दर्द और उपहार  – बीना शुक्ला अवस्थी

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करोना की दूसरी लहर पहली से अधिक भयावह है लेकिन आज अभिलाषा बहुत प्रसन्न है। आज उसे दोहरी खुशी मिली है।

पहली – चौदह दिन आइसोलेशन में रहने बाद आज उसकी करोना रिपोर्ट निगेटिव आई है।

दूसरी – आज उसने करोना का दर्द सहकर एक वर्ष पूर्व खोई हुई अपनी बेटी मेधावी को फिर से पा लिया है।

पिछले वर्ष हम सब होली के खुमार से उभर भी नहीं पाये थे कि लाक डाउन कहर बनकर गिर पड़ा। हम सब घरों में कैद हो गये।

एक दिन सम्पर्क के सहकर्मी रंजन का फोन आया। रंजन की अभी पॉच वर्ष पहले ही सम्पर्क के आफिस में नियुक्ति हुई थी। चूँकि रंजन ने अपनी नौकरी की शुरूआत सम्पर्क के अधीनस्थ रहकर की थी और तीन वर्ष तक उनके साथ ही कार्य किया था तो वह सम्पर्क का बहुत सम्मान करता था। रंजन और रागिनी की शादी में भी अभिलाषा और सम्पर्क गये थे।

इस समय सम्पर्क विभाग की दूसरी शाखा में था। सम्पर्क ने फोन उठाया तो रंजन बुरी तरह सिसक रहा था।, वह हॉफ भी रहा था। सम्पर्क बुरी तरह घबड़ा गये – ” क्या बात है रंजन, तुम ठीक नहीं हो क्या? “

रंजन ने बड़ी मुश्किल से सिसकते हुये कहा – ” सर, मैं और रागिनी करोना पाजिटिव हो गये हैं , क्या आप कुछ दिन के लिये मेरे बेटे अंतरिक्ष को अपने पास रख लेंगे?”

अभिलाषा पास ही बैठी थी, सम्पर्क की घबड़ाहट और हिचकिचाहट देखकर अभिलाषा ने इशारे से मोबाइल मॉगा। रंजन को कुछ कहने में असमर्थ देखकर अभिलाषा ने उसे रागिनी को फोन देने को कहा – रागिनी क्या बात है? कोई समस्या है क्या?”

रागिनी ने बुरी तरह रोते हुये सारी बात बताई – मैंने और रंजन ने हमेशा मायके, ससुराल के अलावा सबकी मदद की है लेकिन आज संकट की इस घड़ी में सबने मेरे बच्चे को रखने से मना कर दिया है जबकि वह निगेटिव है।”



” तुम लोग बिल्कुल चिन्ता मत करो। अंतरिक्ष के कपड़े वगैरह रखकर बैग तैयार कर दो। मैं और संपर्क आ  रहे हैं, अंतरिक्ष की चिन्ता मत करना।”

जब अभिलाषा और संपर्क पहुँचे तो एम्बुलेन्स आ चुकी थी। रागिनी और रंजन ने रोते रोते बेटे और घर की चाभियॉ सम्पर्क और अभिलाषा के हवाले करके एम्बुलेन्स में बैठ गये। अभिलाषा और सम्पर्क ने दोनों को आश्वस्त करते हुये कहा – ” बहुत जल्दी स्वस्थ होकर आना। अंतरिक्ष की बिल्कुल चिन्ता न करना।”

जब एम्बुलेन्स चली गई तो नादान अंतरिक्ष समझा कि मम्मी पापा उसे छोड़कर घूमने गये हैं और वह दहाड़ मारकर रोने लगा। दो साल का अंतरिक्ष पहले तो पापा – मम्मी को याद करके बहुत रोता था, सम्पर्क और अभिलाषा उसके लिये अजनबी थे। वह घर भर में अपने मम्मी पापा को ढ़ूढ़ता रहता लेकिन बच्चें बहुत जल्दी परिस्थितियों से समझौता कर लेते हैं।

इण्टरमीडियट में पढ़ने वाली बेटी मेधावी को तो प्यारा सा खिलौना मिल गया। अभिलाषा का घर तो मानो अंतरिक्ष के आने से रोशनी से भर गया था।

अभिलाषा और सम्पर्क बराबर डाक्टर से उन दोनों के लिये बात करते रहे। एक दिन वह मनहूस खबर मिली कि रागिनी करोना की जंग हार गई। किसी भी रिश्तेदार ने रागिनी के अन्तिम संस्कार में दूर से भी खड़े होने से मना कर दिया। सम्पर्क ने अस्पताल में बात की, अभिलाषा और सम्पर्क ने रागिनी को अंतिम विदाई दी। हालांकि अभिलाषा का मन अंतरिक्ष को ले जाने था , परन्तु बच्चे की सुरक्षा के कारण सम्पर्क को यह निर्णय उचित नहीं लगा।

रागिनी के जाने से रंजन बिल्कुल टूट गया, डाक्टर ने सम्पर्क से रंजन की वीडियो काल द्वारा बात करवाई। रंजन फूट फूटकर रो पड़ा, वह बहुत कठिनाई से सॉस ले पा रहा था – ” सर, अगर मैं न रहूँ तो अंतरिक्ष का दायित्व मैं आपको सौंप रहा हूँ। मेरे स्वार्थी रिश्तेदारों से इसकी रक्षा कीजियेगा। मैं आपसे अपने बेटे के लिये भीख मॉगता हूँ।” रंजन बुरी तरह खॉसता जा रहा था।

अभिलाषा दौड़कर अंतरिक्ष को उठा लाई – ” यह देखो रंजन, अंतरिक्ष बिल्कुल ठीक है। तुम्हें इसके लिये ठीक होना है। घबड़ाओ मत, तुम बहुत जल्दी ठीक हो जाओगे।”

वीडियो काल में रंजन को देखकर अंतरिक्ष ” पापा “………. “पापा”…… कहकर रोने लगा। अब रंजन बोल नहीं पा रहा था, वह एकटक अंतरिक्ष को देख रहा था।

डाक्टर ने फोन बन्द करते हुये कहा – ” इनकी स्थिति बहुत खराब है, इसलिये आप लोगों से बात करा दी।”

अभिलाषा और सम्पर्क बहुत डर गये। अंतरिक्ष को सीने से लगाकर अभिलाषा फूट फूटकर रोने लगी – ” हे ईश्वर, इस मासूम को अनाथ मत करना। मॉ का साया तो पहले ही हट गया है, इसके पिता की रक्षा करो।”

लेकिन प्रार्थनायें कुछ काम नहीं आईं। दूसरे दिन दोपहर को ही डाक्टर का फोन आ गया कि रंजन रागिनी के पास चला गया। डाक्टर ने यह भी कहा कि रंजन ने एक पत्र दिया है और उसकी इच्छा थी कि सन्बन्धियों को सूचना देने के पहले सम्पर्क वह पत्र पढ़ ले।



रागिनी की मृत्यु होते ही रंजन को कुछ आभास हो गया। उसने डाक्टरो और वीडियो कान्फ्रेन्सिंग की सहायता से अपनी वसीयत तैयार करके लिफाफे में पत्र के साथ रख दिया।

सम्पर्क और अभिलाषा रोते हुये अस्पताल भागे और रंजन के दिये पत्र के अनुसार ही कार्य करने प्रारम्भ कर दिया। बार बार फोन करने के बाद भी रंजन या रागिनी का कोई सम्बन्धी नहीं आया।रागिनी की तरह ही रंजन का अंतिम संस्कार सम्पर्क ने ही किया।

सम्पर्क और अभिलाषा ने रंजन के घर जाकर मकान मालिक के सामने एक लिस्ट बनाकर अंतरिक्ष की सारी सामान, नगद, बीमा के कागजात, एफ0 डी0 के पेपर, बैंक लाकर की चाभियॉ और बाकी कीमती सामान एक बैग में रखा और उन्हीं के घर के स्टोर में सारा सामान रखकर फ्लैट खाली कर दिया। यह विचार किया गया कि लाकडाउन समाप्त होने पर सारे सामान की व्यवस्था की जायेगी।

लाकडाउन की समाप्ति के पश्चात सम्पर्क, अभिलाषा और रंजन के कुछ दोस्तों ने मिलकर रंजन और रागिनी की आत्मा की शान्ति के लिये अंतरिक्ष को गोद में लेकर उसके हाथों से हवन करवाकर अनाथाश्रम के बच्चों को खाना, कपड़ा दे दिया।

रंजन और रागिनी के रिश्तेदारों के फोन आने शुरू हो गये। जिस अंतरिक्ष को कोई एक दिन के लिये भी रखने को तैयार नहीं था, उसके तमाम दावेदार हो गये।

सम्पर्क ने रागिनी के मायके वाले, रंजन के घर वाले और उन तमाम सम्बन्धियों को जो अंतरिक्ष के दावेदार थे, रंजन के विशेष मित्रों को सबको अपने घर बुलाया। अंतरिक्ष बुलाने के बाद भी किसी के पास नहीं गया, वह अभिलाषा और मेधावी से ही चिपका रहा।

थोड़ी देर बाद वकील साहब और डाक्टर भी आ गये। सबके सामने रंजन की वसीयत पढ़ी गई, जिसमें रंजन ने सम्पर्क और अभिलाषा को अंतरिक्ष का संरक्षक नियुक्त करने के साथ ही उसके वयस्क होने तक अपनी सारी सम्पत्ति का संरक्षक भी सम्पर्क और अभिलाषा को बनाया था। सबके चेहरे उतर गये। वसीयत पर अस्पताल के डाक्टरों और वकील के गवाह के रूप में हस्ताक्षर होने के कारण कोई कुछ बोल नहीं पाया। फिर भी सभी गुस्से में उन लोगों को लालची, स्वार्थी और भी न जाने क्या क्या कहने लगे। कुछ ने तो यह भी कह दिया कि अभिलाषा और सम्पर्क पैसे के लालच में अंतरिक्ष की हत्या कर देंगे।

रंजन और रागिनी के मृत्यु प्रमाण पत्र, वसीयत तथा अन्य आवश्यक पत्रों को पुलिस और कोर्ट को सौंपकर सम्पर्क दम्पत्ति ने अंतरिक्ष को अपना दत्तक पुत्र बना लिया। बेचारा नन्हा सा अंतरिक्ष नहीं जानता था कि इस उम्र में उसने क्या खो दिया है। मेधावी के कारण वह भी सम्पर्क दम्पत्ति को ” मम्मी और पापा ” कहने लगा।

अंतरिक्ष के दत्तक बनते ही मेधावी के व्यवहार में परिवर्तन आने लगा। काफी चुप सी रहने लगी। सम्पर्क और अभिलाषा से भी ठीक से बात नहीं करती थी। जो मेधावी अंतरिक्ष को इतना प्यार करती थी, उसे गोद से उतरने नहीं देती थी, वह चिड़चिड़ी सी हो गई। अंतरिक्ष को बुरी तरह झिड़ककर भगा देती। वह नासमझ क्या जाने, वह जब कभी ” दीदी” ……” दीदी” कहकर जाता तो उसे थप्पड़ मार देती। वह रोता हुआ अभिलाषा के पास आता तो अभिलाषा प्यार से उसे समेट लेती। सोंचती बच्चे कभी कभी कई तरह के तनावों में गुजरते हैं, कभी कभी मन अशान्त हो जाता है।



एक दिन तो अभिलाषा के धैर्य का बॉध टूट गया। मेधावी ने थप्पड़ मारकर उसे इतनी जोर से धक्का दे दिया कि मेज के कोने से उसे बहुत चोंट लग गई। पहले तो उसने रोते हुये अंतरिक्ष को चुप कराकर उसके माथे पर दवा लगाई और सुला दिया।

फिर मेधावी के कमरे में गई – ” मेधा, यह सब क्या है? कभी एक थप्पड़ मारना तो दूर तुम्हें डॉटा तक नहीं हमने और तुम इतने छोटे बच्चे को थप्पड़ मार देती हो। आज तो तुमने हद कर दी है, उसे कितनी अधिक चोंट लग गई है। इतने छोटे बच्चे के साथ ऐसा व्यवहार करते शर्म नहीं आती तुम्हें?”

” तो अपने साथ रखिये उसे। बार बार भगाने पर भी चिपकने चला आता है। मेरे पास आयेगा तो मार ही खायेगा।” इतना होने के बाद भी मेधावी के चेहरे पर कोई पश्चाताप नहीं था।

” क्यों मार खायेगा? वह भी बेटा है हमारा, तुम्हारा भाई है वह।”

” आपका बेटा है, मेरा भाई नहीं। मुझे किसी भाई की जरूरत नहीं है, मुझे नहीं चाहिये। मैं इकलौती हूँ, अपने मम्मी पापा का अकेला बच्चा। आपने हमेशा मुझसे कहा है कि मुझे पाकर आप इतना संतुष्ट थीं कि दूसरे बच्चे की कभी इच्छा ही नहीं हुई।”

अभिलाषा को मेधावी के बदले हुये व्यवहार का कारण समझ में आ गया। उसने बहुत प्यार से कहा – ” यही सच था बेटा लेकिन तुम इस बच्चे के बारे में तो सोचों कि जिसे यह पता ही नहीं कि इसने अपने जीवन में कितना अमूल्य खो दिया है। सोचों क्या करते हम, कितने विश्वास से रंजन और रागिनी ने इसे हमें सौंपा है।”

” मुझे नहीं पता, मेरे मम्मी पापा सिर्फ मेरे मम्मी पापा हैं। आप इसे कहीं भेज दीजिये।”

” कैसी बातें कर रही हो? कहॉ जायेगी, यह नन्हीं सी जान?  क्या हो गया है तुम्हें ? तुम्हें तो बच्चे बहुत अच्छे लगते थे, बहुत प्यार करती थीं तुम बच्चों से।”

” आज भी करती हूँ मम्मी लेकिन आप और पापा के प्यार में बटवारा सहन नहीं कर पा रही हूँ। इसने मेरी मम्मी को मुझसे छीन लिया है, आप सारा दिन इसी की चिन्ता में लगी रहती हो। भिखारी को भीख दी जा सकती है लेकिन अपनी सम्पत्ति का भागीदार तो नहीं बनाया जा सकता। आप और पापा से बड़ी सम्पत्ति मेरे लिये क्या होगी?” मेधावी अभिलाषा के गले लगकर रोने लगी। अभिलाषा की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे? बहुत समझाने पर भी मेधावी के व्यवहार में कोई अन्तर नहीं आया, बल्कि वह अभिलाषा और सम्पर्क से भी कटी कटी सी रहने लगी।

सम्पर्क ने भी उसे समझाने का बहुत प्रयत्न किया – ” मेधा, अंतरिक्ष अभी बहुत छोटा है। इसीलिये उसे अधिक देखभाल की जरूरत है, थोड़े दिनों में वह सक्षम हो जायेगा तो अपने कार्य खुद ही करने लगेगा। तुम्हारे प्रति हमारा प्यार कम नहीं हुआ है, तुम्हारी जगह तो कोई नहीं ले सकता। तुम्हारी जैसी प्यारी और समझदार बिटिया ऐसा सोंच सकती है, मुझे उम्मीद नहीं थी।

” ऐसे ही रहने देते उसे, दत्तक बनाने की क्या आवश्यकता थी? जब उसके रिश्तेदार लेने आये थे तो क्यों नहीं भेज दिया?”

” बेटा वो लोग रंजन के पैसे के कारण उसे ले जाने आये थे। सोचों जब रंजन और रागिनी बीमार थे तो किसी को बच्चे पर दया नहीं आई। उन दोनों की मृत्यु के बाद मैंने सबको फोन किया लेकिन कोई न आया। तुम्हें तो अंतरिक्ष का सहारा बनना चाहिये।”

” मुझे नहीं बनना किसी का सहारा। अब जीवन भर यह मुझे जलाता रहेगा और मेरे सीने पर मूँग दलता रहेगा।”



इतनी देर तक धैर्यपूर्वक समझाते हुये सम्पर्क का भी धैर्य अब जवाब दे गया, वो क्रोध से चीख से पड़े – “मेधा, जरूरत से ज्यादा बोलने लगी हो, अभी तुम इतनी योग्य नहीं हो गई हो कि हर काम में मुझे तुम्हारी इजाजत लेनी पड़े।”

मेधा पैर पटकती हुई चली गई। अभिलाषा ने समझा बुझाकर सम्पर्क को शान्त किया। अभिलाषा का विश्वास था कि सब कुछ अपने आप ठीक हो जायेगा। वह मेधा की मानसिक स्थिति समझ रही थी। जिस बच्चे ने अठ्ठारह साल की उम्र तक पूरा ध्यानाकर्षण पाया हो, घर पर राज्य किया हो, उसकी ऐसी स्थिति स्वाभाविक है। मेधावी की ही इच्छा अनिच्छा ही सर्वोपरि थी घर में।

अभिलाषा को याद था कि मेधावी की बहुत प्यारी गुड़िया और टैडी बियर था जिन्हें वह बहुत प्यार करती थी। सारा दिन उन्हें गोद में उठाये रहती थी, उनके नाम उसने चुनचुन और डुग्गू रखे थे। लेकिन जब अभिलाषा और सम्पर्क उन खिलौनो को अपनी गोद में उठाकर मेधावी को चिढ़ाने के लिये दुलार करने लगते तो वह दौड़कर आती और खिलौने छींनकर दूर फेंक देती और गोद में बैठ जाती। सम्पर्क और अभिलाषा का यह प्रिय खेल था। मेधावी जब किसी एक की गोद में होती तो दूसरा खिलौना गोद मे ले लेता। बेचारी मेधावी दोनों ओर दौड़ती रहती और वो दोनों मजा लेकर खूब हँसते।

धीरे धीरे मेधावी ने तटस्थता अपना ली। उसने अपना कमरा ऊपर की मंजिल में कर लिया। वह जरूरत पड़ने पर ही नीचे आती, अपना खाना लेकर चली जाती। सम्पर्क और अभिलाषा से आवश्यक बात ही करती। अभिलाषा ने सम्पर्क को समझा दिया और मेधावी से कुछ भी कहना छोड़ दिया।

करोना की दूसरी लहर आ गई। अभिलाषा को कई दिन से बुखार और खॉसी आ रही थी। सम्पर्क ने चारो व्यक्तियों का कोविड टेस्ट करवा लिया।

सबकी रिपोर्ट तो निगेटिव आई लेकिन अभिलाषा की रिपोर्ट पाजिटिव आ गई। अभिलाषा को आइसोलेशन में रहना था, लेकिन कैसे? घर की व्यवस्था का क्या होगा? सबसे अधिक अंतरिक्ष की चिन्ता खाये जा रही थी।

अभिलाषा आइशोलेशन में गई तो सम्पर्क ने आफिस से छुट्टी ले ली। बाई से कहकर उसकी लड़की को पन्द्रह दिन के लिये अपने घर में रख लिया। वह घर का काम करने के साथ ही अंतरिक्ष को भी सम्हाल लेती। अपने कमरे से नीचे आकर रसोई की पूरी व्यवस्था मेधावी ने सम्हाल ली। मेधावी और अंतरिक्ष को उसने दूर ही रखा लेकिन मना करने के बावजूद सम्पर्क नहीं मानते थे। पूरी सतर्कता रखते हुये उसके कमरे में आकर उसके पास बैठते और उसका मन बहलाते। उसके मोबाइल में पुराने, गाने, भजन, कामेडी फिल्में डाउन लोड कर दी। कुछ योगा के एप भी डाउन लोड कर दिये।

आज अभिलाषा की कोविड निगेटिव रिपोर्ट आई तो मेधावी दौड़कर आई और उसके गले लिपटकर रोने लगी – ” मम्मी, आपकी पाजिटिव रिपोर्ट से मैं बहुत डर गई थी, अगर आपको कुछ हो जाता तो मैं क्या करती?”

अभिलाषा उसको अपने से लिपटाकर उसके सिर पर हाथ फिराने लगी – ” कैसे कुछ हो जाता, इतनी प्यारी बिटिया को छोड़कर तो जा ही नहीं सकती थी मैं?”

फिर उसने अभिलाषा और सम्पर्क के सामने दोनों हाथ जोड़कर कहा – ” आप लोग मुझे माफ कर दीजिये। आज मुझे उस दर्द का अहसास हुआ जिससे अंतरिक्ष अनजान है। मैं तो इतनी बड़ी हूँ, अपनी देखभाल कर सकती हूँ और मैं अपनी मम्मी की बीमारी से इतना व्याकुल हो गई थी, फिर अंतरिक्ष तो एक अबोध मासूम बच्चा है जो ठीक से बोल भी नहीं पाता, उसके और आप लोगों के साथ मैंने कितना गलत व्यवहार किया है। इतनी छोटी उम्र में उसने अपने मम्मी पापा दोनों को खो दिया है, उसे बहुत अधिक प्रेम, स्नेह और देखभाल की जरूरत है। मैं आपसे वादा करती हूँ कि जितना प्यार आप लोगों ने मुझे दिया है उतना ही मैं उसे देने की कोशिश करूँगी।”

” लेकिन अपने हिस्से का सारा प्यार मुझे चाहिये, उसमें कमी नहीं होनी चाहिये।”

” मेरा बच्चा ” कहकर सम्पर्क और अभिलाषा ने उसे अपने से लिपटा लिया। अब तीनों फूट फूटकर रो रहे थे।

करोना महामारी ही सही लेकिन पिछले साल करोना ने मुझे एक प्यारा सा बेटा उपहार में दिया था और इस साल करोना ने उपहार में  मेरी खो चुकी बेटी मुझे वापस कर दी है।

बीना अवस्थी, कानपुर.

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