जीवन मिश्रा उनकी पत्नी जीविका मिश्रा का आज दोनों का सालगिरह का दिन है घर फूलों से सजा हुआ है दूर-दूर से मेहमान आए हुए हैं आसपास के लोग तो पहले से ही इकट्ठा हो चुके थे
घर में खुशी का माहौल था जीवन मिश्रा और उनकी पत्नी जीविका मिश्रा केक काटने ही वाले थे कि वहां एक पत्रकार पधारे उन्होंने बताया कि आपके प्यार के बहुत चर्चे सुने है आपकी शादी को 55 वर्ष हो चुके हैं किंतु न कोई झगड़ा बस आपस मैं आप दोनों का प्यार ही प्यार
आज का माहौल तो इतना खराब है शादी के बाद ही एक महीने बाद पति-पत्नी के बीच झगड़े होने शुरू हो जाते हैं
हम जीवन मिश्रा जी से पूछना चाहते हैं आपकी शादी कामयाब रही इसके पीछे क्या मुख्य कारण है
जीवन मिश्रा ने बताया जब मैं कुंवारा था और मेरे लिए लड़की देखी जा रही थी और मां ने कई लड़कियों के फोटो दिखाएं मैंने मां से कहा
मैं लड़की से मिलने के लिए उनके घर जाकर बात करूंगा
मैं जब भी लड़कियों के घर जाता तो उनसे कहता मुझे अपनी उस अलमारी के पास ले जाओ जिसमें तुम्हारे कपड़े रखे हुए हैं
वह लड़कियां मुझे अपनी अलमारी के पास ले जाती
अलमारी खुलवाता और पूछता इस अलमारी के सारे कपड़े क्या आपके हैं मुझे तुरंत जवाब मिलता हां हां यह सारे कपड़े मेरे ही तो है
मैं पूछता इनमें से तुम कौन-कौन से कपड़े पहनती हो
मुझे जवाब मिलता जब भी मार्केट में नया डिजाइन आता तो मैं तुरंत कपड़े खरीद लेती हूं अब एक डिजाइन बार-बार तो नही पहना जाता
इसलिए इसे अलमारी में रख देती हूं और फिर नए कपड़े की तलाश में जुट जाती हूं
हर घर से मुझे कुछ ऐसे ही मिलते-जुलते जवाब मिलते
आखिर मुझे एक घर टकराया उस लड़की ने अपना नाम जीविका बताया वह मुझे अपनी अलमारी के पास ले गई उस अलमारी में चार सूट रखे हुए थे
मैंने जीविका से पूछा तुम्हारी अलमारी में केवल चार सूट
तब जीविका ने बताया साप्ताहिक बाजार तो हमेशा लगता है
अनगिनत कपड़े दुकान और मार्केट में लटके मिल जाते हैं
लेकिन अनावश्यक कपड़े खरीद कर घर में जमा करने का क्या फायदा
जिन कपड़ों को हमें इस्तेमाल ही नहीं करना दुनिया या रिश्तेदारों को दिखाने के लिए दो दिन के लिए पहनने के लिए हम खरीद लेते हैं
फिर अलमारी या बेड के अंदर फेंक देते हैं
इससे हमारे विचारों पर बड़ा फर्क पड़ता है
हम रिश्तो को भी इसी नजरिए से देखते हैं रिश्ते तब तक बनाए रखते हैं जब तक रिश्तो से फायदा मिले
जब रिश्तो से फायदा मिलना बंद हो जाए तब हम रिश्ते खुद ही तोड़ देते हैं
मेरे पास यह चार सूट है मां ने दिलाए थे
जब कोई सूट थोड़ा सा भी फट जाता है तब मैं नए सूट खरीदने की कामना नहीं करती हूं उसी पुराने सूट को सुई धागे से मरम्मत करके कुछ और महीने या साल तक चला लेती हूं
जीविका की बातें सुनकर मैं समझ गया अगर मैं इससे शादी करूं
और भविष्य में मैं कभी बीमार पड़ा
जिस तरह उसने अपने फटे सूट की तुरपाई करके फिर से पहन लिया
इस तरह मेरा इलाज करवा कर फिर से यह मेरे साथ हंसी खुशी जीवन बिता लेगी
जीविका की मां ने इसे यह चार सूट पहनने को दिए हैं
यह इन सूटों को बड़ी हिफाजत से रखती है
अगर इसकी मां मुझसे शादी कर दे अपनी बेटी की
तो यह मुझे भी अपने सूटों की तरह बड़ी हिफाजत से रखेगी
मुझमें कोई नुक्स नहीं निकालेगी
क्योंकि दरजी को कैसा भी कपड़ा दे दो वह कपड़े को अपनी फिटिंग का बना ही लेता है और पहन लेता है
इसलिए नारी को कैसा भी पति दे दो एक समझदार नारी टेढे आड़े तिरछे पति की मरम्मत करके उसे हमेशा फिट रखती है
समाप्त
नेकराम मुखर्जी नगर दिल्ली से
मानवीय मूल्यों का इतना घटिया चित्रण नहीं देखा, कपड़ो से रिश्तों की तुलना जो फटे सिल कर पहनते वही रिश्ते निभाना जानते है, ये समझ से परे है कि बीमार होने पर पति को छोड़ देना ऐसा कौन करता है । और लड़का क्या है उसके क्या जीवन मूल्य है या स्त्री से ही उम्मीद । लड़के को किस कसौटी पर कसा जाए