चोर – देवेन्द्र कुमार

“राजन, जरा चावलों की थाली खिसका दो|” माँ ने राजन को पुकारा। राजन की मम्मी ने चावलों को हवा लगाने के लिए थाली में भरकर बाल्कनी में रख दिया था।

राजन ने थाल खिसका दी। उसके पहुँचते ही थाली पर चूँ-चूँ करती चिड़ियाँ उड़ गईं। वे दो थीं। चावलों पर कुछ तिनके और नीला पंख पड़े थे तथा कुछ चावल थाली से बाहर जमीन पर गिरे हुए थे।

“माँ, जरा देखो तो…” राजन ने पुकारा, “चिड़ियाँ आकर चावलों पर बैठ रही हैं। उन्हें गंदा कर रही हैं।”

राजन की मम्मी अलका बाल्कनी में आ गईं।

“माँ, यह नीला पंख और तिनके देख रही हो। इस तरह तो चिड़ियां सारे चावल बिखेर देंगी। चिड़िया चावल चुराकर ले जा रही है।”

सुनकर अलका हँस पड़ी। राजन उनका इकलौता बेटा है। अलका ने स्नेह से राजन के बाल सहला दिए। बोली, “चिड़िया अपने बच्चों के लिए दाना ले जा रही है। उसे ले जाने दो।”

“पर यह तो चोरी है। क्या चिड़िया ने हमसे चावल ले जाने के लिए पूछा है?” राजन बोला।

“चिड़िया चोर नहीं है। परिंदे इसी तरह अपने परिवार के लिए दाना इकठ्ठा करते हैं। यहाँ से, वहाँ से, कहीं से भी यानी जहाँ से मिल जाए।”

“लेकिन माँ, तुम तो हमारे लिए इस तरह भोजन औरों के घर से लेकर नहीं आतीं। इस तरह दाना ले जाने वाली चिड़िया को चोर कहना चाहिए।”

“बेटा, पशु-पक्षी हम मनुष्यों से अलग हैं। जानते हो, परिंदे दाने की खोज में अपने घोंसलों से कितनी दूर-दूर तक जाते हैं। सुबह दाने की खोज में निकलना और शाम को घोंसलों में दाने लेकर वापस जाना– यही दिनचर्या होती है उनकी।”

“अपने घर क्यों जाती है चिड़िया?”

1

“इसलिए कि घोंसलों में चिड़िया या दूसरे परिंदों के छोटे बच्चे प्रतीक्षा करते होते हैं कि कब माँ आए और उन्हें दाना खिलाए।”

“जैसे तुम और पापा आफिस जाते हो?” राजन बोला|

“हाँ, तुम ठीक समझे। हम दोनों काम करके पैसे लाते हैं, उसी से घर चलता है।”

“तो जैसे इतवार को पापा और तुम्हारी छुट्टी होती है, क्या चिड़िया की भी छुट्टी होती है?”


“हाँ, अगर घोंसलों में खाने के लिए दाने जमा रहें और मौसम खराब हो तो चिड़िया दाने की खोज में नहीं भी जाती।” अलका ने कहा और अंदर चली गई, पर राजन बाल्कनी में खड़ा रहा।

अलका ने पुकारा, “राजन, अंदर आ जाओ। जब तक तुम वहाँ खड़े रहोगे तब तक चिड़िया नहीं लौटेगी। उसे दाना ले जाने दो।”

राजन बाल्कनी से अंदर आ गया और परदे के पीछे छिपकर खड़ा हो गया। उसके हटते ही दो चिड़ियाँ चावल की थाली पर मँडराने लगीं। कुछ पल थाली पर बैठकर चोंच चलातीं फिर उड़ जातीं। पर थोड़ी देर बाद फिर लौट आतीं। हवा में उनके पंखों की फड़फड़ और चूँ-चिर्र गूँज रही थी।

राजन खड़ा-खड़ा देखता रहा। अलका भी उसे ध्यान से देख रही थी।

अगली सुबह राजन देर से सोकर उठा क्योंकि इतवार की छुट्टी थी। न उसे स्कूल जाना था, न मम्मी-पापा को ऑफिस।

कुछ देर बाद वह बाल्कनी में चला गया। आज वहाँ सन्नाटा था। अलका ने चावलों की थाली वहाँ नहीं रखी थी इसलिए चिड़ियाँ भी वहाँ नहीं आ रही थीं।

“मम्मी, आज आप एक बात भूल गईं।” राजन ने बाल्कनी में खड़े-खड़े पुकार कर कहा।

“नहीं मैं भूली नहीं हूँ। मुझे सब याद है।” अलका ने दूसरे कमरे से जवाब दिया।

“आपने बिना देखे कैसे जान लिया कि मैं क्या कह रहा हूँ।” राजन ने आश्चर्य से पूछा।

“मैं तो कल ही जान गई थी कि सुबह तुम क्या पूछोगे।” अलका ने जवाब दिया और कमरे से निकलकर राजन के पास खड़ी हो गई। उसने कहा, “तुम यही जानना चाहते हो न कि मैंने आज चावल हवा लगाने के लिए क्यों नहीं रखे?”

2

“मम्मी, आप तो जैसे जादूगरनी बन गई हैं, जो मेरे बिना कहे ही मेरे मन की बात समझ गईं।” कहकर राजन मुस्करा उठा, “हाँ मैं यही बात जानना चाहता था।”

“चावलों की थाली अब यहाँ नहीं रखी जाएगी।” अलका ने गंभीर स्वर में कहा, “और इसीलिए चावलों पर मँडराने वाली चिड़ियाँ भी नहीं आएँगी।”

“लेकिन क्यों?” राजन ने पूछा, “मुझे चिड़िया का यों पंख फड़फड़ाना और अपने बच्चों के लिए चावल के दाने ले जाना पसंद है।”

“कल तुम चावल की थाली पर मँडराने वाली चिड़ियों को चोर कह रहे थे, लेकिन आज तुम्हारा मन क्यों बदल गया, मुझे यह भी पता है।”

“मम्मी।”

“हाँ, राजन, मुझे पसंद नहीं कि दाने की खोज में आने वाली चिड़ियों पर तुम गुलेल से वार करो। उन्हें घायल कर दो, या वे मर जाएँ।”

राजन चुप खड़ा रहा, इस बार उसने कुछ नहीं कहा। सच उसकी जेब में गुलेल थी। पर वह यही सोचकर हैरान था कि माँ ने यह सब कैसे जान लिया।

अलका ने कहा, “मैंने कल शाम को तुम्हें बाजार से गुलेल लाते हुए देखा था। और मैं तभी समझ गई थी कि तुम उसे चावल की थाली पर मँडराने वाली चिड़ियों पर चलाओगे। इसीलिए मैंने चावल बाल्कनी में नहीं रखे, क्योंकि मैं नहीं चाहती कि दाने की खोज में निकली चिड़ियाँ शाम को अपने घर न पहुँच सकें। उनके बच्चे उनकी प्रतीक्षा ही करते रह जाएँ।”

“मम्मी।” कहकर राजन माँ से लिपट गया। वह गुलेल इसी इरादे से लाया था, उसने सोचा था कि जब चिड़िया चावल चुगने में लगी होगी तो वह परदे के पीछे से निशाना साधेगा।

अलका धीरे-धीरे उसकी पीठ थपथपा रही थी। उसने कहा, “जरा सोचो, मैं और तुम्हारे पापा भी तो रोज काम पर निकलते हैं। अगर कोई हमारे साथ ऐसा करे जो तुम चिड़िया के साथ…”

“नहीं, नहीं, कभी नहीं।” राजन ने बीच में ही माँ की बात काट दी और फूट-फूट कर रो पड़ा। यह माँ क्या कह रही थीं। अलका उसे चुप कराती हुई अंदर ले गई। वह लेट गया तो अलका उसका माथा थपथपाती रही।

राजन के सो जाने के बाद अलका ने गुलेल उसकी जेब से निकालकर फेंक दी।

अगले इतवार को राजन ने देखा, चावलों की थाली फिर से बाल्कनी में रखी थी और कई चिड़ियाँ वहाँ मँडरा रही थीं। वह मुड़ा, अलका पीछे खड़ी मुसकरा रही थी। राजन भी हँस पड़ा।( समाप्त)

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