चाहता हूं,इस घर की आवो हवा मे तुम्हारी मां की यादें है,उसकी यादों के सहारे ही बाकी की ज़िन्दगी काट देना चाहता हूं।लेकिन अकेले रहना इतना आसान नहीं था।खाना बनाने व घर का काम करने के लिए अंकित ने एक नौकर को नियुक्त कर दिया था। कुछ दिनों तक सब कुछ ठीक चलता रहा,फिर एक दिन मौका पाकर वह नौकर चोरी करके भाग गया।जब अंकित को यह बात बताई तो
उसने कहा ,बस बहुत हो गया पापा मैं आपकी टिकट व वीसा करवा लिया है ,आप मेरे साथ शिकागो चलरहे हैं,जब तक आपका दिल लगे बहां आप आराम से रहिए।
शिकागो पंहुचा कर दो महीने कैसे बीत गए,उन्हें पता ही नही चला।अंकित व रेखा नेभी उनका खूब ख्याल रखा,हर वीकेंड पर वे तीनों घूमने निकल जाते।वहां की खूबसूरती व रहन सहन उन्हें भाने लगा तिस पर बच्चों का साथ, उन्हें लगा अब उनकी शेष जिंदगी भी यहां आराम से कट जायगी। जिंदगी में अपनों का साथ हो तो समय कट ही
एक दिन अंकित से उन्होंने कहा,तुम तो यू एस सिटीजन हो ,मेरे ग्रीन कार्ड के लिए भी एप्लाई करदो सोचता हुं कि शेष जीवन भी तुम लोगों के साथ रह कर ही गुज़ार लूं।यह सुनते ही उनकी बहू रेखा कीभावभंगिमा कठोर हो गई।उस दिन के बाद से बेटे बहू के व्यवहार में परिवर्तन आने लगा।
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जाहिर था वे दोनों उन्हें पूरी लाइफ के लिए रखने को तैयार नहीं थे।उनके ठंडे व उपेक्षित व्यवहार को निरंजन जी अधिक दिन तक सहन नही कर पाए और तीन माह बाद अपने देश भारत लौट आए। अरसा गुज़र गया फिर उसके बाद अंकित ने उन्हें अपने पास नही बुलाया।
अमेरिका से लौट कर कुछ दिनअपने रिश्तेदारों मित्र से मिलने जुलने में निकल गया।फिर एक दिन उनके बहुत पुराने मित्र ने उनसे मुलाकात की। जब निरंजन जी ने उन्हें अपने मन की व्यथा कही तो उनका सटीक जबाव सुन कर वे आश्चर्य चकित रह गए।उनके मित्र सुमेर जी जोकि निरंजन जी की तरह अपनी पत्नी को खो चुके थे,
ने कहा देखो निरंजन ढलती सांझ का सामना हम सबको एक न एक दिन करना ही पड़ता है,हां जानता हूं अकेले रहना बहुत मुश्किल है लेकिन यदि समस्या है तो उसका समाधान भी है,और फिर सिर्फ यादों के सहारे पूरा जीवन नही बिताया जा सकता, ऐसे में तो जिन्दगी में दीमक ही लग जाती है।
फिर जब जीना ही है तो जिंदगी को लाचारी में ढोने की बजाय, खुश हालरह कर जीने का तरीका तलाशो।कितनी भी दौलत जमा कर लो ,लेकिन रुपया पैसा इन्सान की कमी पूरी नहीं कर सकता। उम्र के एक मोड़ पर आकर हरेक को अपनेपन की जरूरत पड़ती ही है ,ताकि मन की बातें करके मन को हलका किया जा सके। तुम्हारा इतना बड़ा घर है,खाली पड़ा है,तुम तो सारा दिन अपने कमरे में ही पड़े रहते हो,अकेलापन कभी कभी डिप्रेशन की तरफ ले जाता है।
न हो तो अपने घर में कोई किराएदार रख लो,घर में रौनक भी रहेगी और हारी बिमारी में अकेलापन भी नही महसूस होगा।
मैं एक अच्छे परिवार को जानता हूं जो इस शहर में नए आए हैं उन्हें एक घर की तलाश है ,मैं कल ही उनको तुम्हारे पास भेजता हूं।
दूसरे दिन हीअनूप व रीता उनसे मिलने आगए। साधारण सी बातचीत के बाद निरंजन जी ने उनको अपने घर में बतौर किराएदार रहने की अनुमति दे दी।अनूप व रीता की शादी को चूंकि अभी कुछ ही महीने हुए थे सो उन लोगों के आने के बाद भी वे अपने कमरे में ही रहते इस संकोच से कि कहीं नए शादी शुदा जोड़े की प्राइवेसी में कोई दखल न पड़े।
सुबह की चाय अनूप उनके कमरे में ही पहुंचा देता नाश्ता व लंचकी जिम्मेदारी रीता ने बखूबी संभाल ली।
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एक दिन संडे था ,अनूप उनके कमरे में आया और कहने लगा,अंकल आप हमारे पिता समान हैं,सारा दिन अलग थलग कमरे में ही क्यों पड़े रहते हैं ,बाहर आकर हम लोगों के साथ बैठिए,बातचीत कीजिए हम लोगों को भी अच्छा लगेगा और आपको भी अकेलापन नहीं महसूस होगा।और हां रात खाना भी हमारे साथ ही खाया कीजिए।सुनकर उन्हें अच्छा लगा। पर प्रकट में बोले बेटे मैं नही चाहता कि मेरी बजह से तुम लोगों को कोई परेशानी हो।
इसमें परेशानी की क्या बात है,अंकल हमें तो बहुत अच्छा लगेगा। फिर अनूप उन्हें नाश्ते की टेबल पर ले आया,संडे होने के कारण रीता ने नाश्ते में आलू के परांठे बनाए थे,तीनों ने नाश्ता किया साथ ही ढेर सारी बातें भी की। निरंजन जी ने जी भर कर रीता की तारीफ की,कितने अरसे के बाद आज उनको आलू के परांठे खाने को मिले थे।
धीरे-धीरे निरंजन जी उन दोनों से काफी घुल मिल गए,बातों ही बातों में उन्होंने बताया कि वे अपने टाइम में बैडमिंटन के अच्छे खिलाड़ी रह चुके है,फिर क्या था निरंजन के बड़े से लॉन में ही नेट लगा दिया गया हरसंडे को वे अनूप के साथ बैडमिंटन खेलते ,कभी कभी अनूप उनके बाहर फील्ड में भी साथ ले जाता बैडमिंटन खेलने के लिए।
निरंजन की खोई उर्जा धीरे-धीरे लौट रही थी,अनूप व रीता के रूप में उन्हें एक प्यारा सा परिवार मिलगया था।मौका देख कर रीता ने एक दिन उनसे कहा कि अंकल आप सुबह वॉक पर जाने का रूटीन बना लीजिए,हर समय बैठे रहने से आपकी मसल्स कमजोर हो जायगीऔर हां वॉक पर जाने से आपको कई नए दोस्त भी मिलेंगे ।बस दूसरे दिन से ही निरंजन जी ने मॉर्निंग वॉक पर जाना शुरू कर दिया था दिया ,वहां जाकर उनके कई नए मित्र बन गए और कुछेक पुराने मित्रों से भी मुलाकात हुई।
अब उनका मन बहुत खुश था। वे अपने दोस्तों की बाते अनूप व रीता को भी बताते।
एक दिन अनूप व रीता ने कहा,अंकलएकदिन आप अपने अपने सभी मित्रों कोचाय पर बुलाए,यह सुन कर खुशी से उनकी आंखों से आंसू बहने लगे।ऐसा लग रहा था कि उनकी ढलती सांझ को अनूप व रीता ने एक नई रोशनी से भर दिया था।मन ही मन निरंजन जी ने उनको ढेरों आशीर्वाद दे डाले ,और दूसरे दिन एकनिशचय लिया कि वे अपने मकान को अपने जाने के बाद अनूप केनाम कर देंगे जिससे अपनापन मिले बही अपना है।
माधुरी गुप्ता
नई दिल्ली
ढलती सांझ पर आधारित कहानी