• infobetiyan@gmail.com
  • +91 8130721728

चेहरे पर चेहरा – प्रीति सक्सेना

   ओ लाली, इधर आ, चॉकलेट खाएगी, अरे ले न…..आ तो इधर , भागती कहां है, अरे आ तो 

भागती क्यों है ? ठेकेदार अपने पान खाए गंदे दांत से हंसता हुआ  उसे डरा देता, लाली के डरने से जोर जोर से हंसता और घूरता चला जाता।

लाली जब भी उसे देखती, अंदर ही अंदर सहम जाती, पता नहीं क्या था उसकी घिनौनी शक्ल पर जो.. उसे देखने से ही घिन लगती थी ।

मां और भाई उसे भला आदमी कहते थे ,पर लाली उससे दूर भागती थी, नफरत करती थी।

  गरीबों के लिए कितना मुश्किल है अपनी मां बहन बेटियों की इज्जत को सुरक्षित रखना, हर पल एक अनहोनी के डर से वो चैन से रह भी नहीं पाते। एक दूसरे के भरोसे के सहारे ही रह पाते हैं।

नव निर्माणाधीन इमारत का काम जोरों शोरों से चल रहा था, कुछ ही दूरी पर सभी मजदूरों ने अपनी अपनी झुग्गियां बना रखी थीं। दो बेटे और मां वहां मजदूरी करने जाते और बारह साल की बेटी को झुग्गी में छोड़ जाते….. जाते जाते ताकीद कर जाते, दरवाज़ा खोलना नहीं… दरवाज़े के नाम पर सूखी लकड़ियां को सुतली से बांधकर रखा हुआ एक गठ्ठा जिसे खड़ाकर टिका दिया हो, चार डंडों को चारों तरफ ठोककर प्लास्टिक से ढका हुआ घर…. गरीब की अस्मत छुपाए हुए था।

     वहीं कोने में नहाना, एक कोने में चार ईंट जोड़कर बनाए गए चूल्हे पर भोजन पकाना, यही सुविधा थी उस परिवार की । इससे आगे का वो लोग सोच भी नहीं सकते थे, बस पेट भर जाए यहीं तक उनकी हद थी।

    इमारत के मालिक जब भी लंबी सी गाड़ी में आते, लाली दूर खड़ी उन्हें देखती रहती, कितने अच्छे दिखते हैं साहब….बिल्कुल हीरो के जैसे, उनके कपड़ों में लगी खुशबू की महक इतनी दूर तक आती है  , कितनी बड़ी गाड़ी है , कितनी सुन्दर, कभी मेरे को घूमने को मिल जाए तो मैं तो गाड़ी से उतरूंगी ही नहीं, यही सोच खुश होती रहती लाली।

साहब उसे एकटक अपनी ओर देखते हुऐ मुस्कुरा देते…. और  कभी कभी सभी बच्चों को चिप्स और टॉफी के लिए पैसे भी दे देते ।




    रोज़ की तरह द्रुत गति से बिल्डिंग में काम हो रहा था, अचानक जोर जोर से रोने चिल्लाने की आवाजें आने लगीं, सारे मजदूर अपनी झुग्गियों की तरफ़ भागे, किसी अनहोनी की आशंका में लाली के दोनों भाई घबराकर जैसे ही अपनी झुग्गी की तरफ भागे देखा तो ठेकेदार और मालिक गुत्थम गुत्था थे, उन्हें लाली की बात याद आई, भैया, ये ठेकेदार बुरा लगे है मेरे को…… क्रोध में आंखों में खून उतर आया भाइयों की आंखों में …. पास पड़ा पत्थर उठाकर जैसे ही ठेकेदार की तरफ़ भागे….. लाली की आवाज आई, भैया ये नहीं वो…….. उसकी ऊंगली की दिशा की तरफ़ देखा तो हतप्रभ रह गए… वहां बिल्डिंग का मालिक था जो नज़रें नीची करके खड़ा था, और ठेकेदार उसका कॉलर पकड़कर उसे पीट रहा था…… मतलब , जो गलत दिखता था… उसी ने इज्जत बचाई  , और सफेदपोश

के रुप में मालिक एक भेड़िया था, जो मासूम बच्ची के साथ हैवानियत को अंजाम दे रहा था।

  बहुत खतरनाक होते हैं ऐसे लोग जो दोहरे, चेहरे और चरित्र वाले होते हैं।

    जरूरी नहीं खूबसूरत और आकर्षक चेहरे वाले बेदाग होते हैं

उनके” चेहरे पर चेहरे”होते हैं, बाहरी रुप, सभ्य सुसंस्कृत और अंदर का चेहरा, वीभत्स,घिनावना और कुरूप। देखने वाले धोखा खा जाते हैं पर जरूरी नहीं जो हमें दिखता है वही सही हो

#दोहरे_चेहरे 

अप्रकाशित 

प्रीति सक्सेना

इंदौर

कॉपी राइट सर्वाधिकार सुरक्षित

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!