*चाचाजी और मारिए मुझे* – ओम

#मन_के_भाव

 

मैं चौथी क्लास में था ,तभी मेरे पिताजी का स्वर्गवास हो गया और हमसब,मैं ,बड़े भैया और मां अपने चाचाजी के घर रहने लगे।चाचाजी का परिवार काफी छोटा था।परिवार में चाचाजी,चाचीजी और उनका एक साल का बेटा।चाचाजी बहुत बड़े बिजनेस मैन थे,और बहुत दबंग स्वभाव के थे।काफी मेहनती, सामाजिक और कड़क स्वभाव वाला उनका व्यक्तित्व था।उनके कड़क स्वभाव से हमलोग थर थर कांपते थे।मैं पढ़ने में अच्छा था और सारे मुहल्ले के लोग मेरी तारीफ करते थे। पर चाचाजी ने कभी भी इसपर ध्यान नहीं देते थे।वो कभी भी मुझे पढ़ाई के लिए न बोलते थे,न ही कुछ पूछते थे।।मुझे हमेशा लगता था की उन्हे हमारे किसी बात से कोई लेना देना नही है।वो न ही किसी बात पर टोका टोकी करते ना ही कोई दिलचस्पी दिखाते।
 
पिताजी की धुंधली सी यादें अभी भी स्मृति पटल पर अंकित थी ।वो कितना प्यार करते थे मुझे।मैं जो भी मांगता,वो मिलता।कभी किसी चीज की कमी नही हुई।मेरी सारी चीजों में वो दिलचस्पी रखते।रोज अपने साथ बैठाकर पढ़ाते और लाड प्यार करते।उनके जाने के बाद,उनकी कमी महसूस होती थी और उस प्यार के लिए तरसता रहता था। अजीब सी खालीपन का अहसास होता था। चाचाजी का स्वभाव पिताजी के स्वभाव के एकदम विपरीत था।सामान्यतः वो बात भी नहीं करते थे।बातचीत का सिलसिला बस यही होता था कि वो कुछ आदेश देते और हम उसका पालन करते।

 
साल देखते देखते गुजर गया।बरसात के दिन थे।दोपहर का समय और मूसलाधार बारिश हो रही थी।घनघोर बादल आसमान में छाए हुए थे और जोरों से बिजली कड़क रही थी।रविवार का दिन और मैं अपने दोस्तो के साथ बारिश में खेल रहा था और मस्ती कर रहा था।मौसम लगातार खराब हो रहा था और मैं सब बातों से बेखबर था।हमलोग के घर से थोड़ी दूर पर एक बड़ा सा मैदान था और मैदान के एक कोने पर बड़ा सा बरगद का पेड़।हमसब दोस्त उसी बरगद के पेड़ के नीचे बारिश आ आनंद भीगते हुए ले रहे थे।मैने देखा मेरे चाचाजी लपकते हुए हमलोगो के तरफ आ रहे है।मैं घबरा गया।। मेरे पास आते ही उन्होंने मेरा कान पकड़ा और गुस्साते हुए डांटने लगे।वो जोर जोर से चिल्ला रहे थे

कि पिछले घंटे भर से मैं तुमको ढूंढ रहा हूं।मौसम इतना खराब है,और मैं चिंता से मरा जा रहा हूं कि तुम कहां चले गए।और तुम हो की यहां मस्ती कर रहे हो।मौसम इतना खराब है,बिजली कड़क रही है,तुमको कुछ हो जाता तो।गुस्से में लाल पीले होते हुए उन्होंने एक जोर का तमाचा गालों पर जड़ दिया और मैं दूर जा कर गिरा।दर्द से मेरी हालत खराब और मैं रोए जा रहा था।पर मेरा दिल खुशी से फूले नहीं समा रहा था।आज मुझे लगा की मैं तो यूं ही समझ रहा था की पिता वाला प्यार अब जीवन भर नही मिलेगा,पर अभी मुझे एहसास हुआ की चाचाजी भी मुझे पिता समान ही प्यार करते है पर दिखाते नही।गाल दर्द से और दिल प्यार से लबालब भर गया था और मैं दिल ही दिल में जोर जोर से चिल्ला रहा था ……..*चाचाजी और मारिये मुझे।।*

 

आज आपदोनो ,”पिताजी और चाचाजी “हमारे बीच नही है,पर आपदोनो सदैव हमारे दिल में रहते है।

 

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