दवा-दारू – शालिनि दीक्षित

“पापा-पापा यह देखिए अपने घर में भी ड्रग है, टीवी वालों को पता चल गया तो हमको भी पकड़ कर ले जाएंगे………” छः साल का चिंटू परेशान सा अंदर से दौड़ाता हुआ आया और बोला।

“ड्रग!!! कहाँ है?” विशाल ने आश्चर्य मिश्रित घबराहट में पूछा।

“अभी दिखाता हूँ।” कह कर चिंटू अंदर भाग गया और हाथ में पैकेट लेकर बाहर आया।

“यह देखिए पापा!” पैकेट को आगे करते हुए बोला।

पैकेट देखते ही विशाल जोर-जोर से हँसने लगा; उसकी हँसी नहीं रुक रही थी, पैकेट पर लिखा था- एच शेड्यूल्ड ड्रग।

“तुम्हें कहाँ से मिली? ये तो दादा जी की दवाई है, मेडिसिन है………” विशाल ने पुछा।

“ड्रग बुरी चीज होती है………दादा जी की मेडिसिन कैसे हुई?” दादा जी दादी से कह रहे थे- अब तो दवा-दारु के सहारे ही जीवन कटना है, दारू तो ड्रिंक को कहते है ना पापा?” चिंटू आश्चर्य से बोला।

विशाल मुस्कराते हुए चिंटू को देखता रहा।

“ड्रिंक तो बुरी चीज बीमार कर देती है……..आप तो उनको डॉक्टर के पास ले जाते हैं ये सब ड्रग लेंगे तो बीमार ही पड़ेंगे…….” चिंटू फिर बोला।

चिंटू के दिमाग में अनगिनत सवाल है, विशाल बहुत मुश्किल में पड़ गया है; छोटे से बच्चे को दवा और दारू के बीच का फर्क कैसे समझाए? फिर भी बच्चे के सवालों का जवाब देना ही है, उसकी दुविधा को दूर करना ही है; नहीं तो न जाने छोटा सा बच्चा  अपने दिमाग के अंदर क्या-क्या पाले रखेगा।


“देखो बेटा तुम्हारे ताऊ जी फार्म हाउस में जो गन्ने होते है उनमें से कुछ गन्ने का रस निकलवा लेते हैं फिर उस रस का सिरका यानी विनेगर बनाते हैं जो कि फर्मेंटेड करने से बनता है और उसी सिरके से हमारे घर का अचार सालों-साल ताजा बना रहता है; खराब नहीं होता । खेत में काम करने वाले मजदूर वह रस ले जाते हैं उसको थोड़ा और प्रोसेस करके उसकी दारु बना लेते हैं फिर उसको पी-पी के बीमार पड़ जाते है। ऐसे ही सेब या एप्पल का विनेगर बनता है जो कि शरीर में आयरन की कमी को पूरा कर देता है और उससे वाइन भी बन जाती। काले अंगूर के रस में यीस्ट डाल के तुम चार-पांच दिन रखो तो बालों को स्किन को फायदा करने वाली दवाई बनती है, ज्यादा दिन रखो तो वाइन बन जाती है जो शरीर को बीमार करती है; नुकसान पहुँचाती है……..अरे छुटकू मैं तुमको कैसे समझाऊँ ये सब बड़ी बड़ी बातें……..” विशाल चिंटू को समझाते हुए बोला।

“क्या चल रहा है आप दोनों के बीच?” प्रिया बाहर आते हुए बोली।

“अब देखो ना चिंटू कह रहा है यह ड्रग है……और इसे दादा जी लेते हैं…….” दवाई के पैकेट की तरफ इशारा करते हुए विशाल बोला।

“चिंटू तुम इधर आओ मेरे पास।” प्रिया ने कुर्सी पर बैठते हुए कहा।

“हाँ मम्मा!! आ गया………” चिंटू दौड़कर आया और प्रिया की गोद में बैठ गया।

“अच्छा यह बताओ चिंटू, पुलिस के पास बंदूक होती है और वह गोली चलाते हैं तो किस को मारते हैं?” प्रिया ने पूछा।

चिंटू जोर-जोर से हँसने लगा फिर बोला, “मम्मा चोर को मारते हैं; आपको इतना भी नहीं पता?”

“फिर क्या पुलिस को इस बात की सजा मिलती है?” प्रिया ने फिर पूछा।


“ओ मम्मा; आपको कुछ नहीं पता, नहीं मिलती सजा, वो तो गंदे लोगों को मारते तो सजा क्यों मिलेगी?” चिंटू ने चेहरे पर समझदारी के भाव लाते हुए कहा।

“हाँ बेटा; नहीं मिलती है ना, और जब चोर किसी को बंदूक से मारते तो उनको सजा मिलती है।”

“हाँ तब तो उनको पुलिस पकड़ के ले जाती है मम्मा………”

“तो वैसे ही यह ड्रग वह दवा है जैसे कि पुलिस की बंदूक की गोली; जो गंदे को मारती है और यह बीमारी को ठीक करती है । वो ड्रग जो तुमने टीवी में देखी या ड्रिंक वह गोली है जो अच्छे इंसान को बीमार करती है अच्छे को मारती है यानी कि चोर की बंदूक है समझ गए क्या?”

“हाँ मम्मा समझ गया ये अच्छे काम करने वाली ड्रग है……..वह बीमार  करने वाली बुरा करने वाली……..”

प्रिया और विशाल दोनों बहुत मुश्किल में पड़ गए हैं, उनको लग रहा है बच्चों के सवाल का जवाब देना तो नाकों चने चबाने जैसा है; पता नहीं वह उस नन्हे मन से इस दुविधा को दूर करने में सफल भी हुए कि नहीं?

मौलिक/स्वरचित

शालिनि दीक्षित

 

 

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