चतुर ननद – सुषमा यादव

,, मेरी कोई सगी ननद नहीं थी,,

ससुराल में  मेरी सासु मां ने कहा कि,, ये मेरी सौतेली बहन की बेटी है,, ये ही तुम्हारी बड़ी ननद है, और ये इसकी बच्ची गायत्री है,,

इनका तुम्हें विशेष ध्यान रखना होगा,,, मैंने घूंघट की आड़ से देखा,, दीदी को और उस सात, आठ साल की बच्ची को,, मैंने चरण स्पर्श किया, बच्ची को प्यार किया,,, मैं नौकरी करती थी, तो जल्दी ही वापस लौट आई,,

,,, इसके बाद मैंने देखा कि जब जब मैं ‌छुट्टियों में ससुराल आती,तब,तब, मेरी सास मेरी मौसेरी ननद को बुला लेती,,

मेरे कमरे में वो बच्ची गायत्री आती, और कभी मेरी चूड़ियों का डिब्बा उठा कर अपनी मां यानि मेरी ननद को दे देती और कभी मेरे बक्से से बढ़िया साड़ी निकाल कर,दे देती,, और मेरी ननद मेरी सास से कहती,,, मौसी, भाभी कितनी अच्छी है,देखो, मेरे लिए क्या, क्या लाती है,, मैं खून का घूंट पीकर रह जाती,,शायद दीदी ने अपनी बेटी को सिखा रखा था,, जब वो आती, साड़ी,पायल, यहां तक कि मेरा प्रिय रेडियो भी ले गई,, मैंने इनसे कहा तो बोले,, मेरी प्यारी बड़ी बहन है,, वो जो मांगे खुशी खुशी दे देना,, तुम तो कमा रही हो, खरीद लेना,,



जबकि मैं हमेशा दीदी और गायत्री के लिए कपड़े लेकर आती थी,,,,उस समय ज़बाब देना बद्जुबानी माना जाता था,, इसलिए विरोध नहीं कर सकी, बस हर बार अपनी प्रिय चीजों को

लुटता देखती,, और आंसू पीकर रह जाती,, उन्होंने कभी मेरे हाथ में कोई चीज नहीं रखी,, जबकि मैं छोटी थी,,,

,,,,,,,, कुछ साल बाद वो आईं, और रोने लगी,,, मौसी , परिवार में बंटवारा हो गया है,, मुझे कुछ नहीं दिया,, मेरे पास खाने, बनाने

के बर्तन तक नहीं हैं,,,अब तो हद हो गई,, मेरी सास ने मेरे दहेज़ में

आये हुए सारे बर्तन उन्हें दे दिया,

साथ में एक भैंस , एक नई सायकिल और सभी तरह के अनाज दिया,,,सास को तो बोलने की हिम्मत नहीं थी, इनसे मैंने कहा कि,, आपके मामा ने आपकी मौसी को अपनी आधी जायदाद दे कर अपने ही गांव में बसा लिया है,,उनकी आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी है, फिर दीदी अपने मां, और मामा से क्यों नहीं मदद मांगती हैं,,आप तो अभी नौकरी भी नहीं करते,,, इन्होंने आंखें तरेर कर मुझे देखा और चले गए,,,



वो अक्सर मेरे खिलाफ मेरी सास को भड़काया करती,, और सास मुझे ताने मारती,, दरअसल दीदी अपने ही ननद से इनकी शादी ‌करवाना चाहतीं थीं, और ‌मेरी सास की भी इसमें रजामंदी थी, पर मेरी शादी इनके साथ हो गई,,

ऐसे ही जिंदगी चल रही थी,,, उनके बेटे, बेटी की शादी हुई, बहुत कुछ दिया गया,, मेरी भी दो

बेटियां हो गई,पर दीदी ने कभी उनके हाथ में एक रुपया भी नही रखा,,,, बेटियां तो अपने बुआ को पहचानती तक नहीं,,बस छोटी थीं तभी उन्हें मिली थीं,, फिर बोर्डिंग स्कूल चलीं गईं,,,, कुछ सालों बाद मेरी सासु मां का निधन हो गया,,,,,

ख़बर पाते ही पूरे परिवार सहित दीदी जो पहले दिन आई तो पूरे पन्द्रह दिन के बाद गईं,,उन पन्द्रह दिनों में उन्होंने अपने परिवार की खूब खातिरदारी मुझसे करवाई, जाते,जाते इनसे बोली,, भैया,खेत में बोने के लिए बीज नहीं है,



प्रमाणित बीज सबके मिल जाते तो बढ़िया फसल हो जाती,, भैया जी तुरंत बाजार गये और  वो मंहगे बीज लाकर बहना को दिये,,ना जाने इनको कौन सी पट्टी पढ़ाती रहती कि सीधे मुंह मुझसे बात भी नहीं करते थे,,,

सास के जाने के बाद मेरे श्वसुर मेरे साथ ही रहने लगे थे,,मेरा गांव जाना बहुत ही कम हो गया था,पर ये हमेशा कुछ न कुछ बहाना बना कर उनके गांव जाते थे, खूब खर्च कर के आते,, इनके पास से  दीदी के छुपाए हुए पत्र मिलते, जिसमें वो तरह तरह की मांग करती,, मुझे इसमें

कोई आपत्ति नही थी,,पर हमारे बच्चों के बोर्डिंग स्कूल में पढ़ने के कारण हमारी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी,, जबकि उनके बेटे अच्छी पोस्ट पर थे,,

दुर्भाग्यवश मेरे पति का भी अचानक देहावसान हो गया,,

मुझे गांव में ही जाकर सारे रीति रिवाज निबटाना था,,सारे रिश्तेदार और दीदी भी अपने परिवार के साथ पहले दिन से ही आकर तेरहवीं के बाद जाने की तैयारी करने लगे,,इस बीच इन लोगों ने पूरी तरह से असहयोग की भावना मेरे साथ निभाई,, गांव वालों ने मेरा साथ दिया,,

जाते समय मैंने दीदी से रोते हुए कहा कि, मैं अब बिल्कुल अकेले हो गई हूं,,आप का ही सहारा है,दो,दो, बेटियां शादी के लायक हैं,,मेरा ख्याल रखियेगा,,आते,जाते रहियेगा,,,

दीदी ने कहा,,,, देखो, भाभी,,

मौसी चली गई, भैया भी चले गए,, अब मेरा यहां कोई नहीं है,,

जिसके लिए हम आयेंगे,,आप से

हमारा अब कोई नाता नहीं है,, सबकी प्यारी,चहेती, दिलों पर राज करने वाली , मेरी प्यारी ‌चीजों पर हाथ साफ करने वाली अपनी ननद रानी की कर्कश आवाज सुन



कर पहले तो मैं अवाक रह गई,, फिर मैंने गुस्से में आकर कहा,,, हां, दीदी,, अब क्यों कोई रिश्ता रखेंगी,,अब तो जिनको आप दोनों हाथों से लूटती रहीं हैं,वो तो चले गए,,अब आप क्यों आयेंगी,

पर मेरा भी आपके सिवाय कोई नहीं है,,आप आयेंगी, तो मैं अपने हैसियत के मुताबिक आपका पूरा

मान सम्मान करूंगी,, मेरी तो आप ही एक मात्र ननद रानी हैं, तो बुआ के नाते आपकी भी जिम्मेदारी बनती है,,

पर ननद रानी बड़ी सयानी निकलीं,,,आज सालों बीत गए, मेरी बेटी की शादी भी हो गई,,पर

उस दिन के बाद से उन्होंने मेरे घर

पर पैर नहीं रखा,,,ना कभी मुझे अपने घर किसी कार्यक्रम में बुलाया,

लेकिन उनके मायके से मेरा अभी भी मधुर संबंध है,,,

आज़ इस विषय पर कहानी लिखने के माध्यम से

मेरी सयानी , चतुर ननद रानी की याद दिला दी,,

फिर याद आई वो बरसों पुरानी कहानी,,,

,,,,,,,,ननद _ रानी ,_ बड़ी _ सयानी,,,,,,,,

सुषमा यादव,, प्रतापगढ़,,,उ. प्र.

स्वरचित मौलिक,,,

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