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दर्द तो मुझे हुआ था  – सविता गोयल

अंजलि छत पर बंधी ऊंची रस्सी पर कपड़े सुखाने की कोशिश कर रही थी लेकिन उसका हाथ नहीं पहुंच रहा था। थोड़ा उचककर उसने जैसे ही कपड़ा सुखाया अंजलि की कमर में झटका लगा और दर्द शुरू हो गया।कमर पकड़कर वो धीरे धीरे छत से नीचे उतरी और बरामदे में डली कुर्सी पर बैठ गई। अंजलि की सास नीरा जी ने उसे इस तरह बैठे देखा तो पूछ बैठी, ” क्या हुआ बहु ? ऐसे क्यों बैठी हो ? अभी तो सारा काम पड़ा है।,, ” वो मम्मी जी, कपड़े सुखाते हुए कमर में झटका लग गया। बहुत दर्द हो रहा है।,, “ओह!! …. झटका तो एक बार मुझे लगा था। ना उठा जा रहा था ना हीं बैठा जा रहा था। दर्द के मारे मेरी जान निकल रही थी फिर भी घर का सारा काम करना पड़ा।,, अंजलि को समझ में आ रहा था कि सासु मां ये सोंच रही हैं कि कहीं बहु के दर्द के कारण बाकी का काम उन्हें ना करना पड़ जाए।

अंजलि ने अंदर जाकर थोड़ी बाम रगड़ी। थोड़ी देर बाद जब उसे आराम लगा तो उसने घर का बाकी काम निपटाया। अंजलि जब प्रैगनेंट थी तब उसके पैरों में सुजन और दर्द रहने लगा था। मीरा जी को पता था कि इस समय क्या परेशानी होती है फिर भी वो अंजलि से हमेशा यही बात कहती, “बहु , जब अविनाश ( अंजलि का पति) मेरे पेट में था तब मेरे पैर इतना सूज गए थे कि पूछो मत। मुझसे तो चप्पल भी नहीं पहनी जाती थी इतनी तकलीफ़ में भी मेरी सास मुझसे सारा काम करवाती थी।कहती थीं इस समय काम करना अच्छा होता है। डिलिवरी आसानी से हो जाती है।,, बच्चे की डिलीवरी के समय भी अंजलि को दो दिन पहले ही लेबर पेन शुरू हो गया। दो दिनों के बाद उसने नार्मल डिलीवरी से एक बेटी को जन्म दिया।उस समय भी सासु मां अपने दर्द का गुणगान करने से नहीं चूकीं। ” बहु तुमने तो फिर भी थोड़ा ही दर्द सहा है। जब अविनाश पैदा हुआ था तब मैंने पूरे चार दिनों तक दर्द सहा था।उस समय तो इतने डाक्टर भी नहीं थे ख्याल रखने के लिए।, अंजलि मन ही मन सोच रही थी ” मैं समझ सकती हूं मम्मी जी,चाहे मैं कितना भी दर्द सह लूं लेकिन आपका दर्द मेरे दर्द से बड़ा हीं रहेगा क्योंकि आप मेरी सासु मां जो हैं। खैर कोई बात नहीं आपने अपने हिस्से का दर्द सह लिया और मैंने अपने हिस्से का । शायद भगवान मुझपर मेहरबान थे जो उन्होंने मुझे आपसे कम दर्द दिया।,,
#दर्द
सविता गोयल

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