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चांदी का गिलास… – सीमा रस्तोगी 

मयंक आज पहली बार, नौकरी लगने के बाद, अपने घर, अपने परिवार के पास जा रहा है| बहुत खुश है, सबके लिए कुछ ना कुछ जरूर खरीदा और छोटे भाई और बहन के सामान की तो, बड़ी लंबी-चौड़ी लिस्ट थी| पापा के लिए वूलेन सूट का कपड़ा और मम्मी के लिए…..

याद करने लगा, बचपन के वो दिन, पापा की अपनी दुकान थी, खाने-पीने की कोई कमी नहीं, बच्चों की भी पढ़ाई खूब अच्छे से चल रही थी।

मयंक की मम्मी की सहेली, चारू आंटी, उनके घर अक्सर जाना होता, क्योंकि वो मम्मी की बहुत पक्की सहेली थीं, काफी शानो-शौकत वाली, हर तरह की सुख-सुविधा उनके घर पर मौजूद, चारू आंटी हमेशा चांदी के गिलास में ही पानी पीती, मम्मी को वो चांदी का गिलास,बड़ा अच्छा लगता देखकर, गिलास था भी काफी सुंदर नक्काशी दार!!!

एक दिन जब मयंक और उसकी मम्मी, चारू आंटी के घर गए, तो वो कहीं बाहर गईं हुईं थीं,  कामवाली आंटी ने दरवाजा खोला और बोलीं “आप लोग बैठिए, बस बीबी जी अभी बस आती ही होंगीं”

 

और वो अपना काम करने के लिए, अंदर चली गईं, इत्तफाक से चांदी का गिलास वहीं रखा हुआ था और सुमित्रा उठाकर मयंक को दिखाने लगीं “देख मयंक, कितनी सुंदर नक्काशी है, बड़ी मेहनत से बनाया गया होगा ये गिलास”

तभी चारू आंटी वापस आ गईं और उनको पता नहीं क्या हुआ, उन्होंने तुरंत, मीरा आंटी को आवाज दी “तुमसे कितनी बार कहा मीरा, ये गिलास यहां मत छोड़ा करो, मगर तुम सुनती ही नहीं हो”

सुमित्रा ने वो गिलास झट से वापस रख दिया और उनकी आंखों में आंसू आ गए, बोली “मैं तो बस मयंक को इसकी नक्काशी दिखा रही थी, सॉरी चारू, अगर तुम्हें बुरा लगा, तो मैं तुमसे माफी चाहती हूं” ये कहकर सुमित्रा ने मयंक का हाथ पकड़ा और वापस आने के लिए मुड़ी!!

शायद चारू आंटी को अहसास हुआ कि उन्होंने कुछ गलत बोल दिया है और वो बोलीं “तुम बुरा मान गईं सुमित्रा, मैं तो बस मीरा से यही कह रही थी, कि इतना महंगा गिलास है, कहीं इधर उधर हो गया तो, बड़ी मुश्किल हो जाएगी”

 




लेकिन मम्मी तुरंत वहां से वापस आ गईं और दोबारा कभी चारू आंटी के घर नहीं गईं!!!

चारू आंटी ने कई बार फोन करके मम्मी को बुलाया, लेकिन मम्मी के आत्मसम्मान को बहुत ठेस पहुंची थी, मम्मी ने कभी भी पलट कर उधर नहीं देखा!!!

मयंक अचानक बहुत तेज सा झटका लगा और वो जैसे नींद से जागा, और जल्दी से सोने की तैयारी करने लगा, क्योंकि सुबह जल्दी उठकर, घर के लिए जो निकलना है..

और मयंक वापस घर जब पहुंचा, मम्मी ने तो कलेजे से लगा लिया और उसका मुंह चूम डाला, आखिर बेटा छः महीनों के बाद, वापस जो आया था!!

मयंक ने सबको, उनका लाया हुआ सामान दे दिया, छोटे भाई-बहन अपना मन पसंद सामान और पापा ऊलेन सूट पाकर फूले नहीं समा रहे थे।।

“लेकिन तेरी मम्मी के लिए” पापा ने पूछा

“देखते हैं, कुछ यहीं से ले आऊंगा, मम्मी के लिए”

“नहीं, मुझे कुछ भी नहीं चाहिएं, मेरा बेटा इतने दिनों बाद, अपनी मम्मी के पास वापस आया है, यही मेरे लिए बहुत है”

 

रात में सभी लोग जब साथ में खाना खाने बैठे, तो सबके लिए पानी के गिलास तो आ गए, लेकिन मम्मी का गिलास नहीं आया।।

“मयंक बेटा, जरा मेरे लिए भी पानी का गिलास ले आ”

“जी मम्मी, अभी लाया, पहले आप आंखें बंद करिए”

“क्यों बेटा?

” बस ऐसे ही”




और मयंक ने अपनी मम्मी को पानी देते हुए कहा “ये लीजिए, अब आप आंखें खोलिए, आपका पानी का गिलास आ गया”

और जैसे ही मम्मी ने आंखें खोलीं, बहुत ही सुंदर नक्काशी दार चांदी का गिलास!!!

“चांदी का गिलास!!!

“हां मम्मी, आपको चारू आंटी का चांदी का गिलास बहुत अच्छा लगता था ना”

“अरे मेरे बच्चे, तुझे याद रहा, मैं तो कब की भूल गई थी”

“मेरी प्यारी मम्मी, वो बच्चा ही क्या, जो अपने माता-पिता की ख्वाहिशों को भूल जाएं”

“मेरे बच्चे, तुमने इतना महंगा गिलास, अपनी मम्मी के लिए खरीदा, इसमें तो बहुत पैसे लगे होंगें”|

“मम्मी, आपकी खुशियों के आगे, इसकी कोई कीमत नहीं, आप लोगों के त्याग और परिश्रम से ही तो, मैं इस लायक बन पाया हूं”

 

आज सुमित्रा मन ही मन फूली नहीं समा रही थी!!!

आज उसके बेटे ने उसके हाथ में भी चांदी का गिलास जो पकड़ा दिया था!!!

आज पापा भी बहुत ज्यादा खुश थे “कि बेटे ने सबकी भावनाओं का ख्याल रखा!!!!

ये कहानी स्वरचित है

मौलिक है

सखियों इस कहानी के साथ, मेरी बहुत सी भावनाएं जुड़ी हैं, शायद मैं अपनी भावनाएं आप तक पहुंचाने में सफल रही…

आपको मेरी कहानी कैसी लगी, यदि अच्छी लगी हो तो जरूर बताइएगा, और मुझे फॉलो भी कीजिएगा|

#वक्त 

आपकी सखी

सीमा रस्तोगी 

 

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