भरोसा माॅ॑ का! – प्रियंका सक्सेना

“तुम्हें कुछ खबर भी है, कहां जाता है तुम्हारा बेटा?” रामेश्वर जी ने शांता जी से कहा

” अरे,आप क्यों परेशान हो रहे हैं। आता ही होगा। गया होगा किसी दोस्त से मिलने। अरे हाॅ॑! याद आया ग्रुप प्रोजेक्ट कर रहें हैं साथ में बच्चे।” शांता जी बोली

” समझा करो शांता। रोहन बड़ा हो गया है। कहीं किसी गलत संगत में न पड़ जाए।” रामेश्वर जी बोले

शांता जी ने कहा,” वो ही तो मैं आपसे कह रही हूॅऺ। बच्चे जब बड़े हो जाएं तो उनसे दोस्त की तरह व्यवहार करना चाहिए। हर समय पूछना या टोकना ठीक नहीं है। हमें अपने बेटे पर भरोसा करना चाहिये।”

रामेश्वर जी बोले,” साथ में हमें आंख और कान भी खुले रखने चाहिए। यही उम्र होती है जब आसानी से बाहर की दुनिया की चमक धमक में युवा खो जाता है।”

“हाँ, तो ठीक है आप पूछ लेना उससे।  मुझे पूरा भरोसा है रोहन पर कि वो कहता है तो कुछ कार्य अवश्य होगा। ” शांता जी बोली

आप समझ ही गए होंगे, यहां रामेश्वर जी और शांता जी अपने सुपुत्र रोहन की बात कर रहे हैं। रोहन स्थानीय कॉलेज में एम एस डब्लयू  यानि मास्टर इन सोशल वर्क्स का विद्यार्थी है। पढ़ने में तीव्र बुद्धि का रोहन सभी की मदद करने में सदैव तत्पर रहता है।  सुबह रोहन कॉलेज जाता है। वहाँ से चार बजे तक आता है।

कुछ दिनों से रोहन शाम को छह बजे घर से जाता है और करीबन दो घंटों में वापस आता है। रामेश्वर जी ने पूछा तो रोहन ने बताया था कि एक ग्रुप प्रोजेक्ट के लिए वह अपने तीन और बैचमेट्स के साथ वर्क कर रहा है। इसके लिए सभी एक दोस्त के घर मिलकर कार्य कर रहे हैं।



रामेश्वर जी और शांता जी इसी बारे में बात कर रहे हैं।  रामेश्वर एक व्यावहारिक व्यक्ति हैं परन्तु उनकी शंका का समाधान शांता जी ने रोहन पर पूर्ण भरोसा जता कर किया।

घड़ी की सुई आठ पर आ गई। इतने में रोहन घर आ जाता है।

रोहन‌ के घर आने के बाद रामेश्वर जी और शांता जी ने उससे कैसे बात की?

शांता जी का भरोसा सही निकला या रामेश्वर जी की चिंता।

रोहन आखिर शाम को क्या करने जाता है?

यह सब बातों के उत्तर के जानने से पहले कुछ बातें करने का मन कर गया आप लोगों से यानि मेरे सुधि पाठकों से – दोस्तों, आप अपनी राय बताइए कि आप इन परिस्थितियों में होते तो अपने बच्चे, खास तौर से युवा होते बच्चों से आप किस तरह व्यवहार करते?

१) सख्त माता-पिता का जहां बच्चे आपसे सिर्फ डरें और मन की बातें न बता सकें।

२)ओवर फ्रेंडली माॅम डैड का जहां आप इतना खुल जाएं बच्चे से कि वह सब कुछ शेयर करें पर आपकी नसीहत या सीख की उसकी नज़रों में कोई वैल्यू नहीं रहे।

३)या दोनों के बीच का संतुलित वाला जिसमें बच्चे आपसे खुलकर बातें बता सकें, आप उनसे पूछ सकें और साथ में आपकी सीख को भी मानें, अपना मत भी बच्चें रख सकें।

आप अपनी राय कमेंट सेक्शन में साझा कीजिए 



ज्यादा समय ना लेते हुए अब कहानी को आगे बढ़ाती हूॅ॑…

घड़ी की सुई आठ पर आ गई। इतने में रोहन घर आ जाता है। शांता जी पानी लेकर आती हैं।

वह कहती हैं,” कपडे बदल कर खाना खाने आ जाओ, बेटा।”

“मम्मी, मैं बस दो मिनट में आया। ” रोहन फटाफट हाथ मुँह धोकर डाइनिंग टेबल की कुर्सी खींचकर बैठ जाता है।

पापा से पूछता है, ” पापा आप आज टीवी नहीं देख रहे हैं।”

रामेश्वर जी कुछ कहते इससे पहले शांता  कहती हैं,” आज हम लोग बातें कर रहें थें। “

खाना खाते हुए रोहन पूछता है ,” क्या बातें, मम्मी?” रामेश्वर जी कहते हैं ,” खाना खा लो, कॉफ़ी पीते हुए बात करते हैं। “

” ठीक है ,पापा।”खाने के बाद रोहन डलगोना कॉफ़ी बना कर लता है।

रामेश्वर जी रोहन से हाथ से कॉफ़ी लेकर कहते,”बेटा , मैं कई दिनों से एक बात तुमसे पूछना चाहता हूँ।  आशा है, तुम सच सच बताओगे।

“पापा का हाथ अपने हाथ में लेकर रोहन बोला, “बताइये पापा क्या बात है।  आप परेशान क्यों हैं ?”

” रोहन, ये तुम दो घंटे के लिए जो जाते हो हर शाम करीब एक महीने से।  क्या चल रहा है? ऐसा कौन सा प्रोजेक्ट है, हमें भी बताओ। “



रोहन ने कहा,”पापा, इस के बारे में आज मैं आप दोनों को बताने ही वाला था। हम चार दोस्त हैं।  रोज़ाना शाम को हम चारों कच्ची बस्ती के बच्चों को पढ़ाने जाते हैं।  इसके लिए हमें उनकी बस्ती के पास ही एक कमरा एक भले सज्जन ने दे दिया है।  शुरू में करीब एक दो बच्चे ही आये।फिर हमने घर घर जाकर बच्चों के माता पिता को समझाया। मुश्किल तो हुई पर अब करीब पंद्रह बच्चें आने लगे हैं। “

शांता जी बोली,” देखा, मैंने कहा था न रोहन गलत काम नहीं कर सकता है। “

जुगल किशोर जी बोले, ” सही कहा तुमने शांता। रोहन, ये तो तुम लोग बड़ा अच्छा कार्य कर रहे हो। घर पर क्यों नहीं बताया। “

रोहन ने कहा,” पापा, शुरुआत में लगा कि हम सोच तो रहें हैं पर यदि बच्चे ही नहीं आए या उनके माता-पिता को हम राजी न कर पाए। हम यह काम अपनेआप से करना चाहते थे। अब बच्चे आने लगे हैं तो हम सब अपने घर में बताते। “

रामेश्वर जी ने पूछा,”बेटा, तुम लोगों ने जो यह सकारात्मक पहल की  है, वह बहुतों के लिए प्रेरणास्रोत बनेगा। वैसे यह विचार कहां से आया तुम लोगों को?”

रोहन ने कहा,”‘पापा, याद है कुछ दिन पहले हम डिनर के लिए रेस्टोरेंट गए थे। वहां पर टेबल क्लीन करने के लिए जो लड़का था वह काफ़ी कम उम्र का था। मैं जब वाशरूम गया तो वह रास्ते में कारीडोर में मिला था। तब मैंने उससे पूछा था कि क्या वह पढ़ा लिखा है? उसने मुझे बताया था कि घर के बुरे हालातों के चलते वह दिन में होटल में काम करता है। दूसरी कक्षा के बाद पढ़ाई छुटा दी गई थी। उसकी बस्ती में ऐसे बहुत बच्चे हैं जो पढ़ाई छोड़कर काम करने पर मजबूर हैं। मैंने उससे कहा कि अगर शाम को पढ़ने को मिले तो क्या वह और अन्य बच्चे पढ़ेंगे? उसने बहुत खुशी से कहा कि वह भी आएगा और दूसरे बच्चे भी। तब फिर हम कुछ चार दोस्तों ने मिलकर यह काम करने का सोचा।”



शांता जी बोली,” अति उत्तम सोच है ,  तुम लोगों की। शिक्षा के उजाले से बच्चों के जीवन में बहुत कुछ बदलेगा। बस एक बात मैं अवश्य कहूंगी रोहन, तुम्हारी पढ़ाई पर असर नहीं पड़ना चाहिए। “

“जी मम्मी। आप बिल्कुल चिंता न करें। मैं आपको शिकायत का मौका नहीं दूंगा। “

रामेश्वर जी बोले,” हमारे लायक कोई काम हो तो बताना। “

“पापा-मम्मी , बाद में इन बच्चों का रेगुलर सरकारी स्कूल में एडमिशन करवाने में और किताब व काॅपी के लिए आपसे मदद लेंगे। “

रोहन की बात सुनकर रामेश्वर जी और शांता जी ने ख़ुशी ख़ुशी कहा,” ज़रूर बेटा, जब कहो।”

दोस्तों , आशा है आपको मेरी यह रचना पसंद आएगी। निगाह रखने के साथ साथ युवा होते बच्चों पर भरोसा करना भी ज़रूरी है। आप अपनी राय कमेंट सेक्शन में साझा कीजिए और यदि ब्लाॅग पसंद आया है तो कृपया लाइक और शेयर कीजिएगा।

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धन्यवाद।

-प्रियंका सक्सेना

(मौलिक व‌ स्वरचित‌)

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