“ब्लड इज़ ऑलवेज थिकर दैन वॉटर ” – मीनू झा 

यूं तो इस त्योहार में बहन रक्षा का वचन मांगती है और भाई निभाने का वादा देता है,पर प्रिया आज मैं तुमसे कुछ मांगता हूं और वादा कर जो मांगूंगा देगी-प्रिंस अपनी बहन से बोला जो राखी की थाल लिए खड़ी थी।

मैं कुछ समझी नहीं प्रिंस-प्रिया ऊहापोह में दिखी

इन पेपर्स पर अपना पीकू दे दे मुझे प्रिया.. देख मैं लेकर आया हूं,तू इनपर साइन कर दे बस।और मेरा यकीन कर मैं कभी पीकू को तुझसे छीनूंगा नहीं,ना ही तुझसे उसे दूर करने की मेरी कोई मंशा है। मैं सिर्फ भविष्य के लिए ऐसा करना चाहता हूं..ताकि आगे कोई भी परिस्थिति आए,कुछ हो जाए मेरा मन ना बदले,तू समझ रही है ना–प्रिंस लगभग घिघियाते हुए बोला।

दरअसल,पीकू प्रिया का बेटा था।मात्र अट्ठाइस साल की प्रिया की जिंदगी उसे अजीब से मोड़ पर खड़ा कर गई थी।उसकी लव कम अरेंज मैरिज तीन साल पहले बड़े धूमधाम से सुमित से हुई थी।हर दंपत्ति की तरह खुशहाल जीवन जी रहे थे दोनों।फिर लगभग डेढ़ साल पहले उनके जीवन में पीकू आया।छह महीने का ही था पीकू जब सुमित कोरोना की भेंट चढ़ गया। ससुराल वालों को प्रिया  शुरू से ही पसंद नहीं थी तो उन्होंने प्रस्ताव रखा कि पीकू को उन्हें सौंप कर प्रिया मायके लौट जाएं और चाहे तो अपनी जिंदगी की नई शुरूआत कर लें।

प्रिया मायके तो लौट आई पर पीकू को लेकर ही,भला एक तो ठहरा मां का दिल,दूसरा उसके पहले प्यार की निशानी।



मायके में माता पिता और एक छोटा भाई प्रिंस था।पिता की पेंशन पर ही घर चल रहा था। प्रिंस ने अपना होटल मैनेजमेंट पूरा किया ही था,उसकी नौकरी तय हुई कि कोरोना का कहर बरप गया था। यूं तो प्रिया ने भी इंजीनियरिंग किया हुआ था,पर शादी के बाद उसने घर गृहस्थी को प्राथमिकता दी थी।उसके लिए अब भला बिना अनुभव, छोटे बच्चे के साथ और ऐसे विकट समय में नौकरी कहां संभव थी।तो किसी दोस्त की सलाह पर उसने आनलाइन ट्यूटर में ज्वाइन कर लिया.. कुछ ही समय में बहुत तो नहीं,पर इतना कमाने लगी कि पिता की थोड़ी बहुत मदद कर पाए।वैसे भी पूरा घर चाहता था,कि प्रिया की व्यस्तता बढे,ताकि वो जल्दी अपने उलझे मानसिक हालातों से बाहर आ पाए। हमेशा प्रिया से लड़ता रहने वाला भाई,कभी दीदी ना बोलने वाला ना मानने वाला,प्रिंस अचानक से समझदार हो गया था,खुब ख्याल रखता बहन का और “पीकू”… पीकू में तो उसकी जान बसती थी।

अब लगभग दो महीने पहले जब बीमारी से हालात सुधरने लगे तो प्रिंस को भी अपने ही शहर के एक बड़े होटल में नौकरी लग गई थी।सबकी जिंदगी अब एक ढर्रे पर आने लगी,पीकू भी डेढ़ साल का होने चला था।

आज रक्षाबंधन का त्योहार था और दो दिन पहले ही सुमित की बरसी हुई थी तो प्रिया का मन बहुत खराब था। बहुत परेशान थी अंदर ही अंदर और अचानक से प्रिंस का इतना बड़ा प्रस्ताव प्रिया को तो कुछ बोलते ही नहीं बन रहा था।



“ये पेपर्स कोई कानूनी कार्रवाई नहीं,एक औपचारिकता या यूं कह ले मेरे मन की तसल्ली है प्रिया। मैं पीकू को अपना पहला बच्चा मानता हूं और मानता रहूंगा,पर कल किसने देखा है।कल को मेरा परिवार बढे और मेरा मन बदल जाए या कोई बदलने की कोशिश करें तो ये पेपर्स मुझे मेरे प्यार और कर्तव्य की याद तो दिलाते रहेंगे।वैसे ऐसा कभी नहीं होगा ये मुझे पता है।और एक महत्वपूर्ण बात, इतनी छोटी सी उम्र में तेरे साथ ऐसा हादसा हो गया,मुझे पता है तू जीजू की यादों के सहारे जी लेगी, पर अगर कभी किसी मोड़ पर अगर तेरा घर फिर से बसा तो तेरा बच्चा किसी पर बोझ नहीं होगा।कितना भी हम बदलने का दंभ भर लें,पर बहन इस समाज में कल भी पुरूषों की सत्ता थी,अभी भी है….कल क्या होगा नहीं कह सकता।मुझे एक लड़की एक बच्चे के साथ शायद खुशी खुशी स्वीकार कर भी लेगी,पर तुझसे लोग तेरे बच्चे को अपनाने में सौ सवाल करेंगे। और ये सब मैं इसलिए नहीं कर रहा कि मुझे अपनी बहन से सहानुभूति है, बल्कि इसलिए कर रहा हूं क्योंकि मैं उस बच्चे से बहुत जुड़ गया हूं, अंजाना सा बंधन हो गया है हमारे बीच।उससे बहुत प्यार करने लगा हूं।उसकी एक मुस्कुराहट से मेरा दिन बन जाता है,और मुझे पता है वो नादान भी मुझे बहुत प्यार करता है,शायद अपने खोए पिता को पाता हो मुझमें…बोल ना देगी मुझे मेरा गिफ्ट”

प्रिया ने भरी आंखों से प्रिंस से पेपर लिया और साइन कर उसके हाथ में थमा दिया। आंसूओं की झिलमिलाहट में उसे एक बड़ा..पिता सदृश भाई उसके सर पर हाथ फेरता दिख रहा था..जो कभी उसका छोटा भाई हुआ करता था। दोनों भाई बहन के बीच का बंधन आज और भी मजबूत हो चला था। पता ही नहीं चला उसे,उसका छोटा, कब और कैसे इतना बड़ा बन गया ।सच कहते हैं लोग “ब्लड इज़ ऑलवेज थिकर दैन वॉटर”।

अपने_तो_अपने_होते_हैं 

मीनू झा 

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