छल –   किरन केशरे

“आज लड़के वाले रूपल को देखने आने वाले थे”, उसकी पढाई पूरी हो चुकी थी ,पढ़ी लिखी रूपल मध्यम वर्ग की आकर्षक नैन नक्श वाली प्यारी सी लड़की थी । लड़के वाले भी मध्यम वर्ग से थे , ओर लड़का भी स्मार्ट और मल्टीनेशनल में इंजीनियर । “साथ ही शादी के बाद अपनी कंपनी के प्रोजेक्ट पर दो वर्षों के लिए उसे कनाडा जाना था”। रूपल ने अपनी सबसे पक्की सहेली निमिषा को सब बता दिया था की ,

 उसे देखने के लिए लड़के वाले आ रहे है । दोनो बचपन की सहेलियाँ थी  ,साथ साथ ही बड़ी हुई थी और पढ़ी भी थी ,”निमिषा को भी उत्सुकता  थी ,लड़के को देखने की , कि रूपल को कैसा हमसफ़र मिलेगा” । निमिषा भी सुंदर और आकर्षक थी । दोनों सहेलियाँ कम जुड़वां बहने ही ज्यादा लगती थी।

नियत समय पर लड़का उसके माता पिता और बहन आए , उनकी खूब आवभगत की गई । “प्यारी सी रूपल कुणाल  और उसके घरवालों को भा गई थी” । रूपल के परिवार की सरलता से वह प्रभावित हो गए थे। जल्द ही जवाब देने का आश्वासन देकर वो लोग चले गए । “रूपल का परिवार आश्वस्त था , उनके व्यवहार और स्वभाव से की रूपल उन्हें पसन्द आ ही जाएगी” , 

रमा का मन आज कुछ उचाट सा था …आनंद इस बात को समझ रहा था  “जब से पाहुन का फोन आया है वो कुछ परेशान सी है … हो भी क्यों न बात ही कुछ ऐसी है।”

          “क्या करूं” … “चलो अपने लिए कोई एक कीमती ड्रेस ले लो “… आनंद ने झिझकते हुए कहा ।


           रमा एक तो चिढ़ी हूई थी और चिढ़ गई ” छोड़िए मुझे नहीं जाना है वहां …, जहां के लोग इन्सान का मापन कपड़ों से करते हैं “

  “बात तो ये ठीक ही कह रही है ” आनंद ने समर्थन जाहिर किया मन ही मन । रमा के प्रति वह प्यार और सहानुभूति से भर गया ।

         वह सोचता है — कि बाबूजी के गुजर जाने के बाद मेरी बहन वैशाली की शादी के लिए हमें छोटी सी छोटी जरूरतों को भी मारना पड़ा था… पर स्वयं एक बेटी की मां होते हुए भी रमा ने कभी शिकायत नहीं की… ,और वैशाली ने !!!  मां की बातों में रह कर कभी भी रमा को पसंद नहीं किया ।

      ,””मां को खेतों में काम करने वाली गांव की लड़की बहू के रूप में चाहिए थी…और बाबूजी ने समाज में मेरी प्रतिष्ठा को देखते हुए एक पढ़ीलिखी व शहरी लड़की रमा से मेरा ब्याह करवा दिया … सो मां नाराज़ रहने लगी… ।””

           आनंद कुछ चिढ़ सा जाता है  “”अरे! क्या हुआ वह बड़े घर की बेटी थी तो … खेती गृहस्थी नहीं जानती थी तो… क्या इसने नहीं सीखा? … नहीं !!! इसने सब सीखा,हम सबकी खुशी के लिए … इसने अपना बड़प्पन हमेशा दिखाया … सबको खुश रखने का भरपूर प्रयास किया … मैंने , बाबूजी ने तथा औरों ने भी देखा है सिर्फ मां को छोड़ कर… पता नहीं मां क्यूं नहीं देख पाती है … या फिर देख कर अनदेखी करती है … पर इन सबका खामियाजा हम दोनों को ही भुगतना पड़ता है न..।””

         आनंद ने रमा को देखा वह कितनी तल्लीनता से अपनी रसोई के कामों में लगी हुईं थीं पर वह जानता था कि उसके मन में भी यही सब बातें चल रही होगी।

         वह पुनः सोचता है “”वैशाली को मैंने इतना मनोयोग से पढ़ाया लिखाया कि कोई ये न कहे पिता के न रहने पर लड़की अनाथ हो गई है … रमा ने भी उसके महंगे पढ़ाई के लिए रोक टोक नहीं की बल्कि यथासंभव अपनी खुशियों का ही गला घोंटा…जब उसकी शादी की बारी आई तो मां और वैशाली को लगा कि मैं  दान दहेज के डर से ऐसे तैसे लड़के से ब्याह कर दूंगा… ।””

        आनंद के चिंतन का सिलसिला यूं ही जारी था “” मैं चाहता था वैशाली अपना कैरियर बनाए फिर उसका ब्याह करूं ताकि ब्याह जैसी मेरी जिम्मेदारियों में… वह भी कुछ भूमिका निभाए पर… पर मां बेटी के दिमाग में भूंसा ही भरा था…।””

        “”यहां पर भी रमा नें ही बाबूजी की अनुपस्थिति में सारे समाज के सामने मुझ पर दाग़ लगने से बचाया और वैशाली के लिए मेरे कदम से कदम मिला कर एक अच्छे घर वर की तलाश की… ।


      पर बात इतनी ही नहीं थी अच्छा घर वर मतलब अच्छा खासा खर्चा बढ़ना … ये हमारे समाज की विडंबना ही है कि सारे का सारा बोझ लड़की वालों पे ही लाद दिया जाता है… मां को अब भी भरोसा नहीं था कि हमने वैशाली के लिए एक अच्छा रिश्ता खोजा है … सो उन्होंने अपनी जमा पूंजी देने से साफ मना कर दिया …।””        

        रमा को निहारते हुए वह ख्यालों में खोया ही रहा “”मुझे तो समझ में ही नहीं आया कि अब आगे क्या करूं पर रमा ज़रा भी विचलित न हुई न मुझे होने दिया …जरूरत पड़ने पर अपने गहनों कपड़ों में कटौती कर उसने वैशाली और उसके ससुराल वालों की हरेक इच्छा पूरी की…जिसका एहसास आज तक न मां को हुआ न वैशाली को… वैशाली तो अपने उच्च शिक्षा के आगे रमा को कभी कुछ समझी ही नहीं…।

       और आज उसी वैशाली के उसी पति ने हमें अपने घर आने का निमंत्रण यह कह कर दिया कि … भाभी !! आप सब एक से एक कीमती कपड़े ले लीजिएगा… क्यूंकि मैं नहीं चाहता कि वैशाली की यहां किसी भी तरह की बदनामी हो…  अरे! वो संस्कारहीन रमा को क्या समझेंगे …जो मन में आया बोल दिया…।

        उसका माथा झन्ना उठता है “” क्या वे रमा से ज्यादा कीमती पहनावा पहनते रहे होंगे या भव्य जीवन यापन जीते रहे होंगे… उनलोगों की खुशी के लिए हमेशा नाजों नखरों में पली रमा क्या से क्या हो गई …एक पढ़ी लिखी लड़की शहर से आ कर खेती गृहस्थी वाली हो गई और एक खेती गृहस्थी वाली लड़की पढ़ लिख कर अहंकारी होती गई… काश! वैशाली थोड़े बहुत गुण रमा के सीख लेती तो आज उसके पति को ये बोलने की हिम्मत नहीं होती …सच ही कह रही है रमा… ऐसे लोगों के यहां क्या जाना….।””

         वहां जाना हो या न जाना हो … अब बहुत हो गया …  कल ही मैं रमा के लिए अब तक कि सबसे कीमती साड़ी लाऊंगा… मेरी रमा जिस रूप में ब्याह कर आई थी अब उसका वो रूप मुझे वापस दिलाना है तभी मैं एक पति के रूप में उसके साथ न्याय कर पाऊंगा…।

          यह दृढ़ निश्चय कर आनंद एक नारी की गरिमा गाथा कहती हुईं रमा के अतुलनीय सौंदर्य से मंत्रमुग्ध हो गया ,


        रमा भी उसके मनोभावों पढ़ती हुईं और उससे लिपटती हुईं स्वयं की और आनंद की हर परेशानी को आंसुओं के साथ समाप्त कर देती है।

 

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फिर भी वो उनके पक्के जवाब की राह देख रहे थे , कुछ दिनों के इंतजार के बाद जवाब आया, किसी रिश्तेदार के हाथों ..कि ,”ये रिश्ता नही हो सकेगा ,क्योंकि लड़की का किसी और लड़के के साथ अफेयर चल रहा है” ! ऐसा उन लोगों को मालूम हुआ है ।रूपल ओर उसके मम्मी पापा बात सुनकर सन्न रह गए कि ऐसी घटिया और झूठी अफ़वाह किसने उड़ाई  ? 

“रूपल के मन को धक्का सा लगा था”। क्योंकि उसने हमेशा अपने पापा मम्मी की भावनाओं का ध्यान रखा था । अगर वह किसी को पसंद करती भी..तो वह मना नही करते  , “क्योंकि उन्हें अपनी बेटी  पर भरोसा था की, वह कभी कोई  गलत निर्णय नही लेगी” । इधर निमिषा भी कई दिनों से रूपल से मिली नही  । इस घटना के लगभग दो माह बाद ही…

निमिषा अपने शादी का निमत्रंण  पत्र रूपल को देने आई “वर का नाम कुणाल देखकर चौक गई थी रूपल”। ये तो वही लड़का था , जो उसे देखने आया था। उसका सिर घूमने लगा था। “और निमिषा शादी में आने का निमंत्रण देकर , जल्दी से वहाँ से विजयी भाव से निकल पड़ी” । रास्ते मे वह सोच रही थी ,”अच्छा हुआ जो वह कुणाल को बहकाने में सफल हो गई ,

नही तो उसके जैसा लड़का आज रूपल का हमसफ़र होता”। उसने कुणाल से मिलकर दोस्ती बढ़ाकर अपनी  मीठी मीठी बातों से आकर्षित कर ,कुणाल के मन में अपनी बचपन की सहेली के प्रति शक पैदा कर दिया था । कुणाल ने कुछ  समय के बाद कुछ  सोचकर  , निमिषा को प्रपोज़ कर दिया था , निमिषा लगातार उसके सम्पर्क में रहने लगी थी ,”उसके तो मन की हो गई थी ,यही तो वह चाहती थी। “कुणाल जैसे स्मार्ट और इंजीनियर लड़के को देखकर ही उसे रूपल के भाग्य से ईर्ष्या होने लगी थी”। और उसने अपनी कुटिल चाल चल  दी थी ।

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