बुजुर्ग समय चाहते हैं पैसा नही – मुकेश कुमार

नेहा ने कहा,” मम्मी , दादाजी   कई बार कह चुके  हैं कभी मुझे भी अपने साथ रेस्टोरेंट्स ले जाया करो.”

मम्मी  बोली , ” ले तो जायें पर चार लोगों के खाने पर कितना खर्च होगा.

याद है, पिछली बार जब हम तीनों ने डिनर लिया था, तब सोलह सौ का बिल आया था.

हमारे पास अब इतने पैसे कहाँ बचे हैं.

” नेहा ने बताया,” मेरे पास पाकेटमनी के कुछ पैसे बचे हुए हैं.”

नेहा की मम्मी ने  तय किया कि इस बार दादाजी  को भी लेकर चलेंगे,

इस बार मँहगी पनीर की सब्जी की जगह मिक्सवैज मँगवायेंगे और आइसक्रीम भी नहीं खायेंगे.

नेहा अपने दादा जी   के कमरे में गई और बोली  ,

“दादा जी  इस’ संडे को लंच बाहर लेंगे, चलेंगे ना हमारे साथ.”



 दादाजी ने खुश होकर कहा,” तुम ले  चलोगी अपने साथ.”

“हाँ  दादाजी “

संडे को दादाजी  सुबह से ही बहुत खुश थे .

आज उन्होंने अपना सबसे बढिया वाला सूट पहना, हल्का सा मेकअप किया, बालों मे कंघी किया .

आँखों पर सुनहरे फ्रेमवाला नया चश्मा लगाया.

यह चश्मा उनकी बेटी ने  बनवाकर दी थी  जब वह पिछली बार दिल्ली से आई थी .

किन्तु वह उसे पहनते नहीं थे , कहते थे, इतना सुन्दर फ्रेम है, पहनूँगा  तो पुराना हो जायेगा.

आज दादा जी शीशे में खुद को अलग अलग एंगिल से कई बार देख  चुके थे और संतुष्ट  थे

नेहा  दादा जी  को बुलाने आई  तो नेहा के पिता बोले ,”अरे वाह पिता जी , आज तो आप बडी हैंडसम लग रहे हैं

 नेहा ने कहा,” आज तो दादाजी ने गोल्डन फ्रेम वाला चश्मा पहना है. क्या बात है दादाजी  किसी  गर्लफ्रैंड को भी बुला रखा है क्या.”

 दादाजी शर्माकर बोले  , ” धत.”

रेस्टोरेन्ट में सैंटर की टेबल पर चारो बैठ गए.

थोडी देर बाद वेटर आया, बोला, ” आर्डर प्लीज “.

अभी  नेहा  बोलने ही वाली  थी  कि दादा  जी बोले ,” आज आर्डर मैं  करूंगा क्योंकि आज की स्पेशल गैस्ट मैं हूँ.”

 दादाजी  ने लिखवाया- दालमखनी, कढाईपनीर, मलाईकोफ्ता, रायता वैजेटेबिल वाला, सलाद, पापड, नान बटरवाली और मिस्सी रोटी.



हाँ खाने से पहले चार सूप भी.

 नेहा और नेहा के मम्मी-पापा एकदूसरे का मुँह देख रहे थे.

थोडी देर बाद खाना टेबल पर लग गया.

खाना टेस्टी था,

जब सब खा चुके तो वेटर फिर आया, “डेजर्ट में कुछ सर”.

 दादा जी ने कहा,  ” हाँ चार कप आइसक्रीम “.

 अब नेहा और नेहा के मम्मी पापा  की हालत खराब, अब क्या होगा,  दादाजी  को मना भी नहीं कर सकते पहली बार आए  हैं.

बिल आया,

इससे पहले  नेहा के पापा उसके  तरफ हाथ बढाते ,

बिल दादाजी ने उठा लिया और कहा,” आज का पेमेंट मैं करूँगा 

बेटा  मुझे तुम्हारे पर्स की नहीं,

तुम्हारे समय की आवश्यकता है,

तुम्हारी कंपनी की आवश्यकता है.

मैं पूरा दिन अपने कमरे में अकेले पड़े पड़े  बोर हो जाता  हूँ.

टी.वी. भी कितना देखूँ,,

मोबाईल पर भी चैटिंग कितना करूँ.

बोलो नेहा क्या अपना थोडा सा समय मुझे दोगी,”

कहते कहते दादा जी की आवाज भर्रा गई.

नेहा अपनी चेयर से उठी,

उसने दादा जी को अपनी बाँहों में भर लिया और फिर दादाजी के गालों पर किस करते हुए बोली,” मेरे प्यारे दादाजी  जरूर.”

 नेहा के पापा  ने कहा, ” यस  पिताजी, हम प्रामिस करते हैं, कि रोज आपके पास बैठा करेंगे

और तय रहा कि हर महीने के सैकंड संडे को लंच या डिनर के लिए बाहर आया करेंगे और पिक्चर भी देखा करेंगे.”

 दादाजी के होठों पर 1000 वाट की मुस्कुराहट तैर गई,

आँखों में फ्लैशलाइट सी चमक आ गई और चेहरे की झुर्रियाँ खुशी के कारण नृत्य सा करती महसूस होने लगीं…-

मित्रों,

बूढ़े मां-बाप रूई के गठठर समान होते है,

शुरू में उनको बोझ नहीं महसूस होता, लेकिन बढ़ती उम्र के साथ जैसे रुई भीग कर बोझिल होने लगती है. वैसे जिंदगी की थकान बोझ लगती है।

बुजुर्ग समय चाहते हैं पैसा नही,

पैसा तो उन्होंने सारी जिंदगी आपके लिए कमाया-की बुढ़ापे में आप उन्हें समय देंगे।

यदि वृक्ष से फल न मिले,

तो कोई बात नहीं,

   किन्तु छाया सकून प्रदान करती है।

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