बूंद बूंद से घड़ा भरता है – निशा जैन: Moral stories in hindi

अरे सुषमा मैं जब से आई हूं तब से देख रही हूं तेरे घर के ग्लास पर ये क्या लिखा हुआ है

किसी पर एम, किसी पर एन, ई, एस, जे

ये टैंट के ग्लास हैं क्या

अरे नही जीजी ये मेरी बहु की कारिस्तानी है और  पानी और खाने की क्या अहमियत है ये बताने की तरकीब।

 पहले जब ये बात बात पर टोकती रहती तो बहुत बुरा लगता , सोचती कैसी कंजूस , देहाती घर की लड़की मेरे लड़के के पल्ले बंध गई पर अब जाकर समझ आया ये कंजूस और देहाती नही बल्कि पढ़ी लिखी समझदार, मितव्ययी लड़की है जो सोच समझकर सारे काम करती है।

अरे ये गोल गोल क्या बातें बना रही है, कुछ खुलकर बता आखिर बात क्या है कौशल्या ने बड़ी उत्सुकता से पूछा

जीजी जब सुमन ब्याह कर आई तब से ही इसे हमारा खाना जूठा छोड़ना, पानी व्यर्थ बहाना, पूरे घर की लाइटें दिन भर जलाकर रखना पसंद नही था । जब भी ऐसा कुछ देखती टोकती रहती थी और बोलती थी आप सबको पता नही बूंद बूंद से घड़ा भरता है। इसलिए फिजूल खर्ची नही करनी चाहिए 

हमे पैसों की अहमियत समझनी चाहिए 

शुरू में तो इसका बात बात पर टोकना अखरता था…. अपने ससुर जी से पूछती

पापा आपको सब्जी पसंद नही आई ?

नही बेटा सब्जी तो अच्छी बनी है

तो फिर आपने पूरी खाई क्यों नही

अरे पेट भर गया और सब्जी ज्यादा थी तो बच गई

जब बाबूजी ऐसा बोलते तो सुमन मन मारकर चुप हो जाती क्युकी मैं इशारों में इसे चुप रहने को बोलती और बाद में समझाती _ ” बेटा अपने बाबूजी को ऐसे नही टोकते, वो घर के बड़े हैं और तुम बहु । तुम्हारा उन्हें ऐसे पूछना उनको पसंद नही आयेगा।”

पर मां मैं गलत थोड़े ना बोल रही हूं , जूठा छोड़ना गलत बात है और  कितनी जीव हिंसा भी होती है

एक तो व्यर्थ नहीं करने से हम पाप करने से बच जाते हैं दूसरा फिजूलखर्ची से भी। कितने पैसों की बचत होती है आपको पता है ना और फिर बूंद बूंद से घड़ा भरता है आप भी तो जानती हो।

हां बेटा बात तो तू बिलकुल सही बोल रही है पर हमारे यहां  रुपए पैसे की कमी थोड़े ना है, कुछ जूठन बच गई या फेंक दी गई तो कौनसी बड़ी बात है। मैं उसको घमंड से बोलती तो

सुमन अपना सा मुंह लेकर रह जाती।

हां मां मैं जानती हूं हमारा बहुत बड़ा व्यापार है पर समय कब बदल जाए कुछ पता नहीं । इसलिए बचत की आदत हमेशा रहनी चाहिए और हम ही तो बच्चों को सिखाते हैं । जब हम ही ऐसे फिजूलखर्ची करेंगे, सामान व्यर्थ करेंगे तो बच्चे कहां से सीखेंगे?

बात बिलकुल सही है तेरी बेटा…. पर आदत छुटते ही तो छूटेगी…..

एक दिन जब मैं सुबह नल का ताजा पानी भर रही थी तो मटके के बासा पानी को नाली में फेंकने ही वाली थी कि एक फालतू बाल्टी लाकर मेरे आगे रख दी और बोली मां पानी ऐसे ही मत बहाओ, इसमें भर दो, साफ सफाई या कपड़े धोने में काम आ जाएगा। नही तो कूलर में कितना पानी चाहिए , उसमे काम ले लेंगे और सच पूरा दो बाल्टी पानी निकला जब मेने देखा।

  मै मन ही मन सोचने लगी , सच कितना पानी वेस्ट करती हूं मैं ,बहु सही कह रही है । पानी की कितनी कमी है दुनिया में और गर्मियों में तो पानी भी दो दिन छोड़कर आता है। हमे पानी की अहमियत समझनी चाहिए तब से मैने भी बहु की ये आदत अपना ली। तब समझ आया मेरी बहु बड़े काम की है क्युकी जब सब पड़ोसियों के यहां पानी की किल्लत हो जाती पर हमारा काम आराम से चलता रहता, हम पानी बचाकर और जरूरत के हिसाब से जो खर्च करना सीख गए थे। तब समझ आया सच में बूंद बूंद से घड़ा भरता है और हमारी बचाई हुई पानी की कुछ बूंदों ने हमारा काम आसान किया वहीं बचत करने की अहमियत  भी समझाई

   तब तक सुमन खाना लेकर डाइनिंग टेबल पर  आ गई और बोली मौसीजी ये लीजिए गरमा गरम खाना खाइए

   पहला कौर मुंह में डालते ही कौशल्या जी बोली अरे वाह कितनी नर्म , सॉफ्ट रोटी बनी है। बहु क्या मिलाया आज आटे में

कुछ नही मौसीज़ी दूध की भगोनी( जिसके चारों ओर मलाई इकट्ठी हो जाती है) को गर्म पानी से धोकर उससे आटा गूंधा है इसलिए मोयन जैसे टेस्ट आ रहा होगा, सुमन खाना बनाते हुए रसोई से ही बोली।

मै कुछ भी सामान वेस्ट नही करती , मां से पूछो पर हां मां को कंजूस जरूर लगती हूं मैं।

अब आप बताइए मौसीजी मैं कंजूस हूं या काम की …सुमन हंसते हुए बोली

अरे वाह री सुषमा तेरी बहु तो बहुत समझदार है, इसकी मां ने बहुत अच्छे संस्कार दिए हैं इसको स्वभाव से तो मिलनसार है ही काम भी बड़ी चतुराई से करती है।

तू सीख अपनी बहु से कुछ। जरूरी नहीं हम सास ही बहु को सिखाए, बहु भी हमे सिखा सकती है। पढ़े लिखे समझदार बच्चे हैं आखिर नई पीढ़ी के।

हां जीजी अब इसको पन्द्रह साल हो गए , इसने अब भी टोकना बंद नहीं किया पर हमने जूठा छोड़ना और पानी व्यर्थ बहाना कब का बंद कर दिया मतलब बूंद बूंद से घड़ा भरने की अहमियत हमे भी समझ आ गई अब …..सुषमा हंसते हुए बोली।

मां मेरा घर है , मेरे मम्मी , पापा है तो गलती पर टोकूंगी तो सही न …. और आप ही तो कहती हो आदत छूटते ही तो छूटेगी…..सुमन अपनी सास को खाना परोसते हुए और छेड़ते हुए बोली

  हां तू तो अब बहु से बेटी बन ही गई है, मेरे बेटे से ज्यादा ख्याल रखती है मेरा और सिखाती भी रहती है नई नई चीजें….सुषमा सुमन को लाड़ करते हुए बोली

 

  जीजी आरओ से पानी भरते हुए  वेस्ट पानी हो या एसी से निकला वेस्ट पानी सबको सुमन इकट्ठा करके रख लेती है और फालतू कामों में लेती है । सच में बहुत पानी वेस्ट होता है इनमें हमने कभी सोचा ही नहीं। ये तो सुमन आई है तब से हमने पानी और खाने की अहमियत समझ आई है और  बचाना शुरू किया है जो ऐसे ही रोज फैंकने में जाता था कब से ही।

   तब ही सुमन के ससुर जी की आवाज आई बहु एक गिलास पानी तो ले आ

   सुमन उनको पानी देने जाती है तभी कौशल्या जी पूछती है बहु ये ग्लास पर क्या कारिस्तानी की है बता तो….

   अरे मौसीजी ये बच्चे बार बार पानी पीते है और बार बार ग्लास जूठा करते है अब बर्तन तो हमे मांजने पड़ते हैं ना तो मैने सबको बोला अपने अपने ग्लास बनालो, उस पर नाम लिख दो और उसी में ही पानी पियो और कोविड हुआ तब घर पर काम खतम ही नही होता क्युकी ऑफिस , स्कूल सब बंद हो गए थे तब ये आइडिया बहुत काम आया (दोनो सास बहू हंसते हुए) और फिर साबुन , पानी , समय सबकी बचत भी तो होती है। और बचत की क्या अहमियत होती है ये भी कोरोना काल में सबको समझ आ ही गया है।

हम मिडल क्लास फैमिली के लोग बचत की अहमियत जान जाएंगे और बूंद बूंद से घड़ा भरना सीख जायेंगे तो बहुत हद तक खुश रह पाएंगे क्योंकि हम न तो गरीब हैं और न ही अमीर।

गरीबों की तरह हम रह नही सकते और अमीरों के जितनी धन दौलत हमारे पास नही । इसलिए हमे हमारी बचत हमारे रोज़ के खर्चों से ही निकालनी होगी मतलब खाना , पानी, लाइट, गैस , कागज सबकी बचत करने से। और थोड़ा थोड़ा करके ही बड़ी रकम बचत करके जुटानी होगी ।

अब इन आदतों से कोई मुझे कंजूस समझे तो समझे

अरे  बहु ये तो बल्कि समझदारी है जो तुम नई पीढ़ी के बच्चे हमसे ज्यादा जानते हो, समझते हो और हमे भी सिखाते हो । इसे कंजूस नही मितव्यई कहते है जो जरूरत के हिसाब से खर्च करे। और अच्छी आदतें भी अपने बच्चों में विकसित होंगी जब तुम्हे देखकर बड़े होंगे अपनी मां से ही तो सीखेंगे बच्चे … दोनो बहने एक साथ बोली। 

दोस्तों  सुमन की तरह  मुझे भी खाना जूठा छोड़ना कतई पसंद नहीं इसलिए मैं तो बस यही कहूंगी कि…

दाने दाने की अहमियत हमे समझनी होगी

कुछ गलत आदतें अपनी सुधारनी होंगी

जूठा नही छोड़ने की नीति अपनानी होगी

खाना व्यर्थ नहीं गवाएं ये सीख सबको सिखानी होगी

मैने देखा है शादी समारोह में लोग दिखावे और झूठी शान के चलते

जरूरत से ज्यादा पकवान बनवाते, 

फिर चाहे उन्हें नाली में बहाते

पर कितना अच्छा हो गर हम अतिरिक्त भोजन दान कर जाएं

किसी समाज सेवी संस्था या अनाथ आश्रम के बच्चों का पेट भर आएं

इससे अन्न के साथ साथ धन की भी बचत होगी

और आने वाली पीढ़ी ,हमारे बच्चों को भी दाने दाने की अहमियत पता चलेगी

हमारे  लिए जो अन्न कचरे के डिब्बे की शान बढ़ाता

वो ही जब किसी भूखे की भूख मिटाता तो उसे देखकर हमे कितना आनंद आता

किसी दुखी चेहरे पर मुस्कान बिखेर मन मंत्रमुग्ध हो जाता

उनके दिल से निकली दुआ का असर ऐसा होता कि हमारा बिगड़ता काम भी बन जाता।

आप मेरे विचारों से सहमत है तो कमेंट करके जरूर बताएं और मेरा उत्साहवर्धन करना ना भूलें 

   धन्यवाद

निशा जैन

3 thoughts on “बूंद बूंद से घड़ा भरता है – निशा जैन: Moral stories in hindi”

  1. Bahut sundar kahani hai aur sabhi ke liye sikha hai jo haar insaan nye amal log bhi iska amal mye layenge tho bahut kuch chijo ka fayda ho sakta ,khas kar ke aaj ki padhi aur modern yuva pidhi nye.mye lani chaiye ,agar 10% bhi follow karenge tho bhi bas.

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