बुढ़ापा दर्द के साथ बहुत कुछ सिखाता है – निधि शर्मा
- Betiyan Team
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- on Jan 19, 2023
आ गई माला (कामवाली) जल्दी से कुछ बना दो इन्हें बहुत जोरों की भूख लगी है। मैं तो फिर भी किसी तरह समझौता लेती हूं पर तुम्हारे बाबू जी को 7:30 बजे तक इतनी जोरों की भूख लग जाती है कि मैं तुम्हें क्या बताऊं..!” गीता जी अपनी काम वाली माला से कहती हैं। माला बोली “अब क्या बताऊं मांजी हर रोज सोचती हूं आज घर का काम जल्दी हो जाएगा पर होता नहीं बाबूजी थोड़ी देर ठहर जा मैं अभी बना देती हूं। इस सर्दी के मौसम में रात भी बहुत जल्दी हो जाती है
इसीलिए बच्चों का खाना बनाकर आती हूं।” गीता जी बोलीं “हां-हां बच्चों का ख्याल रख, खाना भी खिला पर जब तू बुड्ढी हो जाएगी और किसी काम की नहीं होगी तब क्या वो तुम्हें देखेगा?” प्रकाश बाबू बोले “तुम अपने बेटों की नाराजगी इस बेचारी के बच्चे पर क्यों दिखा रही हो सभी बच्चे एक जैसे नहीं होते हैं।” माला बोली “मांजी सही कह रहे हैं बाबूजी सभी बच्चे एक जैसे नहीं होते हैं और वो क्यों नहीं मुझे देखेगा मैं उसकी मां हूं!” गीता जी बोलीं “माला आज मुझे ही देख ले तीन बेटे-बहू हैं और इसी शहर में रहते हैं परंतु कोई झांकने तक नहीं आते हैं।” इतना कहकर वो पुरानी बातों को सोचने लगी जब गीता जी एक शिक्षिका थीं उनका भी भरा पूरा परिवार था। उस वक्त भी कुछ ऐसा ही ठंडी का मौसम था वो पोती के लिए स्वेटर बना रही थीं। प्रकाश बाबू बोले “मैं रिटायर होने वाला हूं बोलो तुम्हें क्या चाहिए?” गीता जी बोलीं “इस उम्र में मुझे कुछ नहीं चाहिए आप बच्चों को दीजिए।” वो बोले “कभी अपने बारे में भी सोच लिया करो खुदाना खास था
तुमसे पहले अगर चला गया तो मेरे जाने के बाद कोई पूछेगा नहीं तुम देखना।” गीता जी बोलीं “शुभ-शुभ बोलो और मेरे तीन बेटे हैं सब भीड़ बनाकर हमारे साथ रहेंगे आप देखना आपस में इस बात के लिए लड़ेंगे कि हम दोनों को एक साथ पहले कौन रखेगा।” प्रकाश बाबू के रिटायरमेंट के चार महीने बाद बच्चों का व्यवहार बदलने लगा फिर भी उन्होंने हिम्मत रखी और गीता जी नौकरी करती रहीं एक साल बाद वो भी रिटायर हो गई। पति को जब उन्होंने कहा कि पैसों को तीनों बेटों में बांट देते हैं तो प्रकाश बाबू इस बात के लिए तैयार नहीं हुई घर में अशांति फैलने लगी तो गीता जी ने अपने पैसों को तीन हिस्से में बांट दिया। एक दिन बेटों ने कहा “मां ये क्वाटर तो छोड़ना ही होगा वैसे भी ये हम सबके लिए छोटा पड़ता है। जमीन तो है ही घर बनाकर सब एक साथ रहेंगे।” बच्चों का विचार मां बाप को भी अच्छा लगा और घर चार-पांच महीने में तैयार हो गया सब साथ रह रहे थे।
कुछ दिनों बाद उनके दो बेटों ने अपने क्वाटर में रहने का फैसला किया। मां से बोले “मां पापा तो समझेंगे नहीं पर आप समझो आने-जाने में बहुत समय और पैसा दोनों बर्बाद होता है।” मां का मन तो भोला होता ही है तो वो मान गई और कर लिया आपने मन के साथ समझौता। प्रकाश बाबू बोले “गीता जब पंछी के बच्चे उड़ने लायक हो जाते हैं तो घोसले को ऐसे ही एक-एक करके छोड़ जाते हैं।” गीता जी बोलीं “आप हर समय ऐसी ही बातें क्यों करते हैं अभी छोटा बेटा हमारे साथ है।” नए घर में एक बेटे के साथ सुख शांति से दोनों रह रहे थे। करीब 3 महीने बाद छोटे बेटे ने कहा “मां मैं कितने दिनों तक बैठा रहूंगा मेरे भी बच्चे बड़े हो गएहै। मैं सोच रहा हूं कोई बिजनेस कर लूं अगर आप मदद करो तो मैं भी अपनी जिंदगी शुरू कर लूंगा।”
प्रकाश बाबू के मना करने के बाद भी गीता जी ने पैसे दे दिए और बिजनेस शुरू हुआ। कुछ महीने बाद जब ये बात दोनों बेटों को पता चली तो मां से नाराज होकर बोले “जब आपने उसे पैसे दे दिए तो अब वही आपका ध्यान रखेगा और अब वो कम ही आते थे। दो साल बाद छोटे बेटे के बच्चे भी पढ़ने लायक हो गए तो उसने भी मां से पल्ला झाड़ लिया और उसी शहर में अलग रहने लगा। इस बात का दर्द गीता जी को अंदर ही अंदर खाए जा रही थी और पति की कही।बात याद आ रही थी। कुछ दिनों बाद उनकी तबीयत बहुत खराब हो गई थी और उन्होंने बिस्तर पकड़ लिया। बेटे आए दुख जताए तो प्रकाश बाबू बोले “ये तुम्हारी मां है कोई पड़ोस की चाची नहीं जो तुम लोग अफसोस जताने आए हो..! इसने तुम्हें पाल पोसकर लायक बनाया कि आज तुम लोग अपने पैरों पर खड़े हो। आज तुम्हारी मां के लिए तुम्हारे पास वक्त नहीं..! अगर ऐसा है तो चले जाओ और पलट कर कभी मत आना, सात जन्मों का वादा किया है तो इस हालत में भी इसकी देखभाल मैं खुद कर लूंगा।” और वो चले गए। समय बीतता गया और प्रकाश बाबू ने हौसला नहीं छोड़ा हर रोज गीता जी को कहते थे “मैं जब तक हूं साथ निभाऊंगा बस तुम हौसला मत छोड़ना। क्योंकि तुम हो तभी मैं भी हूं और अब तो माला का ही सहारा है।” बेचारी कामवाली बच्चों से बढ़कर उन दोनों की सेवा करती थी।
एक समय था जब गीता जी बच्चों की भीड़ को पढ़ाती, नए भविष्य के लिए तैयार करती थीं और पोते-पोती अपने बच्चों के लिए उनके पिता से लड़ती थीं। आज उन दोनों की ये दशा थी कल जो भीड़ में थे आज वो अकेले हो गए… ! एक रोज गीता जी ने माला से अपने बेटों को फोन करवाया “बेटा बहुत दिन हो गए तुम सबको देखे हुए। समय किसने देखा है आज हूं कल न रहूं, ऐसा ना हो कि तुम सब ना आओ और मौत आ जाए जाने से पहले तुम सबका चेहरा देखना चाहती हूं।” बेटों ने कहा “हम व्यस्त हैं समय निकालकर अवश्य आएंगे क्योंकि अभी बच्चों की परीक्षा चल रही है।” उनसे बात करने के बाद गीता जी की आंखें भीगी थी। जब प्रकाश बाबू ने देखा तो पूछे “क्या तुम्हें अपने बेटों से बात की..?” गीता जी ने मुस्कुराकर कहा “नहीं तो…” प्रकाश बाबू बोले “गीता अपने मन को समझा लो की उन्होंने अपना घोंसला अलग बना लिया है। क्या तुम मेरे साथ खुश नहीं, जब बच्चे नहीं थे
तो हम कितने खुश थे उन्हीं दिनों को याद करके खुश रह लो।” धीरे-धीरे गीता जी को ये बात समझ में आने लगी कि इंसान अकेला आता है और अकेला ही जाता है। बस उसके साथ साथी का साथ और हौसला रह जाए तो आखरी वक्त भी कट जाता है। प्रकाश बाबू ने अपने पैसे अपने बच्चों को नहीं दिए थे तो उन्होंने अपने सुविधा के लिए कुछ लोगों को रख लिया हर शाम गीता जी को व्हील चेयर पर बैठाकर आसपास के नजारों को दिखाते थे और घंटों दोनों वक्त बिताते थे। पर कहीं ना कहीं मन के अंदर जो चोट लगी थी वो नासूर बनता जा रहा था। एक रोज गीता जी प्रकाश बाबू से बोलीं “सच में औरत बुद्धू होती है आपने मुझे कितना समझाया था फिर भी मैंने सारे पैसे उन लोगों को दे दिए। ये सोचकर कि बच्चे हैं मां-बाप से दूर कैसे रह पाएंगे, एक बात कहूं कल जब मैं नहीं रहूंगी तो आप किसके साथ बातें करेंगे..?” प्रकाश बाबू बोले “जितने साल मैं तुम्हारा साथ दे रहा हूं आगे तुम्हें मेरा सहारा बनना पड़ेगा।” गीता जी मुस्कुरा कर बोलीं “काश मैं अपने आखिरी सांस तक आपके लिए कर पाती। सांझ हो गई है चलिए आप खाना खा लीजिए क्योंकि आपको भूख जल्दी लग जाती है।” तभी माला आई गीता जी ने कहा माला “आज गट्टे की सब्जी और लाल साग बनाना।
आज तेरे बाबूजी के साथ में भी खाना खाऊंगी न जाने फिर कब मौका मिले।” प्रकाश बाबू बोले “गीता हौसला रखो सब ठीक हो जाएगा।” प्रकाश बाबू के मन में कुछ खटक रहा था क्योंकि गीता जी उस रोज अन दिनों से ज्यादा उनका ध्यान रख रही थीं। शाम में जब माला जाने लगी तो गीता जी ने उसका हाथ थामा और बोली “माला मेरे बाद बाबूजी का ध्यान तुम्हें ही रखना है।” और अपने गले से चैन उतारकर माला को दे दिया और बोलीं “तुम मेरी बेटी जैसी हो अपने बच्चों को पढ़ाओ लिखाओ बस कभी उन पर आश्रित मत होना।” माला ने सोने की चेन लेने से मना किया तो प्रकाश बाबू बोले “ले लो माला लेने वाले तो लालच में बस दर्द दे गए और सब ले गए ये तो तुम्हें प्यार से दे रही है।” न जाने क्यों उस रात प्रकाश बाबू की आंखों में नींद नहीं थी वो गीता जी के बगल में बस उन्हें निहार रहे थे गीता जी बोलीं “अब आप सो जाइए अगर आप जगे रहेंगे तो क्या यमराज नहीं आएंगे।” प्रकाश बाबू बोले “तुम ऐसी बातें करके मुझे डरा रही हो..!” गीता जी बोलीं “आप चिंता मत कीजिए मैं आपका हाथ थामे रहूंगी।”
और दोनों सो गए सुबह जब माला ने घंटी बजाई तो प्रकाश बाबू की नींद खुली उनके हाथों में गीता जी का बर्फ जैसा हाथ था। प्रकाश बाबू ने जब उन्हें जगाना चाहा तो वो जगी नहीं माला ने जैसे ही गीता जी को देखा वो रोने लगी और बोली “बाबूजी मांजी तो हमें छोड़ कर चली गईं।” प्रकाश बाबू बोले “गीता ये तुमने सही नहीं किया मुझे किसके भरोसे छोड़ गई।” फिर भी प्रकाश बाबू ने हिम्मत नहीं हारी और विधि विधान के अनुसार अपनी पत्नी को लाल जोड़े में तैयार किया। जब बेटों ने आगे बढ़कर मुखाग्नि देनी चाही तो उन्होंने उन्हें दूर रहने का आदेश दिया। समय इंसान को कितना कठोर बना देता है प्रकाश बाबू पूरे घर में अकेले रहने लगे और अपने अंतिम समय का इंतजार करते और खुद को नहीं उम्मीद देते थे। उन्होंने अपने जीते जिंदगी उस घर को वृद्ध आश्रम को देने का फैसला किया और अपने बाद बचे पैसे को माला के नाम कर दिया ताकि उसका बुढ़ापा दुख से न कटे।
माला आती प्रकाश बाबू की सेवा करती है और प्रकाश बाबू अपना समय लोगों के साथ उठने बैठने में बिताने लगे पर जब भी घर आते गीता जी की कमी उन्हें बहुत खलती थी। मित्रों ये दर्द हमें बहुत कुछ सिखाता है फिर बुढ़ापा तो हर किसी को आना है कोई इससे नहीं बच सकता। बस एक उम्र हो जाने के बाद अगर साथी का साथ न रसे तो भी खुद को नई उम्मीद और हौसला देते रहें क्योंकि यही एक चीज है जो हमारे साथ रहती है। आपको ये कहानी कैसी लगी अपने अनुभव और विचार कमेंट द्वारा मेरे साथ साझा करें। कहानी को सीख समझ कर पढ़ें और ज्यादा से ज्यादा शेयर करें ताकि लोगों की मानसिकता बदले धन्यवाद
निधि शर्मा
# दर्द
Nidhi ji good afternoon. this story is life touching. Will you please share me the hard copy in pdf. my email is skjha22@gmail.com and whatsapp number is 8448370105. With regards SK Jha