मायके की दीवाली – शुभ्रा बनर्जी 

“मम्मी! हम इस बार भी दीवाली नहीं मनाएंगे क्या?” आशू की मायूस आवाज सुनकर नेहा सहम गई।”क्यों बेटा? तुमने ऐसा क्यों सोचा? नेहा ने उसे पुचकारते हुए पूछा। “मम्मी काॅलोनी में सभी के यहां दीवाली की तैयारी शुरू हो गई है।और तुम हो कि पिछले कई दिनों से ऐसे ही गुमसुम बैठी हो।”बोलो ना मम्मी … Read more

ज़िंदगी “कलंक” नहीं कस्तूरी है – शुभ्रा बैनर्जी : Moral stories in hindi

सुगंधा ने ट्रेन छूटते ही बच्चों को फोन पर जानकारी दे दी।आज कॉलोनी की हम उम्र महिलाओं के साथ बनारस जा रही थी,घूमने। बनारस का नाम सुनते ही, जाने क्यों मन बांवरा सा हो जाता था उसका।वैसे बनारस से इश्क़ करने वाली वह पहली और अकेली नहीं थी।बनारस के रस ने ना जाने कितनी जिंदगियों … Read more

आखिर मुखौटा उतर ही गया – शुभ्रा बैनर्जी

नंदिनी काफी दिनों से विवेक को तलाश रही थी।बहुत मुश्किल से जब पता मिला तो नंदिनी मिलने के लिए पहुंची आफिस।आलीशान बिल्डिंग थी ।नंदिनी आफिस से उनकी व्यक्तिगत जिंदगी की खुशहाली देख सकती थी।दूर से देखकर नंदिनी ने विवेक को पहचान लिया था।बस अब उससे मिलने की जरूरत नहीं। विवेक को देखते ही नंदिनी अपने … Read more

ज़िंदगी “कलंक” नहीं कस्तूरी है – शुभ्रा बैनर्जी

सुगंधा ने ट्रेन छूटते ही बच्चों को फोन पर जानकारी दे दी।आज कॉलोनी की हम उम्र महिलाओं के साथ बनारस जा रही थी,घूमने। बनारस का नाम सुनते ही, जाने क्यों मन बांवरा सा हो जाता था उसका।वैसे बनारस से इश्क़ करने वाली वह पहली और अकेली नहीं थी।बनारस के रस ने ना जाने कितनी जिंदगियों … Read more

अभिमान नहीं स्वाभिमान बचाओ – शुभ्रा बनर्जी 

मेरी बेटी मेरी गुरु,मेरी गाइड,मेरी वकील और मेरी न्यायाधीश सभी है।डिलीवरी के समय सोनोग्राफी करवाने पर जब पहली बार पता चला था मुझे कि मेरे गर्भ में जुड़वा बच्चे हैं,जिनमें से एक खराब हो गया और एक स्वस्थ है,सकते में आ गई थी मैं।यह इतिहास बन जाएगा मेरे और पति के खानदान में।ऐसा पहले कभी … Read more

दर्द जो समय के साथ मरहम बन गया – Short Motivational Story

अभी पिछले साल ही मंगला (काम वाली दीदी)ने कुछ पैसों की मांग की थी,बेटी की शादी के लिए।सुधा ने जब सुमित को बताया ,उन्होंने तुरंत हां कह दी।दस हजार रुपए दे दिए मंगला को।मंगला‌ ने खुश होकर कहा कि वो जल्दी लौटा देगी पैसे।सुधा ने अलग से कपड़े और बर्तन भी दिए अपनी तरफ से।दो … Read more

भरोसे की जीत – शुभ्रा बनर्जी

प्रतिमा अपनी बेटी प्रिया के साथ सहमते हुए कैब से उतर रही थी।एक अनजाना डर भी उसे सता रहा था।कैसा होगा कार्यक्रम?,इतना बड़ा होटल है,यही है ना पता?हां बच्चों से आज ही तो बात भी हुई थी। फिर क्यूं इतना डर लग रहा है मुझे?शायद अपनी संतान और बच्चों के बीच समन्वय की शंका है … Read more

मर्यादा-एक सीख – शुभ्रा बनर्जी

आज बच्चों का लंच बॉक्स पैक करते हुए विनीता की आंखों से आंसू गिर रहें थे।सुबह से उठकर सास ससुर की देखभाल,नाश्ता,खाना सब कुछ करके बच्चों को तैयार‌ करके फिर ख़ुद स्कूल जाती थी।हर दिन देर हो जाती थी पहुंचने में।दौड़ते दौड़ते थक‌ गई थी।फ़िर दोपहर में आकर सब को खाना परोस कर दो।पांच मिनट … Read more

एकादशी में महालक्ष्मी की वापसी – शुभ्रा बनर्जी 

अनुज के साथ पहली बार जब दिल्ली आई थी मैं,आंखों से आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे।एक भरे पूरे संयुक्त परिवार में पली बढ़ी मैं,कैसे अकेले एक नए शहर में रहूंगी?कौन ध्यान रखेगा मेरा?ताऊजी,ताजी,चाचा,चाची,बुआ,दादा दादी सबकी लाड़ली थी मैं।सबके लाड़ प्यार ने मुझे नकचढ़ी बना दिया था,ऐसा मम्मी का आरोप था मुझ … Read more

पहले करवा चौथ का नया चांद – शुभ्रा बनर्जी

आज शुभदा बहुत उत्साहित थी।और हो भी क्यों नहीं?कल बहू का पहला करवाचौथ है।जैसा उसने चाहा था,सुरभि तो उससे भी बढ़कर खूबसूरत है।शालीन है।कितना ख्याल रखती है उसका।यही सोचते सोचते कब आंख लग गई,पता भी नहीं चला। मां! मां! शुभदा हड़बड़ाकर उठ गई।क्या हुआ बेटा? कुछ नहीं मां,सुरभि उसके गले में झूलती हुई बोली।अभी आपके … Read more

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