दर्द का रिश्ता – मंगला श्रीवास्तव : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : सुनंदा अभी घर में घुसी ही थी की संपत की गुस्से भरी आवाज ने उसको डरा दिया ।

आज फिर वह ऑफिस से आने में थोड़ा लेट हो गई थी।

करती भी क्या निकलते निकलते भी उसको एक रिपोर्ट बनाने को दे दी उसके बॉस ने ।

आ गई महारानी जी गुलछर्रे उड़ाकर वह उसके पास आकर गुर्रा कर बोला , नौकरी के नाम पर बाहर जाने और मौज करने की आदत  जो है तुम्हें।

यह क्या कह रहे हो तुम शर्म नही आती है तुमको ऐसा घिनौना इल्जाम लगाते हुएं सुनंदा ने पर्स को टेबल पर पटकते हुएं कहा।

मुझको कोई शौक नही है नौकरी करने का अगर तुमने

कुछ किया होता तो खुद सोचो

तुम्हारी बीस हजार की तनखा में घर कैसे चल सकता है और उसमें से भी तुम आधी शराबखोरी करने में उजाड़ देते हो ।

तुमको तो यह तक पता नही है कि चिंटू मिंटू की स्कूल फीस कितनी है और पढ़ाई का खर्च कितना है घर खर्च के साथ ।

कभी एक किताब या कापी भी लेकर आएं हो या घर का राशन भरा है तुमने अगर आज मेरी यह नौकरी नही होती तो घर चलाने के खाने  के भी लाले पड़े होते समझे ।

कहकर वह अपने कमरे में जाने लगी थी परंतु शराब के नशे में संपत जानवर बन चुका था ,सुनंदा की सही बात उसको

मिर्ची समान लगी थी,उसने सुनंदा का हाथ पकड़ कर उमेठा और तड़क से एक चांटा उसके गाल पर जड़ दिया।

अपनी कमाई का बहुत घमंड है तुझको साली सब पता है मुझको देर से क्यों आती हैं घर

“वह तेरा बॉस क्या नाम है उसका ” ? 

रोशन सर बहुत तारीफ करता है तेरी जब मिलता है जरूर तेरा उससे कोई लफड़ा है काम के बहाने से हर वक्त रोकता रहता है ना तुझको , कहकर वह सुनंदा को मारने लगता है ।

मन भर मारने के बाद वह चला जाता है।

सुनंदा अपने कमरे में जाकर पलंग पर गिर पड़ी और रोने लगी थी चोट से उसका बदन का पोर पोर दर्द कर रहा था ।

आज उसको अपने एक गलत निर्णय का खामियाजा भुगतना पड़ रहा था ,वह संपत से शादी करने का अपने परिवार के विरुद्ध जाकर आज वह पछता रही थी,सुंदर थी सुनंदा और बहुत अच्छी जॉब में थी एक से बढ़कर एक रिश्ते उसकेलिए आ रहे थे पर संपत के प्यार में पागल उसने अपने परिवार माता पिता की बात नही मानी उनकी मर्जी के विपरीत संपत से शादी कर ली थी।



पर शादी के एक साल बाद उसकी ऑफिस में उसकी अहमियत और पोस्ट जो उसकी काबिलियत पर ही मिली थी साथ में काम करने वाले पति  संपत को खलने लगा था ।

उसने उनके बॉस रोशन से झगड़ा कर नौकरी छोड़ दी और बहुत कोशिश के बाद उसको एक छोटी सी फर्म में नौकरी तो मिल गई पर बहुत कम सैलरी पर ,धीरे धीरे संपत वह के लेबर क्लास की संगत में आकर शराबी बन गया था।

अब तो यह हालात थे की वह वक्त बेवक्त जब मन करता घर में भी और बाहर से भी शराब पीकर आ जाता था l

उसके दोनो बच्चें भी उससे बहुत डरते थे वह उससे सामने तक नही आते थे जब तक वह ऑफिस से घर नही आ जाती थी ।

अपने बच्चों को घर के इस माहौल से बचाने के लिए उसने दोनो बच्चों को स्कूल के होस्टल में डाल दिया था ।

इस बात से संपत और भी चिड़ गया था,वह यही मानता था कि उसने जानबूझकर बच्चों को होस्टल डाला था ताकि वह मजे कर सके।

सुनंदा संपत को बहुत प्यार करती थी वह सोचती थी की एक दिन संपत सुधर जायेगा  परंतु अब धीरे धीरे उसकी यह आस खत्म होती जा रही थी क्योंकि दिन प्रतिदिन संपत की

शराब पीने की आदत बढ़ती ही जा रही थी और इसके साथ ही उसका वहशिपना भी मारपीट करना और रात को बेदर्दी से नोचना खसोटना उसको अब बलात्कार के समान लगने लगा था l

सोचते सोचते वह भूखी ही सो गई थी ,उसने इतनी हिम्मत भी नहीं थी की वह खाना लेकर खा सके दूसरे दिन सुबह जब वह उठी तो उठ हो नही पा रही थी । संपत कल का जो गया था उसका कोई अता पता ही नहीं था l

घर का दरवाजा भी खुला पड़ा था ,तभी उसकी काम करने वाली सोना आर गई थी ,वह उसको ढूंढते ढूंढते जब कमरे में आई तो देखा सुनंदा के चेहरे पर सूजन देखकर वह समझ गई वह उसके पास पहुंची और उसको छुआ देखा वह बुखार से तप रही थी l सोना और उसका केवल मालकिन और काम करनी वाली बाई का रिश्ता नही था , एक और रिश्ता भी था वह



था दर्द का रिश्ता क्योंकि सोना की स्थिति भी वही थी वह भी अक्सर पति के हाथों पीटकर आती थी।

फर्क बस इतना था सुनंदा संपत जहांअच्छे परिवार से थे वही सोना का पति अनपढ़ गंवार था।

पर आज सोना के पति और

संपत में उसको कोई अंतर नही लगता था ।

सोना उसके यहां जब से ही काम कर रही थी जबसे वह लोग यहां आएं थे तबुस्के बच्चें भी नही हुएं थे ।

तब उसके हालात ऐसे भी नही थे उनकी दुनियां प्यार भरी थीं।

तब सोना को जब भी उसका पति मारता वह उसके घाव पर मलहम पट्टी करती थी और उसको समझती थी की ऐसे पति को छोड़ दे क्यों रहना ऐसे पति के साथ, तु खुद ही कमा कर जब अपना और अपने बच्चों का पेट भरती हैं घर चलाती है ।

आज वह खुद भी इन्ही हालातो से गुजर रही थी ,पर बस अब और नही सहेगी वह यह जुल्म l

उसकी रुलाई फूट पड़ी थी सोना की सहानुभूति पाकर उसने आज मन ही मन एक निर्णय ले लिया था ,वह अब संपत के साथ नही रह सकती है उसने

तुरंत ही सोना का हाथ पकड़ा और कहा सोना मैं और तुम दोनो एक ही नाव पर सवार है।

पहले मैं तुमको समझाती थी आज मुझको तुम्हारे साथ की जरूरत है मैं अब तुम्हारे साहब के साथ नही रह सकती हूँ

मैं घर छोड़ कर जा रही हूँ ।

पर अकेले रहना मुश्किल होगा मेरे लिए क्या तुम मेरे साथ रहोगी जो भी घर लूंगी मैं उसमे तुम्हारा एक हिस्सा होगा क्योंकि हमारा आपस में दर्द का रिश्ता जो बन गया है मेरा तेरा दर्द ak समान है सोना कहकर वह रोने लगी थी l

आज वह एक नए रास्ते की तलाश में जाने वाली थी जहां वह सकून से तो रह सकेगी जहां उसके बच्चें भी साथ रह सकेंगे उसके ll

मंगला श्रीवास्तव इंदौर

स्वरचित मौलिक रचना

1 thought on “दर्द का रिश्ता – मंगला श्रीवास्तव : Moral stories in hindi”

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!