चरण – अनुज सारस्वत

“विदुषी डोंट टच हिम ही इज डर्टी स्माल पीपुल “

कस्बे में अपनी माँ के यहाँ आयी ज्योति ने अपनी 8 साल की बेटी से कहा। क्योन्कि वह एक सफाई वाले से बात कर रही थी।

विदुषी बोली

“पर मम्मा हिज स्माइल इज सो क्यूट।एंड व्हाट इज द प्रॉब्लम?”

ज्योति झल्लाकर बोली

“डोंट आरगयु विद मी लेटस गो”

और ऐसा कहकर अपनी माँ के यहाँ पहुंची। शाम हो गयी थी। माँ बहुत खुश हुई अपनी बेटी और नवासी को देखते हुए कलेजे से लगा लिया दोनों को।

अपनी बेटी की फेवरेट दाल मखनी और नवासी की फेवरेट आलू गोभी की सब्जी बनाई थी पुदीने के रायते के साथ। खाना खाकर दोनों तृप्त हो गये। सोने के लिए विदुषी की नानी ने कहाँ

“चलो छत पर दोनों चौंक गयी और ज्योति बोली क्या माँ कितने मच्छर होंगे गर्मी होगी मुझे बिना ऐ.सी. के नींद नही आती”

माँ बोली

“तुम लोग चलो तो”

ऊपर जाकर देखा तो माँ ने मच्छर दानी लगा रखी घर के पीछे बाग था। खटिया पड़ी थी पास में मटका भरा था उसके ऊपर सकोरा(मटके का ढक्कन)था गिलास के साथ वो लोग लेटे पेड़,पौधों से छ्न कर शीतल हवा बहने लगी।ज्योति ने चादर ओढ़ ली। फिर माँ बोली

“क्यों बेटा कैसा लगा भगवान का ए.सी.”

“हां हां ठीक है “

ज्योति मुँह बनाकर बोली।इधर विदुषी को तो मानो राजपाट मिल गया हो बहुत खुश थी। खटिया पर लेटते ही पहली बार रात का खुला आसमान देखा था। पूरा काला छाता उस पर अनगिनत टिमटिमाते हुए तारे।कभी कोई हवाई जहाज जिता लाईट जलाता हुआ तो वो बहुत खुश होती। और अपनी नानी से बोली।

“नानी सो मच थैंक्यू हमारे स्कूल में तो ऐसे  ऑडिटोरियम में दिखाते थे।यहाँ तो रोज ही दिखते”

नानी बोली बेटा यह भगवान का ऑडिटोरियम है। इतना अथाह है कि वैज्ञानिक भी मात्र 4% ही पृथ्वी, ब्रम्हांड ही जान पाये हैं। बस एक ही को 100% पता है वो है भगवान जिसने यह सब रचा है।और कोई घमंड भी नही उसे।



फिर विदुषी ने रास्ते में जो सफाई वाला मिला था उसके बारे में नानी को बताया और मम्मी ने डांटा यह भी बताया।

“नानी मुस्कुराई और बोली चल तुझे कहानी सुनाती हूँ”

“ये ये कहानी वाह मजा आयेगा”

नानी ने कहानी शुरू की

“बेटा रामजी को जब वनवास हुआ था तो वह सीता माता और भाई लक्ष्मण के साथ सरयू  नदी के किनारे पहुंचे। क्योंकि नदी को पार करके वन में जाना था।नदी अपने पूरे वेग से बह रही थी। तभी दूर से एक नाव दिखाई दी उसमें दो लोग थे। फिर लक्ष्मण जी ने आवाज लगाई

“ओ बंधु अरे ओ बंधु कृप्या शीघ्र किनारे आइये हम सब को उस पार जाना है”

नाव किनारे आगई। नाविक शरीर पर कंठ माला सर पर कबूतर के पंखो से बनी पगड़ी और एक चादर से लपेटे था साथ में उसका बेटा था।

फिर प्रभू श्री राम जी आये और उससे हाथ जोड़कर बोले

“हे नाविक भ्राता क्या हमें उस पार ले चलोगे “

नाविक की आँखो से झर झर आँसू बह निकले राम जी ने उसके आँसू पोंछे और रोने का कारण पूछा।नाविक बोला

“प्रभू मैं केवट हूँ आपके राज्य का ही निवासी हूँ मै सब जानता हूँ आपके वनवास के बारे में। मुझे आजतक किसी ने इतने प्रेम से बात नही की।जैसे आपने की है लोग सीधे ही बोल देते ऐ चल उस पार और आप मुझ छोटे जात के आदमी से विनती कर रहे हैं। प्रभू ……”

यह सब सुनकर लक्ष्मण जी मन ही मन बोले “भैया भी सबको सर पर चढ़ा लेते”

राम जी लक्ष्मण जी की तरफ देखकर मुसकुराये। फिर राम जी बोले।

“भैया जिस परमात्मा ने तुम्हें श्वांस दी है उसी ने मुझे श्वांस दी है। तो कौन छोटा कौन बड़ा। और सब एक दूसरे के पूरक हैं। आपके बिना हम अधूरे हैं। “

प्रभू के ऐसे वचन सुनकर केवट गदगद हो गया। उधर लक्ष्मण जी भी देखते रहे।

फिर केवट ने मन में सोचा

“सब को भवसागर से अपनी नैया में बैठाकर पार लगाने वाले मेरी नैया में आये हैं मैं बड़भागी”

फिर राम जी से बोला।

“प्रभू एक विनती है मैं पहले आपके चरण धुलाउंगा तबही नाव मैं बैठाऊंगा। “

फिर लक्ष्मण जी बोले।

“हमारे गंदे हैं क्या चरण चुपचाप ले चलो”

फिर केवट बोला

“ना प्रभू गंदे मैं केवल राम जी के चरण धोऊंगा क्योंकि इन्ही चरणो ने पत्थर की अहिल्या तारी थी। कहीं मेरी नाव भी नारी ना बन जाये तो मैं रोजी रोटी कैसे कमाऊंगा”

राम जी मन मन मुस्कराने लगे उस केवट भक्त की लीला देखकर। उसका आग्रह स्वीकार कर लिया। फिर राम जी बोले

“कैसे धुलाओगे एक एक पैर उठाकर मेरा संतुलन बिगड़ जायेगा। “

फिर केवट बोला आप तनिक भी चिंता ना करिये आप मेरा सहारा ले लीजिये जब एक पैर धोएं हम।”



केवट पैर धुलाने लगा राम जी ने संतुलन बनाने के लिए उससे पूछा तो केवट बोला

“प्रभू मेरे शीश पर हाथ रखकर संतुलन बना लीजिए “

राम जी लीला समझ गये थे और मुस्कराने लगे थे। आज केवट के भाग्य खुल गये थे जो पूरी दुनिया को सहारा देता आज वो भक्त के सहारे खड़ा। वो भी शीश पर हाथ रखा केवट का पूरा शरीर रोम रोम खिल गया प्रभू के स्पर्श से। मन नाम की कोई चीज नही रही।सीधे आत्मा ,आत्मा से ही बात कर रही।”

इधर विदुषी की नानी कहानी सुनाती हुई रूकी। विदुषी बोली

“नानी क्या हुआ आगे रूक क्यों गई आप?”

इधर नानी उठी और दूसरी करवट लेटे हुए ज्योति को देखा।

ज्योति मुहँ छिपाकर रो रही थी तकिया पूरा गीला हो चुका था। उसको माँ ने सर पर हाथ फेरते हुए पूछा

“क्या हुआ बेटा? क्यों रो रही?”

बस इतना सुनते ही वो लिपट गई अपनी माँ से और बोली

“माँ आप बचपन में भी यही कहानी सुनाती थी पर मैं नही सुनती थी मैरी आदत बहुत गंदी हो चुकी थी सब जो सफाई वाले ,काम वाली बाई रिक्शेवाले, ठेलेवाले सबसे गंदे तरीके से ही बात करती और अपनी बेटी को भी यही सिखा रही। वो तो आपके संस्कार हैं, इसमें जो यह सब नही मानती। मुझे माफ कर दो माँ मैं अपनी भूल सुधारूंगी।,विदुषी आई एम साॅरी बेटा मम्मा गंदी है ना”

विदुषी बोली

“डोंट वरी मम्मा यू आर सो गुड और नानी कहती है जो साॅरी बोलता है वो बहुत गुड होता है”

फिर ज्योति की माँ बोली

“संस्कार कभी व्यर्थ नही जाते,विदुषी साक्षात भगवान स्वरूप है, बच्चे तो होते भगवान है।हम सबके भीतर वही स्थापित है पर अहंकार ,दंभ चतुरता हमें भगवान से दूर ले जाती है। पता है वर्ण व्यवस्था शरीर है।

सिर हमारा ब्राहमण, हाथ क्षत्रिय,पेट वैश्य और चरण शूद्र। और चरण का हमारी संस्कृति में विशेष महत्व है। यह नीचे होते है और सबको नीचे झुकाते है क्योकि चरण छूकर ही आशीर्वाद की प्राप्ति होती है।

भगवान के लिये भी तो चरण कमल का दर्शन बोला जाता है। और बिना चरण के आदमी कैसा लगेगा इसलिए सब बराबर है सब एक हैं। प्रभू ने सबको बुध्दी एक ही दी है  अब प्रयोग करने के ऊपर है कौन कैसे कर रहा उसी अनुरूप फल प्राप्त करता है”

विदुषी सब सुनकर बोली।

“नानी नानी कल राम मंदिर चलेंगे मुझे लव हो गया राम जी से। आई लव यू राम जी और केवट जी आलसो यू आर सो ग्रेट”

अगले दिन जाकर मंदिर में उन सबने भंडारा कराया और उस भंडारे में सारे ठेलेवाले,रिक्शेवाले,फुटपाथ पर सोने वाले,मलिन बस्तियों में रहने वाले,सफाई कर्मियों को आमंत्रित किया ज्योति ने। सब गदगद हो गये उस सम्मान को पाकर। सब को भोज कराकर कपड़े दिये गये।

नानी बहुत प्रसन्न हुई। फिर अचानक तेज हवा सी चलने लगी मंदिर के स्वतः घंटे बजने लगे। क्योंकि आज राम जी भी बहुत प्रसन्न थे।

-अनुज सारस्वत की कलम से

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