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बुजुर्गो के साथ वक्त बिताना जरूरी होता है –  कीर्ति महरोत्रा

“पापा!! आप ये कैसी बातें कर रहे हैं बाबाजी घर में अकेले रहकर क्या करेंगे, कहीं घर में अकेले उनकी तबीयत बिगड़ गई तो मैं ऐसे घर में बाबा को नौकरों चाकरों के सहारे छोड़कर नहीं जा सकती नहीं मैं तो अपने बाबा जी को अकेले छोड़कर नहीं जाऊंगी फिर आप और मां चले जाइए। बड़े बुजुर्गों के साथ वक़्त बिताना जरूरी होता है पापा! मैं बाबा जी के साथ यहीं घर में रहूंगी” “ओफ्फो आस्था! हद करती हो बेटा! एक दिन तुम्हारे बाबाजी अकेले रह लेंगे तो आफत नहीं आ जाएगी तुम्हारे ही रिश्ते की बात करने जा रहे हैं और तुम ही चलने‌ से मना कर रही हो” “मैंने एकबार जो कह दिया वो कह दिया पापा! आप अपने बच्चों का तो बहुत ध्यान रखते हैं लेकिन अपने पापा को क्यों भूल जाते हैं वो भी बुजुर्ग हों ग‌ए हैं इस समय उन्हें आपकी आपके साथ की सबसे ज्यादा जरूरत है क्योंकि ये तो आप भी जानते हैं पापा! बच्चे और बुजुर्ग एक समान होते हैं।

इस उम्र में उन्हें अकेलेपन से डर लगता है जब हम सभी उनके साथ होते हैं हंसते बोलते हैं तो उनके चेहरे की खुशी देखते बनती है।आप अगर बाबा को भी साथ में ले चलेंगे तभी मैं चलूंगी नहीं तो नहीं ”आस्था ने भी पूरी ढिठाई से अपने पापा राजेंद्र नाथ जी के सामने अपनी शर्त रखी। इस बार मां रंजना जी बोली”बेटा! हमें उन्हें साथ ले चलने में कोई परेशानी नहीं है लेकिन तुम तो जानती हो ना वो सही से अपने आप खाना भी नहीं खा पाते उनके हाथ कांपते हैं और कपड़े भी गंदे कर‌ लेते हैं अब वहां ये सब अच्छा तो नहीं लगेगा ना यहां घर पर तो नौकर चाकर हैं देख लेंगे सब। वहां लड़के वाले ये सब देखकर बिदक ग‌ए तो तब क्या करोगी” “मां! इसी को तो बुढ़ापा कहते हैं क्योंकि इस समय उनलोगों की स्थिति बच्चों जैसी हो जाती है जब हम अपने बच्चों को इस अवस्था में खुशी खुशी संभाल लेते हैं तो अपने माता-पिता को क्यों नहीं संभाल सकते हैं। बच्चे लैट्रीन बाथरूम करते हैं तो माता-पिता साफ सफाई करते हैं और बाहर‌ ले जाते समय डायपर लगाते हैं क्योंकि बच्चे जान नही पाते बता नहीं पाते ऐसे ही बाबा की स्थिति है इस समय।

अब तो बुजुर्गोंं के लिए भी डायपर आने लगे हैं और ये देखिए मैं बाबा के लिए लेकर भी आई हूं। पापा आप बाबा को डायपर लगा दीजिएगा।उनके खाने पीने का ध्यान मैं रखूंगी वो बिल्कुल गंदा नहीं करेंगे गिराएंगे भी नहीं पक्का मैं किसी को कहने का मौका नहीं दूंगी”…. आस्था वहां तुम इन्हें संभालोगी या फिर लड़के वालों से मिलोगी” “पापा! मैंने बाबा के बगैर नहीं जाऊंगी” “ओके! तुम बहुत जिद्दी हो ठीक है बाबूजी को अच्छे से तैयार कर लेना।सब लोग समय पर तैयार रहना वो लोग समय पर पहुंच जाएंगे” आस्था जब अपने बाबा को तैयार करके बाहर लाई तो एक बार तो राजेंद्र नाथ जी अपने पिता विशम्भर नाथ जी को देखते ही रह ग‌ए सफेद झक कुर्ता पायजामा ऊपर से खादी की ग्रे कलर की सदरी कंधे पर हल्के क्रीम कलर का शाॅल, आंखों पर सुनहरी कमानी का चश्मा हाथों में खूबसूरत सी छड़ी और पैरों में आरामदायक काले जूते चेहरा रूआब से भरपूर दमक रहा था जैसे हमेशा से दमकता था




वो इधर बीमारी और अपनों की बेरूखी ने उन्हें बहुत ज्यादा बीमार बना दिया था लेकिन जबसे आस्था अपनी पढ़ाई करके वापस आई है तबसे वो अपना पूरा समय अपने बाबा जी को देती है। उसे जाॅब नहीं करनी है इसलिए राजेंद्र नाथ जी उसके लिए रिश्ते देख रहे हैं और आज उन्हें लड़के के परिवार वालों से मिलने जाना है। तभी आस्था की आवाज आई”चलिए पापा! मैं और बाबा तैयार हैं और देखिए कहीं से भी हमारे बाबा बलराज साहनी से कम लग रहे हैं।” “हां आस्था तुम बिल्कुल सही कह रही हो मैं तो अपनी व्यस्तता में अपने बाबूजी को बिल्कुल भूल ही गया था लेकिन आज लग रहा है ये इतने बीमार हैं नहीं जितना हमने इन्हें अपने से दूर करके कर दिया है।

चलो चलते हैं वरना देर हो जाएगी” वहां पहुंचकर सब आपस में बातचीत करने लगे लेकिन आस्था पूरे समय अपने बाबा का ध्यान रखती रही उन्हें अपने हाथों से खाना खिलाया उनसे बातें करती रही और वो भी बच्चों की तरह खुश हो रहे थे और आस्था बीच में बीच में लड़के वालों के सवालों का भी जवाब देती जा रही थी। राजेन्द्र नाथ जी को लगा ये रिश्ता तो गया हाथ से क्योंकि आस्था का पूरा ध्यान अपने बाबा की तरफ था। थोड़ी देर बाद सबने आपस में विदा ली। घर पहुंचने के बाद लड़के की मां का फोन‌ आया और बोली “भाईसाहब हमें आपकी आस्था बहुत पसंद आई जो लड़की इतना पढ़ लिखकर भी अपने संस्कारों को नहीं भूली अपने बाबा का इतना ध्यान रख सकती है

वो हमारे घर परिवार को हम लोगों को भी बहुत अच्छी तरह संभालेंगी। हमारी तरफ से ये रिश्ता पक्का है आप आस्था से पूछ लीजिए” राजेन्द्र नाथ‌जी फोन हाथ में लिए सोचने लगे “आज मेरी बेटी ने अपने पापा को यथार्थ से परिचित करवा दिया मैंने उनका बेटा होकर भी अपने बाबूजी को अकेला छोड़ दिया लेकिन बेटी ने आकर उन्हें फिर से जिंदगी जीना सिखा दिया उनके कदम अपने आप अपने पिता के कमरे की तरफ बढ़ चले तो देखा वो आराम से लेटे कोई उपन्यास पढ़ रहे थे जैसे ही अपने बेटे को देखा तो उठकर बैठ ग‌ए और बोले “आ बैठ यहां आज तुम्हें अपने बाबूजी कैसे याद आ ग‌ए”? बाबूजी! कभी कभी बच्चे भी हमें सही रास्ता दिखा देते हैं आज मेरी बेटी ने अपने पिता की आंखें खोल दीं कि जिस तरह बचपन में बच्चों को माता-पिता की जरूरत होती है उसी तरह बुढ़ापे में माता-पिता को अपने बच्चों की जरूरत होती है लेकिन माता-पिता अपने बच्चों की देखभाल खुशी-खुशी करते हैं वहीं बच्चे जब बुढ़ापे में माता-पिता को अपने बच्चों की सबसे ज्यादा जरूरत होती है उनकी जिम्मेदारी से पीछे हट जाते हैं उन्हें अकेला छोड़ देते हैं। 




बच्चे और बुजुर्ग एक समान होते हैं जैसे बच्चों को छोटी छोटी बातों से खुशी मिलती है वैसे ही बुजुर्गों को भी छोटी-छोटी बातों से खुशी मिलती है। आज अपने सेवाभाव से आपकी पोती आस्था ने लड़केवालों का दिल जीत लिया है। उन्होंने रिश्ते के लिए हां कर दी है। अपने बेटे को माफ कर दीजिए”कहते हुए पिता की गोद में सर रख दिया …. बेटे का सर सहलाते हुए बोले “नाराज़ तो बहुत था बेटे बहू से लेकिन आस्था ने मेरे मन की सारी कड़वाहट दूर कर दी अपने प्यार से अब मेरे मन में तुम दोनों के लिए कोई मैल नहीं है मेरा आशीर्वाद हमेशा तुम्हें के साथ ‌रहेगा। शादी की तैयारियां शुरू करो हमारी आस्था की शादी धूमधाम से होनी चाहिए पूरा शहर देखता रह जाए” जी बाबूजी!

बारात की आगवानी सबसे हमारे आस्था के बाबा विशम्भर नाथ जी करेंगे बाबूजी!अब आपका बेटा आपको कभी अकेला नहीं छोड़ेगा आस्था के जाने के बाद हम सब मिलकर एक दूसरे का ध्यान रखेंगे” दोस्तों देखा आपने एक बेटी ने अपने बाबा का ख्याल रखा और अपने माता-पिता को उनकी गलती का अहसास करवाया। बच्चों की जान अपने दादी बाबा में बसती है।सच ही कहा गया बच्चे और बुजुर्ग एक समान होते हैं। आज की पीढ़ी गैर जिम्मेदार नहीं बहुत जिम्मेदार और अपने बड़े बुजुर्गों की कद्र करने वाली है कहीं कहीं इसके अपवाद भी हैं।ये मेरे विचार हैं मेरा मकसद किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना बिल्कुल नहीं है। आप लोग मेरी कहानी पर अपनी अमूल्य प्रतिक्रिया अवश्य दे आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण है

आपकी प्रतिक्रिया के इन्तजार में …….

आपकी दोस्त

कीर्ति मेहरोत्रा

धन्यवाद 🙏 # वक्त

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