भूलने की दवाई –  संगीता अग्रवाल

दवाई की दुकान के बाहर निरंजन जी बहुत देर से खड़े थे। भीड़ भी तो बहुत थी दुकान पर । ये बेमौसम की बारिश डॉक्टर और दवाई बेचने वालों की ही तो चांदी करती है । वरना बाकी तो क्या किसान क्या आम इंसान सभी इससे परेशान हो रहे थे। निरंजन जी के लिए जब खड़े रहना मुश्किल हो गया तो वो पास पड़ी कुर्सी पर बैठ गये। अंदर दुकान पर काम करने वाला जीवन उन्हे बहुत देर से देख रहा था पर व्यस्तता के कारण कुछ बोल नही पाया । दुकान का मालिक ग्राहकों से पैसे लेने मे व्यस्त था। 

धीरे धीरे भीड़ छंट गई तब जीवन थके हारे निरंजन जी के पास आया । उनके चेहरे पर बेबसी की लकीरें थी जिसने उन्हे उम्र से ज्यादा बूढ़ा बना दिया था।

” बाबा आप बहुत देर से यहां बैठे है कुछ लेना है क्या आपको लाइये पर्चा दीजिये मैं दवाई लाकर देता हूँ !” जीवन आदर भाव से बोला।

” बेटा …वो …दरअसल !” निरंजन जी झिझकते हुए कुछ बोलने को हुए पर फिर चुप हो गये।

” क्या हुआ बाबा पैसे नही है ? कोई बात नही आप पर्चा दीजिये मैं दवाई लाता हूँ आप पैसे की चिंता मत कीजिये जब हो तब दे जाना !” जीवन बोला।

” नही नही बेटा पैसे तो है मेरे पास पर पर्चा नही है !” निरंजन जी बोले।

” अच्छा …तो आप मुझे दवाई का नाम बता दीजिये !” जीवन बोला।

” बेटा असल मे मुझे भूलने की दवाई चाहिए !” निरंजन जी बोले।




” किसको है भूलने की बीमारी बाबा और कहाँ से इलाज चल रहा है ?” जीवन ने फिर स्वाल किया। 

” ना ना बेटा भूलने की बीमारी नही है काश के होती तो कम से कम वो दिन रात आंसू तो ना बहाती। बेटा तू ये पैसे रख और मुझे कोई ऐसी दवा दे जिससे हम सब भूल जाये !” निरंजन जी रुंधे गले से बोले।

” ओह्ह , पर बाबा आप भूलने की दवाई क्यो चाहते है ओर क्या भूलना चाहते है ?” जीवन हैरान होते हुए बोला।

” बेटा …है तेरी दुकान पर ऐसी कोई दवाई ?.. ये सारे पैसे ले ले तू कहेगा तो ओर भी दे दूंगा बस मुझे भूलने की दवाई ला दे !” निरंजन जी लाचारी से बोले। जीवन उनके चेहरे की लाचारी देख द्रवित हो उठा।

” बाबा आप ऐसा क्यो कह रहे है क्यो खानी है आपको ये दवाई ऐसा क्या है जो आप भूलना चाहते है ?” जीवन नम आँखों से पूछने लगा।

” ना ना मुझे अपनी फ़िक्र नही बेटा मैने तो वैसे भी सब भुला दिया पर उसका दर्द नही देखा जाता। क्या करूँ सात फेरे लिए थे उसके साथ हर सुख दुख मे साथ निभाने का वादा किया था अब उसे तड़पते कैसे देख सकता हूँ मैं इसलिए मुझे भूलने की दवाई दे दे जिससे उसे खिला दूँ ओर वो सब भूल जाये !” निरंजन जी बोले।

” बाबा कौन है ऐसा जिसे आप और आपकी पत्नी भूल जाना चाहते है ?” जीवन जो काफी कुछ समझ रहा था फिर भी उसने पूछा।

” बेटा मेरी पत्नी अपने बच्चो को याद कर करके आंसू बहाती रहती है मैं चाहता हूँ वो ऐसी औलादो को भूल जाये जिन्होंने हमें भुला दिया। उनके पास ना तो फोन पर बात करने का वक्त है हमसे ना ही हमसे मिलने आने का । बच्चो को बड़े शहर पढ़ने भेजा था पर बड़ा शहर ऐसा रास आया कि माँ बाप की जरूरत भी खत्म हो गई अब अपना परिवार बना लिया पर उस परिवार के स्तम्भ माँ बाप जो जर्ज़र हो चुके उन्हे भुला दिया अब तो ऐसा लगता है ये भूलने की दवा ना मिली तो जहर लेजाकर देना पड़ेगा उसे ओर खुद भी खाना होगा !” निरंजन जी फूट फूट कर रोते हुए बोले।

” बाबा ऐसा क्यो बोलते हो । उनके पास समय नही तो आप चले जाइये उनके पास !” जीवन उन्हे दिल्लासा देते हुए बोला। 




” बेटा समय कम होता तो भी चलता पर उनके दिल मे ही जब हमारे लिए जगह नही तो क्या फायदा अपनी इज़्ज़त खुद घटाने का । तू बस मुझे दवा दे दे देख तेरी दुकान पर ग्राहक भी आ गये है उन्हे देख तू !” निरंजन जी बोले ।

जीवन दुकान पर वापिस गया और दुकान के मालिक से कुछ कहकर वापिस आ गया। 

” चलिए बाबा मेरे साथ !” निरंजन जी को उठाते हुए वो बोला।

” बेटा दवाई ?” प्रश्नवाचक दृष्टि से वो जीवन को देखते हुए बोले।

” चलिए तो दवाई मैं आपको आपके घर पर ही दूंगा साथ साथ छोड़ भी दूंगा आपको रात घिर आई है !” जीवन बोला। दोनो निरंजन जी के घर आए वहाँ एक वृद्ध महिला एक तस्वीर लिए आँसू बहा रही थी।

” देख बेटा सारा दिन ऐसे ही आंसू बहाती है ये माँ है ना आपने बच्चो से दूरी बर्दाश्त नही होती मैं तो फिर भी खुद को समझा चुका हूँ !” निरंजन जी बोले।

” माँ !” जीवन ने आवाज़ लगाई।

” बेटा तू आ गया !” एकदम से पलटते हुए वो महिला बोली पर सामने जीवन को देख रुक गई।

” जागृति तुझे कितनी बार कहा फेंक दे इन तस्वीरों को वो नही आएंगे ऐसे कुपुत्रो के लिए आंसू बहाना व्यर्थ है !” निरंजन जी बोले।

” वो कुपुत्र हो गये तो क्या मै भी कुमाता हो जाऊं कैसे उन्हे भूल जाऊं जिन्हे अपनी छाती से लगा पाला है !” जागृति जी रोते हुए बोली।

” माँ क्या जिस बेटे को जन्म दो वालो वही अपनी संतान होते है ?” जीवन जागृति जी का हाथ पकड़ कर बोला जाने क्या बात थी उस स्पर्श मे कि जागृति जी के मन मे ममता हिलोरे लेने लगी वैसे भी ममता अपने पराये मे अंतर कहाँ देखती है। 




” बेटा तू कौन है ?” जागृति जी उसके सिर पर दूसरा हाथ फेरते बोली।

” बेटा भी बोल रही हो और परिचय् भी पूछ रही हो !” जीवन जो कि खुद अनाथ था नम आँखों से बोला।

” बेटा वो ठीक है पर तुम यहां इनके साथ !” जागृति जी निरंजन जी को देखते हुए बोली।

” माँ उन्हे क्या देख रही हो भूख लगी आपके बेटे को खाना नही खिलाओगी ?” जीवन बोला। 

” हाँ क्यो नही !” ये बोल जागृति जी फटाफट रसोई मे चली गई उनके पैरो मे एकदम से फुर्ती भी आ गई थी।

” बेटा आज कितने समय बाद इसे खुश देखा है जब हमारे बेटे आते थे तब ऐसे ही भाग भाग कर उनके लिए खाना बनाती थी अब तो बस किसी तरह कुछ बन जाता है !” निरंजन जी बोले।

” बाबा एक बात कहूं !” जीवन बोला।

” हाँ बेटा बोलो।” 

” बाबा किसी को भूलने की कोई दवाई नही होती मेरे खुद माता पिता कई साल पहले मुझे छोड़ गये पर मैं आज तक नही भूला उन्हे अगर कोई दवाई होती ऐसी तो मैं खुद ना खा लेता !” जीवन रोते हुए बोला।

” ना बेटा रो मत …पर जब ऐसी कोई दवाई है ही नही तो तू यहाँ क्यो आया !” निरंजन जी हैरानी से बोले।

” बाबा जब आपके मुंह से सुना माँ बच्चों को याद करके रोती है अपने तो अपनी माँ की याद आ गई सोचा क्यो ना एक ममता के सागर के पास जा ये अनाथ भी थोड़ा तृप्त हो जाये वैसे भी भूलने की दवाई हो ना हो प्यार हर दर्द को कम कर सकता है …है ना बाबा !” जीवन उनके कदमो मे बैठ बोला।

” माँ बाबा भी बोल रहे हमें और खुद को अनाथ भी बोल रहे हो !” तभी जागृति जी वहाँ खाने की प्लेट लाती हुई बोली।




” माँ वो …!” जीवन को समझ नही आया क्या बोले।

” ले बेटा खाना खा पहले फिर हमें अपने बारे मे बता !” निरंजन जी बोले। जागृति जी उसे अपने हाथ से खिलाने लगी । उनकी आँखों मे निरंजन जी को वही चमक दिखी जो बचपन मे अपने बच्चो को खिलाते आती थी। कैसा अद्भुत होता है माँ का प्यार जो अनजान पर भी लुटा देती है वो । कहने को जीवन का जागृति जी से कोई रिश्ता नही पर उन्हे देख कोई कह सकता था ऐसा। 

” मां आज सच मे आत्मा तृप्त हो गई बहुत बदनसीब है आपके बच्चे जो असली सुख से मुंह मोड़े है । मेरे माता पिता को गये चार साल हो गये मुझे पता है मैं उनके लिए कितना तड़पता हूँ । पत्नी बच्चे सब है घर मे पर उनकी कमी कोई नही भर पाता । आज बाबा ने जब आपके बारे मे बताया मैं खुद को रोक नही पाया एक माँ का आशीर्वाद लेने से आपके हाथ से खाना खाकर लगा मुझे मेरी माँ ने खिलाया है !” जीवन ये बोल रोने लगा। जागृति जी ने उसे अंक मे भींच लिया अपने । एक अनजान रिश्ता मजबूत डोर से बंध सा गया था जहा एक औलाद को तरसती मां थी एक था माँ के प्यार को तरसता बच्चा दोनो ने एक दूसरे की कमी को भरकर खुद की कमी को भी भर लिया था।

” बेटा घर पर तेरा इंतज़ार हो रहा होगा बहुत देर हो गई !” निरंजन जी उन्हे अलग करते हुए बोले।

” जी बाबा माँ चलता हूँ मैं !” आँखे पोंछता हुआ जीवन बोला।

” फिर कब आएगा बेटा बहू और बच्चो को भी लेकर आना !” जागृति जी बोली और जीवन ने उनके और निरंजन जी के पैर छु विदा ली।

” बेटा तुम्हारे कारण आज जागृति इतने समय बाद मुस्कुराई है आज मैने उसकी आँखों मे औलाद के लिए तड़प नही देखी शुक्रिया जो तुम यहां आये कुछ पल के लिए ही सही उसका दुख तो कम हुआ !” बाहर आ निरंजन जी बोले।




” बाबा आज मैने भी बरसो बाद माँ बाप का प्यार पाया है तो शुक्रिया तो मुझे बोलना चाहिए और आपको जो दवा चाहिए वो दवा यही है प्यार …माँ को प्यार की जरूरत है मुझे ममता की हम दोनो एक दूसरे की ये कमी पुरी करेंगे । इस बेटे पर भले उनके जैसा पैसा नही पर माँ बाप की जरूरत बहुत इसे !” जीवन भावुक हो बोला।

” जीते रहो बेटा …जीते रहो भगवान तुम्हे हमेशा खुश रखे इन बूढ़े बुढ़िया के बारे मे जो तुमने इतना सोचा !” जीवन को गले लगा निरंजन जी बोले।

उसके बाद उन लोगो का रिश्ता मजबूत रिश्ता बन गया जीवन को जब फुर्सत मिलती मिलने आ जाता परिवार को भी लाता। कुछ समय बाद निरंजन जी ने अपने घर का ऊपर का हिस्सा जो बच्चो के लिए बनवाया था वो जीवन को किराये पर दे दिया क्योकि जीवन किराये के घर मे ही रहता था अब दोनो परिवार एक परिवार बन चुके थे। जहाँ दिलो मे प्यार और सम्मान था जहाँ बड़े बोझ नही थे ।

दोस्तों आपको ये कहानी फिल्मी लग सकती है पर ये एक सच्ची कहानी है । ये सच है बच्चे तरक्की करने माँ बाप से अलग होते है पर क्या माँ बाप को दिलो से अलग करना सही है । फोन करने पर व्यस्तता का बहाना बनाना छुट्टी मिलने पर माँ बाप से मिलने जाने की जगह हिल स्टेशंस या विदेश घूमने निकल जाना सही है । माँ बाप की दुआओ से मुकाम पा उन्हे भूल जाना सही है। यहाँ कुछ लोग कहेंगे बेटे ऐसे नही होते …उनके लिए जवाब है मेरा कुछ बेटे ऐसे भी होते है मैने खुद देखा है ऐसे बेटों को । जीवन बहुत छोटा है इसमे जितना माँ बाप का प्यार पा सको पा लो जितना उन्हे खुश रख सको रखो कही ऐसा ना हो कल तुम्हारे पास वक़्त हो पर माँ बाप ना हो। माँ बाप की कीमत एक अनाथ से पूछो जाकर।

#जन्मोत्सव

आपकी दोस्त 

संगीता अग्रवाल ( स्वरचित )

साहित्य जो दिल को छू जायें के लिए

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