बुरे वक्त का साथी … – ममता गुप्ता

मोहनलाल औऱ किशन दो भाई थे । मोहनलाल जी गांव के किसी स्कूल में चपरासी की नोकरी करते थे औऱ उनका छोटा भाई की शहर में नौकरी थी ।। दोनो भाइयों में प्रेम औऱ अपनापन बहुत था ।। 

एकदिन उनके छोटे भाई का फोन आया औऱ बताया कि – भैया , कोरोना में लगे लॉक डाउन की वजह से मेरी नौकरी चली गई है औऱ आप तो जानते ही हो कि दिल्ली में इस वक्त कोरोना से क्या हाल है । इसलिए मुझे कुछ पेसो की जरूरत है ताकि कोई छोटा व्यापार शुरू कर सकू जिससे अपने परिवार की जरूरतें पूरी कर सकू … गर आप इस बुरे वक्त में मेरा साथ दे सके तो मैं वचन देता हूँ कि आपके पैसे सूत समेत लोटा दूंगा ।। 

छोटे भाई किशन ने रुआँसी आवाज में कहा ।। 

” तू ये कैसी बात कर रहा है ..? इतने दिनों से तूने मुझे बताया  क्यो नही …?”

तू चिंता मत कर मैं तुझे पैसे भेज दूंगा … मोहनलाल जी ने कहा ।।

( यह बात उनकी श्रीमती जी संतोष ने सुन ली थी ।। )

” कितनी बार कहा है तुमसे की तुम्हे अपने छोटे भाई के बारे में इतना सोचने की कोई जरूरत नही है ।।”

गर उसके हालात खराब है तो इसमे हम क्या करें । पैसे कोई पेड़ पर थोड़ी लटकते है जो बस तोड़कर उसकी झोली में डाल दो … खबरदार अगर अब अपने भाई की किसी भी तरह की कोई मदद की तो … संतोष ने अपने पति मोहनलाल जी को कड़ी हिदायत देते हुए कहा ।।

” तुम पागल हो क्या …? आज अगर किशन का वक्त खराब चल रहा है तो क्या मैं उससे मुँह मोड़ लूँ …!! बुरे वक्त में एक भाई ही भाई के काम नही आएगा तो फिर कौन आएगा ।। 

तुम अच्छे से जानती हो कि किशन हम से उम्र में छोटा है लेकिन उसने हमेशा फर्ज बड़े भाई का ही निभाया है , मेरे बच्चो को हमेशा खुद के बच्चो की तरह प्यार किया है , तीज त्यौहार पर अपने बच्चो के साथ तुम्हारे बच्चो को कपड़े लेकर आता था … 




औऱ इतना ही नही मेरी तो एक छोटी सी चपरासी की नोकरी है औऱ तुम तो जानती ही हो मेरी तनख्वाह क्या थी … तुम जो आज सांस ले रही हो उसी की बदौलत है , अपने बुरे वक्त को भी हमे कभी भूलना नही चाहिए ।।

मोहनलाल जी ने अपनी पत्नी संतोष को समझाते हुए कहा ।।

हमारे लिए क्या किया है उसने …? औऱ ये सांसे तो भगवान की बदौलत है उसकी नही … तुम ये बेफालतू की बाते मत किया करो … संतोष ने गुस्से से कहा ।।

वाह !! ये बहुत सही कहा तुमने मतलब जिसने हमारे खराब वक्त में साथ दिया उसके एहसान को भूल जाओ ।। 

अगर तुम भूल गई हो तो मैं तुम्हे याद दिलाता हूँ … श्रीमती जी !!

पांच साल पहले तुम्हारी तबियत बहुत ही ज्यादा बिगड़ गई थी !! अचानक से खून की उल्टियां होना । यहाँ गाँव मे कोई अच्छा चिकित्सालय था नही औऱ जो डॉक्टर थे बल्कि उन्होंने हाथ खड़े कर दिए थे कि इन्हें किसी शहर के बड़े अस्पताल में लेकर जाए जहाँ इन्हें सारी सुविधाएं अच्छे से मिल सकें …!! 

मुझे तो उस वक़्त कुछ समझ नही आ रहा था क्या किया जाए , उस वक्त किशन को मैने फोन करके जब तेरी तबियत के बारे में बताया तो उसने तुरंत ही कहा – भैया ” मैं हूं ना ” आप फ्रिक मत कीजिए … आप भाभी को एम्बुलेंस में यहाँ दिल्ली ले आइए ।।

उस वक्त उसका यह कहना कि ” मैं हूं ना ” यह शब्द किसी जादू से कम नही थे … मैं तो तेरी बिगड़ती तबियत को देखकर टूट चुका था, लेकिन किशन ने ही शहर के सबसे बड़े अस्पताल में कैसे न कैसे तेरे लिए डॉक्टर से अप्पोइमेंट ले कर एक वार्ड बुक किया ।।




पता है जब डॉक्टर ने कहाँ की इन्हें तो खून की आवश्यकता पड़ेगी तो उसने ही तुम्हे खून दिया था औऱ आज तुम कहती हो कि मैं उसकी बुरे वक़्त में सहायता न करुँ ।। 

आज अगर कोरोना की वजह से उसकी नौकरी चली गई है औऱ उसे कुछ पैसो की जरूरत है तो क्या उससे कह दूँ की मेरे पास पैसे नही है …? ऐसे मुश्किल वक्त मे उसका साथ कैसे छोड़ दूँ …?

तुम जानती होना संतोष परिवार होने का मतलब क्या है … परिवार के सुख दुःख में साथ देना … खराब वक्त में मुँह मोड़कर नही बल्कि मुँह तोड़कर खराब वक्त को जवाब देना ।।

जिंदगी में खराब वक्त शायद आता है कि पता चल सके कि अपने कितने साथ देते है … इसलिए मैं इस इम्तिहान मैं पास होना चाहता हूँ अपने किशन की मदद करके ।।

मोहनलाल जी ने समझाते हुए कहा ।।

यह सब सुनकर संतोष जी झट से अपने कमरे में गई औऱ अपने कुछ गहने लाकर मोहनलाल जी के हाथों में लाकर रख दिए औऱ कहा ये लो देवर जी ऐसी स्थिति में हम अकेला नही छोड़ सकते है  … कुछ वक्त के लिए में स्वार्थ सिद्धि हो गई थी … ये भूल गई थी जिस व्यक्ति ने मुझे जिंदगी दी है आज उसके लिए मुझे भी कुछ करने का मौका मिला है ।। 

मुझे माफ़ कर दीजिए … मैं आपकीं भी दोषी हूँ जो भाई के मुश्किल वक्त में काम आने पर रोक रही थी … आपने सच कहा है कि परिवार का मतलब ही यही है कि बुरे वक्त में साथ खड़े रहना ।।

मोहनलाल जी भी खुश थे कि चलो देर से ही सही लेकिन श्रीमती को मेरी बात तो समझ आई ।।

उन्होंने अपने भाई किशन को जितने पैसो की जरूरत थी … वो कैसे न कैसे करके अपने भाई को भेजे ताकि वह अपना व्यापार अच्छे से चला सकें ।।

दोनो भाई एक दूसरे के बुरे वक्त के साथी बनकर परिवार की परिभाषा समझा दी।

#वक्त 

स्वलिखित –

ममता गुप्ता ✍️

अलवर , राजस्थान

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