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बुआ के लिए कब तक यहां से खाना और सामान जाएंगा – वर्षा गुप्ता

सुहानी, सुहानी…. अपनी सहेलियों के साथ छत पर खेलने तो जा रही है, वहां मैंने अभी कुछ देर पहले ही आलू के पापड़ और मूंग दाल की बड़ियां सूखने रखी हैं,जरा उनसे दूर रहना.

अपनी सहेलियों के साथ घर की छत की ओर जा रही सीढ़ियों पर चढ़ते ही बड़ी अम्मा ने सुहानी को टोक दिया.

अम्मा,आप चिंता मत करो, मैं आपकी लाडली बेटी के लिए बन रही किसी भी चीज को हाथ नहीं लगाने वाली और आप भूल रही हैं कि मां के साथ मैंने भी उन्हें बनाने में मदद करी थी.

जुबान तो कतरनी सी चलती है इस लड़की की,अरे लाडली तो तू भी मुझे बहुत है पर  तुझे आलू के पापड़ बहुत पसंद हैं इसलिए मना कर रही थी, अम्मा ने हंसते हुए कहा और मेथी साफ करने में व्यस्त हो गईं.

सुहानी , कुमुद जी की नातिन है जो उनकी बड़ी बहू संगीता की बेटी है, सुहानी जैसा नाम वैसे ही अपनी बातों से सभी के मन को छू जाती थी, मेथी अभी ठीक से बन भी नहीं पाई थी तभी सुहानी के चिल्लाने की आवाज़ आती है,

कुमुद जी सारा काम ज्यों का त्यों छोड़ कर अपने बगल में रखा डंडा उठा कर सीधा सीढ़ियों से ऊपर भागी चली आती हैं,

क्या हुआ??क्यों चिल्ला रही थी.

वाह अम्मा,वैसे तो आपके घुटनों में बहुत दर्द होता है फिर अब कैसे ऊपर भागी चली आईं, सुहानी और उसकी सहेलियों जोर जोर से खिलखिलाने लगीं.

रुक अभी, थोड़ी देर में कुमुद जी बच्चों की तरह सुहानी और उसकी सारी सहेलियों के पीछे डंडा लेकर दौड़ रही थीं,




थोड़ी देर बाद जब सभी थक गए,तो एक जगह छत पर बिछी चटाई पर बैठ गई.

अम्मा,आप एक बात बताओ,बुआ तो आपकी तरह ही खाने पीने की सारी चीजों को बनाने में खूब माहिर हैं,फिर आप ये हर समय , हर मौसम के हिसाब से उनके लिए हर चीज क्यों बनाती हो,क्या आप मेरे लिए भी अपने हाथों से ऐसे ही सारी चीजों को बना कर भेजा करोंगी.

धत्, बित्ते भर की है तू अभी,और बातें अभी से इतनी बड़ी बड़ी…

तेरे ब्याह तक मैं क्या बैठी ही रहूंगी और ये तो हमारे घर की परंपरा है,,मेरी मां भी जब तक थी,मेरे लिए ऐसे ही चीजें बना कर भेजा करती थी, तेरी मां भी खाना बनाने में खूब माहिर है पर तू जब भी अपनी नानी के घर से आती है,तब ढेर सारा सामान भर कर लाती है, न, इसका मतलब ये नहीं कि तेरी मां को ये सब बनाना नहीं आता.

तो बताओ न दादी, ये कौनसी रीत है…सुहानी और उसकी सहेलियां कुमुद जी को घेर कर बैठ गईं.

जब एक बेटी घर से विदा होकर दूसरे घर जाती है तो वह अपने साथ मायके की कई प्यारी यादें, वहां के तौर तरीके, सभ्यता, संस्कार,रीत रिवाज,आचरण सभी अपने साथ लेकर जाती है,फिर वही नया घर उनका अपना घर बन जाता है.

वहां पहुंचकर वह अपने ससुराल के तौर तरीके और रीत रिवाजों,वहां के खान पान की शैली को अपना लेती हैं,बेटी से एक जिम्मेदार बहू का सफर वह चुटकियों में पूरा कर लेती हैं.




अपने स्वाद को भूलकर वहां के स्वाद को अपना लेती हैं, तब ये ये छोटी सी रिवाज उन्हें अपने बचपन, अपने मायके से जोड़े रखती हैं,,

जब भी मौसम के अनुसार हम कोई नई चीज बनाते हैं तो थोड़ा बिटिया के लिए उठा कर रख देते हैं या उसके यहां भिजवा देते हैं,जिससे  वह ससुराल के साथ साथ अपने मायके के खाने का भी स्वाद चख सके, वहां की यादों को महसूस कर सके, समझी बिटिया रानियों,कुमुद जी ने सुहानी और उसकी सहेलियों के कान खींचते हुए कहा.

वाह, अम्मा ये तो बहुत ही प्यारी रिवाज है इसलिए तो आप इस दुनिया की सबसे प्यारी दादी हो ,सुहानी कुमुद जी के गले लग जाती है,,,वहीं सुहानी की मां संगीता जी की आंखों में से आंसू झर झर बहने लगते हैं.

दोस्तों, आज के ज़माने की नई बहुओं,या फिर बेटियों के मन में  कई प्रश्न जन्म लेते हैं कि आखिर क्यों हम अपनी ननद ,,बुआ सास के लिए चीजें बनाएं, क्या उनकी बहुएं नहीं हैं,या वो अपने घर में भी तो बना सकती हैं,,ये रचना बस उसी बात का उत्तर देने के लिए एक छोटी सी कोशिश है, बशर्ते बस बहन बेटियां इस रिवाज का फायदा न उठा कर,,जो उन्हें दिया जा रहा है उस मायके की खुशबू समझ उसे प्रेम और भाव से स्वीकार करें।

उम्मीद करती हूं कि आप मेरी बात से सहमत होंगे ,मुझे अपनी राय नीचे कॉमेंट बॉक्स में जरूर लिखें,,।

#स्वाभिमान 

आपकी दोस्त

वर्षा गुप्ता।

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