दर्द – भगवती सक्सेना गौड़

एक उम्र गुजरने के बाद उस उम्र की यादे कभी कभी अचानक सामने आकर आश्चर्य में डाल देती है । वो दर्द की पराकाष्ठा ही थी, इसलिए उन यादों से शकुन दूर ही रहना चाहती थी ।

45 साल पुराना वक़्त, जब शकुन 15 वर्ष की रही होगी, पड़ोस में उसकी सहेली शिखा रहती थी, उसके पापा, शकुन के पापा के स्कूल के शिक्षक ही थे । हमेशा उनके घर से आना जाना होता रहता था ।

वो चाचा चार बेटियों के पापा थे और अपने जीवन से त्रस्त ही रहते थे । चाची की खूबसूरती और कार्यकुशलता पूरे मोहल्ले में प्रसिद्ध थी ।

एक दिन उनके घर से जोर से चाचा के गुस्सा होने की आवाज़े आ रही थी, शकुन और कुछ सहेलियां बाहर ही खड़ी थी, उनके दरवाजे में एक गोल सा छेद था, जिससे बारी बारी से वो देखने लगी। चाचा, चाची को बुरी तरह से मार रहे थे, कभी बाल खींचना, कभी धक्का देना और उनकी बेटियां बोल रही थी,” नही पापा, नही।” और वो किसी भी तरह सुनने को तैयार नही थे । शकुन ने आकर मम्मी को बताया तो डांट पड़ी,” किसी के घर यू झांका नही करते।”

फिर तो हफ्ते में एक बार ये दृश्य दिखने लगा । एक दिन रोते हुए शिखा ने आकर शकुन के पापा से कहा,” ताऊजी, आपकी बात पापा मानते हैं, कुछ समझाइए, मम्मी बहुत रोती हैं।”


और दूसरे दिन उनके यहां से ज्यादा आवाज़े आने लगी, शिखा ने बताया,” पापा ने ताऊजी के समझाने को गलत ढंग से समझ लिया, मम्मी को और ज्यादा गाली गलौज , मार पीट सहनी पड़ी, कुलटा है, दूसरो से इश्क़ करती है।”

धीरे धीरे सबकी इस माहौल में रहने की आदत हो गयी, 10 बजे चाचा के जाने के बाद घर का माहौल खुशगवार हो जाता था, 4 बजे फिर मार्शल लॉ लग जाता था । शिखा ने शकुन से कभी कुछ नही छुपाया । एक दिन आकर बहुत रोने लगी मैने पूछा,” अब क्या हुआ।”

“कल मम्मी, घर मे जो कुआं है, उसमें कूदने वाली थी, मेरी नजर पड़ गई, किसी तरह बचाया।”

इसी तरह 5 साल और चिल्लाते रहे और उन्हें ब्रेन हेमरेज हुआ और समाप्त हो गए ।
बेटियां पढ़ने में होशियार थी, मामा जिनको पहले घर मे आना मना था, बाद में उन्होंने बहुत सहायता की । शकुन की सहेली शिखा रेलवे की एंट्रेंस परीक्षा पास कर अकाउंटेंट बन गयी ।


बेटी ने मम्मी को हमेशा अपने पास रखा, कुछ साल मम्मी के बहुत अच्छे बीते ।

दो साल पहले एक शादी में शिखा से मुलाकात हुई, बातो से अधिक, आंसू ने हाल बताया ।

उसके अनुसार कुछ साल पहले मम्मी भी ईश्वर को प्यारी हो गयी, अंतिम साल बहुत बीमार रही, और नींद में चिल्लाती रही,” मत मारो मुझे।”

भगवती सक्सेना गौड़

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