चक्रव्यूह – कंचन शुक्ला

सुहान और सुबानी की शादी हुई। तीन साल बीतते ही, ग्यारह महीने के सृजन का पिता बन गया, सुहान। आज उसे गोद में हँसाते खिलाते होटल में दाखिल हो रहा है।

क्या नही था?? पर सुहान को लगता जैसे कुछ भी नही हो।

पहली बार सुबानी को कॉलेज के उत्सव में देखा तो दिल दे बैठा। दोनों टक्कर के अमीर थे। मातापिता नही चाहते थे, फिर भी शादी, उनकी खुशी के लिए मान गए।

सुहान सुबानी से लगभग नफरत करने लगा है। जैसे ही उसको जान पाया, उससे डरने लगा। अमीर घर की इकलौती बिगड़ैल औलाद निकली, सुबानी। ठहरना उसे बिल्कुल नही भाता।

कौन सा ऐसा काम था जिसे आजमाना नही चाहती थी??  कुछ भी कर गुज़रने से सुबानी को डर नही लगता। इस सब को जानकर, असलियत देखकर, सुहान घबरा जाता।

एकबार किसी को पता लग जाय कि आप उससे डर रहे हो तो उसकी प्रकृति ही बन जाती है आपको डराना।

सुहान बड़ी चुनौती वाला काम करने जा रहा था। बेटे के अगवा होने का नाटक किया। सृजन को अपने मातापिता के पास रख, पुलिस को उसके लापता होने की खबर कर दी।

सुबानी को सबक सिखाना चाहता था। ये भी पता लगाना चाहता था कि सृजन के लिए उसकी माँ के मन में कितना प्यार और सच्चाई थी।

तीन दिन बीत गए। पुलिस चारों तरफ सृजन को ढूंढ रही है। पर सुबानी अभी भी लापता है। उसे किसी की कुछ पड़ी ही नही। ये आखिरी मौका जो सुहान ने अपनी शादी, परिवार को देना चाहा वह भी फेल हो गया।

सुहान को पता चल गया है कि उसे क्या करना चाहिए। अपने बेटे सृजन को लेकर वह ऑस्ट्रेलिया रहने चला गया है।

मौलिक और स्वरचित

कंचन शुक्ला- अहमदाबाद

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