दर्द औरत की बेकद्री का -स्मिता सिंह चौहान

तुम दो दिन से क्या रूआसी सी सूरत लेकर घूम रही हो?खुद को नहीं देखती कि कैसे बात करती हो?अब तो कुछ ज्यादा ही हो रहा है ,हर बात पर कुछ ना कुछ ताने से मारती हो।हमें भी तो चुभती है तुम्हारी बातें?”अनिल ने सुहानी को देखते हुये कहा। “मेरा ना अभी बहस करने का बिल्कुल भी मन नहीं है?” सुहानी ने एक हताशा भरी आवाज में अपनी असमर्थता बतायी। “बहस …बहस..मैं करता हूं या तुम।अरे तुम तो घर में किसी से भी ढ़ंग से बात नहीं करती।बहस…।”कहते हुये अनिल ने एक कुटिल मुस्कान सुहानी को दी।उस मुस्कान को देखते ही सुहानी का मन कुछ व्यथित हो गया,वो कमरे से बाहर को चल दी कि तभी “जरा चखकर देखना इस खाने में नमक कितना तेज है?”सुहानी की सासुमां सामने से प्लेट उसके हाथ में देते हुये बोली। “दूसरा बना देती हूं।”कहते हुये सुहानी किचन की तरफ बड़ी ही थी कि “मां ,अब आदत डाल लो ऐसी हरकतों कि ।

मन की कड़वाहट खाने में तो आयेगी ही ना।उस पर बोलती ऐसी है मेरे कानों में आवाज चुभती है।”अनिल ने फिर सुहानी पर कटाक्ष किया। “सही बात है,ये बातें बीवी कोटा बनाकर अलग से रखते हो क्या ?जब तुम और तुम्हारे घरवाले मुझे कुछ भी कह देते हों तब क्या फूल झड़ते हैं?तब भी तो सुनाई देता होगा,तब तो कोई कुछ नहीं कहता।”सुहानी ने अनिल की बात का प्रतिकार किया। “इतनी कड़वाहट ,कहां से आयी है तुम्हारे मन में,तुम पहले तो ऐसी नहीं थी।”अनिल ने सुहानी की तरफ देखते हुये कहा। “ये कड़वाहट नहीं मेरे टूटने की आवाज हैं,जो अब तुम्हें चुभती है।तुम दो दिन पहले मुझ पर अहसान जता रहे थे ना कि शुक्र करो दो बेटियों के बावजूद मां ने मेरी दूसरी शादी नहीं कि।तो कर लेते ,तब भी तुम्हें लड़कियां ही होतीं।सारा दोष मेरे सिर पर मढ़कर तुमने मेरी बेटियों को भी कोसा है हमेशा।

ये दो बेटियां तो वो हैं जो लड़के के अनुमान वाले झांसे में पैदा हो गयी।बाकि जो 3 बच्चियां मेरे पेट में ही मार दी गयी उनका क्या?वो भी तो गिनों कितना बड़ा अहसान किया तुमने मेरे शरीर और आत्मा पर उन्हें गिराकर।मुझे तो यह समझ नहीं आता कि एक औरत से जन्म लेने के बाद ,दूसरी औरत को अपने वंश को आगे बढ़ाने के लिये लाने वाला आदमी कैसे एक लड़की की पैदाइश पर सवाल कर सकता है?तुम अपने परिवार के साथ जो मुझे उलाहना देते रहते हो ,तो तुम्हारी भी तो तीन बहनें हैं क्योंकि उनके बाद तुम पैदा हो गये तो क्या इस बात से मम्मीजी महान हो गयी।लेकिन सबसे ज्यादा तो इस बात से ताज्जुब होता है कि मांजी भी मेरा दर्द समझने के बजाय मुझे ही उलाहना देती रहती हैं,जबकि उन्होंने तो शायद उस जमाने में मुझसे ज्यादा सहन किया होगा।”कहते हुये सुहानी जैसे दरक कर बिखर रही थी। “मैने तो फिर भी एक लड़का जना है,तू तो वो भी ना कर पायी ।




ऊपर से ऑपरेशन करवा लायी ,हम तो अपने वंश को आगे बढ़ने का सोच भी ना सकते।”सुहानी की सास ने वही ठेठ रवैया अपनाया। “अच्छा हुआ मुझे लड़का नहीं हुआ,क्योंकि इस घर की परम्परा वो भी निभाता ,एक औरत की बेकद्री करता। उसे अपनी आकांक्षाओं की बेदी पर तोड़ता रहता,सिर्फ इसलिये क्योंकि वो एक औरत है।जब एक औरत ही दूसरी औरत के शारिरिक मानसिक कष्ट को नहीं समझ सकती तो फिर आदमियों को क्या दोष देना?”कहते हुये सुहानी अपने कमरे की तरफ चलते हुये मुड़ी”मेरा चुभना दिखता है आपको टूटना नहीं दिखा कभी।अब क्या करें?टूटे हैं बहुत तो चुभेंगे भी।बर्दाश्त करना सीखो जैसे हम करते हैं।”सुहानी की बातों से ज्यादा आज उसकी बातों का मर्म चुभ रहा था अनिल को।लेकिन शायद देर हो चुकी थी। दोस्तों,आज भी हमारे समाज में कुछ तस्वीरें ऐसी ही दिखाई पढ़ती है।अक्सर सारे जमाने से अकेले लड़ने की क्षमता रखने वाली औरत अपनों के सामने बेबस नजर आती है।सुहानी जैसी कुढ़न को ना जाने कितनी महिलायें रोज सहन करती है ,इसलिये नहीं कि उसका पति उसे सनझ नहीं पाता बल्कि इसलिये क्योंकि एक औरत को उससे सम्बन्धित दूसरी औरत ही समझ नहीं पाती।आपका इस बारे में क्या विचार है?अवश्य बतायें। आपकी दोस्त , स्मिता सिंह चौहान। 2:बुढापे में भी भेदभाव का दर्द छुपा है। “तू कुछ कहता क्यों नहीं?बहुत दिन हो गये अब तो,इतने दिन कौन रहता है?अपनी बेटी के ससुराल में।हमारे गले में तो लड़की के घर का पानी भी नही जाता,समधन जी तो ऐसे बैठी है जैसे अब जायेंगी नहीं।”वीना जी ने अपने बेटे सुशील से बोली। “कैसी बात करती हो मां?

अब उनकी तबियत नहीं ठीक है तो वो क्या करें?निशि (पत्नी)के पापा हैं नही।भाई होता वो करता लेकिन वो कनाडा मे जाॅब करता है ,अब ऐसे हालात में अकेला तो नही छोड़ सकते ना।ठीक है ना जैसी आप वैसी वो हैं मेरे लिये।”सुशील ने तार्किक तौर पर अपनी बात रखी। “अब 2 महीने से यही है ,खर्चा पानी तो देता होगा बहु का भाई या वो भी धर्म खाते में जा रहा है।”कहते हुये अपनी राम नाम की माला घुमाने लगीं। “मम्मी जी को भेजता तो है,वो अपना खर्चा खुद ही कर रही हैं ,हां दवा पानी का मैं नहीं लेता उनसे।मैं भी तो उनका बेटा हूं जैसे निशी आपकी।”सुशील अखबार पढते हुये बोला,तभी निशी नाश्ते की प्लेट उठाकर जा ही रही थी,तभी वीना जी बोल पड़ीं “निशी,समधन जी सुबह कह रही थीं कि उन्हें अपने घर की बहुत याद आती है।बेटा देखो अपना घर अपना ही होता है,




मेरी मानो पूछ लो एक बार सुशील टिकट करा देगा।” “हां वो तो रोज ही कहती हैं कि घर की याद आ रही है,लेकिन मैं चाहती हूं अभी अभी सर्जरी से ऊबरी हैं ,कमजोरी बहुत है उन्हें, थोड़े दिन बाद चली जायेंगी।वहां तो कोई भी नहीं जो उनकी देखभाल कर दे।”निशी ने सहजता से अपनी मां की स्थिति से अवगत कराते हुये कहा। “अब तो काफी सुधार है ,क्या है ना।अपने घर में थोड़ा ही सही काम करती रहेंगी तो जल्दी एक्टिव हो जायेंगी।”वीना जी गोल मोल बात करके अपनी मन की बात का इशारा देती हैं। निशी भी उनकी बात का आशय समझते हुये सुशील की तरफ देखती है।सुशील निशी की बेबसी को उसकी आंखों से महसूस करते हुये बोल पड़ता है “सही है मां ,बड़े पते की बात कही है,आप भी जब पापा के साथ गांव में रहती हो कितनी एक्टिव रहती हो,और यहां लाइट का स्विच ऑफ करने के लिये निशी चाहिये।” “बताओ जब अपने ही बेटे को मां का बैठना खल रहा हो तो किसी से क्या शिकायत?बुढापे से बड़ी बीमारी नहीं है, तुम भी यहीं से गुजरोगे।गांव में तो मजबूरी हो जाती है ,वरना बुढापे में दो रोटी बैठकर मिल जाये ये तो सभी चाहते हैं।”वीना जी सुशील की तरफ देखकर बोलीं।

“माफ करना मां ,मेरा आपका दिल दुखाने का कोई इरादा नही था ,लेकिन आपको अपनी बात से ही आपका जवाब मिल गया।सोचो बुढापा,बीमारी,ये तो सबका ही एक जैसा है ना।अब ऐसे में औलाद से ही उम्मीदे रखते हैं ,मैं तो कुछ भी नहीं करता आपका सब निशी करती है तो ऐसे मै अगर मम्मी जी की सेवा कर रही है तो गलत क्या है? वो भी तो उनकी बेटी है ,ये घर भी तो निशी का है ना अगर मेरे मां बाप साथ रह सकते हैं तो उसके क्यो नहीं? इस विषय पर इतना भेदभाव नहीं होना चाहिये ना।” सुशील नेअपनी मां को समझाते हुये कहा। वीनाजी ने सुशील की बात सुनकर खामोशी का आवरण पहन लिया ,वो सुशील की बात समझ पायी या नहीं इसका अनुमान तो मुश्किल था।हां निशी को सुशील की सोच पर गर्व महसूस कर रही थी कि उसे एक ऐसा जीवनसाथी मिला जो समाज की उन पर्यायों से अलग सोच रखता है जहां एक लड़के और लड़की के मां बाप का बुढापा भी अलग अलग होता है। आपकी दोस्त

स्मिता सिंह चौहान
# दर्द

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