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देवपुरुष या दानव  – प्रीति सक्सेना

    शहर का प्रसिद्ध वृद्धाश्रम जहां हर निराश्रित बुर्जुग को हाथ फैलाकर अपनी शरण में लिया जाता, हर सुख सुविधा से परिपूर्ण उन वृद्धों को 

सुविधाएं दी जाती जिससे, उनमें नव जीवन का संचार सा हो जाता और वो पुनः जी उठते!!

  हर हफ्ते उनका कुशल चिकित्सकों के द्वारा सम्पूर्ण देह के चेकअप करवाए जाते.. कोई रोग निकलने पर पूरी तरह इलाज किया जाता!!

चिकित्सकीय सुविधाओं के लिए सर्व सुविधायुक्त चिकित्सालय था, जहां कुशल चिकित्सकों की टीम उनके स्वास्थ्य का परीक्षण करती और रोग का निदान करती!!

सारा शहर यशवर्धन सिंग के गुणगान करता, उन्हें देवपुरुष का ओहदा तक दे दिया था आखिर वो बेसहारा लोगों के मसीहा जो बन गए थे!!

    प्रकाश एक पत्रकार था जो एक नामी अखबार के लिए काम करता था, खोजी प्रवृत्ति का होने के कारण उसे हर बात जानने की उत्कंठा रहती थी और वो अपने मन की तसल्ली के लिए खोजबीन करता रहता था, संदेह का कीड़ा हमेशा उसके मन में कुलबुलाता ही रहता था!!

प्रकाश का रिश्ता यशवर्धन चिकित्सालय में हाउस कीपिंग इंचार्ज ज्योति से हो गया, अक्सर वो ज्योति से मिलने अस्पताल आ जाया करता एक दिन ज्योति दुखी दिखी….. पूछने पर बताया दो बुर्जुग महिला नहीं रहीं!!

” क्या वो बीमार थीं”?

” नहीं सभी कह रहे थे, कल तक तो सब ठीक था, अचानक रात को क्या हुआ, सुबह पता चला रात में ही वो दोनों चल बसीं!!”

ज्योति तो बोलकर चुप हो गई पर प्रकाश का दिमाग पुनः सोच में डूबा…. अचानक दो बुर्जुग नहीं रहे कारण किसी को पता नहीं, ये कैसे हो सकता है?




      कुछ दिनों बाद ही ज्योति से पता चला कुछ बुजुर्ग  और नहीं रहे अचानक तबियत बिगड़ी, सुबह

देहांत हो गया!!

अब प्रकाश के लिए शांत रहना नामुमकिन था, वो तुरंत अपने एक मित्र जो पुलिस महकमें में बड़े ओहदे पर थे, उनके पास पहुंचा और अपने मन का शक उन्हें बताया, सुनकर वो भी बुरी तरह चौंक गए, चूंकि बात एक रईस और प्रतिष्ठित व्यक्ति की थी तो तुरंत कार्यवाही करना उचित और संभव न था, नेताओं और जनता के भड़कने की भी संभावना थी, अतः चुपचाप योजना बनाई गई, गुप्त रुप से सारी जानकारी जुटाई गईं, पुलिस की रिटायर्ड महिलाओं को बुर्जुग के रुप में आश्रम में पहुंचाया गया!!!

फिर जो जानकारी सामने आईं उसके बाद…….

एक दिन अखबार की सुखियों में बड़े बड़े अक्षरों में ये खबर मुख्य पृष्ठ का हिस्सा बनी ” शहर का सभ्रांत व्यक्ति मानव अंग तस्करी का मुखिया”

पढ़ने वाला हर व्यक्ति चौंक गया, जिस इंसान को भगवान की तरह पूजा जाता वो गरीब, असहाय, निराश्रित लोगों को शरण देकर उनके अंग बेचने का घृणित व्यापार कर रहा था!!

एक सफेदपोश अंदर से कितना काला, गिरा हुआ और ” दोहरे चेहरे ” वाला इंसान होगा, इसका अंदाजा तो कोई लगा ही नहीं सकता था!!

परोपकार की आड़ में किया गया काम कभी किसी की नजर में आता नहीं, इसी बात का फायदा, यशवर्धन सिंग जैसे लोग जो समाज

और इन्सानियत के नाम पर धब्बा हैं, अपना खेल खेल जाते हैं, बेकसूरों की जान लेकर!!

   बचकर रहना है ऐसे दोगले और ” दोहरे चेहरे” वालों से, जिससे कोई मासूम अपनी जान न गवां सके!! 

# दोहरे चेहरे

प्रीति सक्सेना

इंदौर

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