भ्रम एक स्थिति – मधुलता पारे : Moral Stories in Hindi

शहर के  महारानी लक्ष्मीबाई कन्या महाविद्यालय  की निर्वाचन  प्रक्रिया पूरी हो चुकी थी परिणाम  की घोषणा होने वाली थी जैसे ही अध्यक्ष  पद पर निर्वाचित दिग्गजा राणे का नाम घोषित  हुआ पूरा हाॅल तालियों की गड़गड़ाहट  से गूंज उठा। चारों ओर  लड़कियों का हुजूम था। विजय दर्प से खिलखिलाती दिग्गजा को बधाई  देने वालों का तांता लग गया था।

लावण्या भी यह सब देख  रही थी अचानक  उसके कानों में तालियों की गड़गड़ाहट  और तेज हो गई पंद्रह  वर्ष   पहले का अतीत चलचित्र  की भांति उसकी आंखों के सामने नाचने लगा ।चारों ओर लावण्या लावण्या की आवाज  गूंज  रही थी भारी बहुमत  से वह अध्यक्ष  चुनी गई थी।

लावण्या थी ही ऐसी  रूप रंग ज्ञान  बुद्धि  भावना संवेदना का अद्भुत  संगम थी वह। मां उसी काॅलेज  में हिन्दी  साहित्य  की विभागाध्यक्ष  थी ।लावण्या को उनसे पहचान  भर मिली थीपर  शोहरत उसने खुद कमाई  थी।

हर किसी की मदद के लिए  वह हमेशा तत्पर रहती थी। चाहे वह काॅलेज का माली हो या कोई प्यून  या कैंटीन में चाय समोसे सर्व  करने वाला दादा हो  समय-समय पर उनकी छोटी मोटी आर्थिक  सहायता भी कर देती थी।

छात्राओं की वाजिब मांगों को चाहे काॅलेज  परिसर में स्वच्छता का मुद्दा हो मेस या केंटीन में खाने की गुणवत्ता ,स्वच्छ  पेय जल की समस्या हो काॅलेज बसों के रूट को लेकर कोई बात हो मैनेजमेंट  के सामने दृढ़तापूर्वक  पुरजोर  तरीके से अपनी बात रखती थीऔर अक्सर  फैसला  छात्राओं के पक्ष में ही होता था

मुफ्त ताने – रोनिता कुंडू

 महाविद्यालय  तथा अंतरमहाविद्यालयीन वाद-विवाद  प्रतियोगिताओं में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेती और प्रथम स्थान  प्राप्त  करती। 

लावण्या के पिता शहर के प्रतिष्ठित  पुलिस  अधिकारी थे। मां तथा पिता के अगाध   स्नेह  के बीच पली बढ़ीवह उनकी इकलौती संतान  थी। किसी बात  की कोई  कमी नहींथी। लावण्या के चाचा अक्सर  मजाक  में कहतेभैया के बस में हो तो आसमान  के चांद  तारे भी लवी की झोली में डाल दें।

                  काॅलेज का समय सपने जैसा बीत गया। मां की तरह काॅलेज  में अध्यापन  करना उसका लक्ष्य  थाऔर इसके लिए  पी एच डी  करना उसका अगला कदम। इसके अतिरिक्त  कार  चलाकर लंबो ड्राइंग पर निकल जाना उसे बहुत  पसंद  धा। नजर बचाकर  पापा की बाइक  चलाना भी उसका शगल था

वैसे उसकी स्वयं  की एक स्कूटी भी थी जिसे वह बड़े बेमन से चलाती थी।मां  अक्सर  टोकती कभी तो लड़कियों जैसे कपड़े पहना कर कभी मेकअप  भी कर लिया कर पर वह इन हिदायतों को एक कान से सुनकर दूसरे से निकाल देती थी। 

           इन सबके बीच एक बात अच्छी हुई कि पी एच डी में रजिस्ट्रेशन  हो गया और अपने लक्ष्य  कीओर लावण्या के कदम  एक सुबह पापा के मित्र शर्मा अंकल लावण्या के लिए अपने एक मित्र  के इकलौते पुत्र  का रिश्ता लेकर  आए पिता ने सुनते ही बात खारिज  कर दी अभी 22 की ही तो है पी एच डी भी करना है

उसे  यह शादी के लिए  सही वक्त  नहीं है शर्माजी बोले यही सही वक्त  है कभी तो उसकी शादी करोगे पढ़ा लिखा नौकरीपेशा परिवार  है लड़का बैंक में अधिकारी है माता पिता  दोनों ही अच्छी नौकरी में हैं वे लोग लावण्या की पढ़ाई  में कोई  रोक नहीं लगाएंगे शाम को घर आओ मैंने उन लोगों को बुलाया है। उसी संध्या को लावण्या के माता पिता बड़े अनमने मन से  शर्माजी के घर गए  पर रात को जब वापस  आए  तो दोनों के सुर बदले हुए  थे।सुमित  उन दोनों को बहुत पसंद  आया था

प्यार है,भेदभाव नहीं – विभा गुप्ता

उनकी बातें सुनकर  लावण्या को लगा जैसे सुमित  से बढ़कर   अधिक  सुन्दर  और समझदार  लड़का दुनियाभर  में दूसरा नहीं है। वास्तव  में  सुमित लगभग छः फुट काबेहद खूबसूरत  नौजवान  था लावण्या के बिल्कुल  अनुरूप।  मिलना जुलना हुआ  धीरे धीरे उसे भी सुमित  भाने लगाऔर एक शुभ  मुहूर्त  मेंदोनों  का विवाह  हो गया। तीन महीने का समय  पलक  झपकते बीत गया

एक  ही शहर में मायका ससुराल होने के कारण जब भी उसका मन होतासुमित उसे वैशाली नगर माता पिता के पास  छोड़ भी आताऔर ले भी आता ।कभी कभी वह स्वयं भी चली जाती थी । 

उस दिन रविवार  था सुमित  सो रहा था पापा मार्निग  वाॅक के लिए  गए थे   मम्मी किचन में थीं लावण्या  बाथरूम  से निकली ही थी कि फोन की घंटी बजी उसके पापा का फोन था उसे घर बुला रहे थे क्योंकि  उन्हें जरूरी सरकारी काम की वजह से शहर से कुछ दिनों के लिए  बाहर जाना था।लावण्या पांच मिनिट  में तैयार  हुई और तेजी से बाहर  जाते हुए मम्मी को वैशाली नगर जाने की सूचना दीतथा बिना अनुमति की प्रतीक्षा किएसुमित की बाइक स्टैंड से निकालने लगी

उसकी आवाज  सुनकर मम्मी किचन से बाहर  आईं।उसके  बाहर आने जाने पर  किसी प्रकार  की रोक टोक  नहीं थी इसलिए  लावण्या भी ज्यादा अनुमति के फेर में नहीं पड़ती थी। पर मम्मी इस बार कुछ अधिक  सतर्क  थीं कुछ दिनों से  लावण्या  की चाल तथा व्यवहार  पर मम्मी की नजर थी उनकी अनुभवी आंखों ने कुछ ताड़ लिया था इसीलिए  आवाज  पर जोर देकर उन्होंने टोका बेटा  बाइक से मत जाओ सुमित  तुम्हें छोड़ आएगा

पर जाने की जल्दी में लावण्या ने कहाआज छुट्टी  का दिन है। सुमित को सोने दीजिए  और तेजी से  बाइक  स्टार्ट  कर सड़क पर दौड़ा दी। उसके जाने केलगभग  डेड़ घंटे बाद   लावण्या के पापा का फोन आयाकह रहे थे जल्दी आइए  हम लोग  सुधा नर्सिंग  होम में हैं जिसका डर था वही हुआ मम्मी की आशंका सही निकली।

“भेद नजर का” – डॉ अनुपमा श्रीवास्तवा

सुमित  तथा उसके माता पिता जब तक नर्सिंग  होम पहुंचे तब तक आशा निराशा मेंबदल चुकी थी लावण्या बिस्तर  पर निढाल  पड़ी थी। दर्द की लकीरें रह रह कर उसके चेहरे पर आ जा रही थीं ।सब उसके पास थेपर उसकी तकलीफ कम करना किसी के हाथ में नहीं था।

नर्सिंग होम  से छुट्टी मिलने पर  लावण्या वैशाली नगर में ही रह गई उसके पिता दो दिन  बाद  ही पूर्व  निर्धारित कार्यक्रम  के तहत दौरे पर निकल गए और पापा जो उस दिन गए  तो फिर लौटकर  नहीं आए उनका पार्थिव शरीर  ही आया एक नक्सली हमले में वे शहीद हो गए। अब तो जैसे लावण्या और उसकी मां पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। सुमित  तथा उसके परिवार  ने दोनों को भरसक संभाला। इस दुख की घड़ी में सुमित रात दिन लावण्या के साथ रहा।

धीरे धीरे गहमा गहमीं थोड़ी कम हुई  सारे नाते रिश्तेदार  लौट गए घर में केवल मां तथा लावण्या ही रह गए।  पिता की यादें बार बार  विचलित  कर रही थीं लावण्या शारीरिक  तथा मानसिक  दोनों कमजोरियों से जूझ रही थी सुमित  ने उसे बहुत  समझाने की कोशिश  की पर वह घने अवसाद में डूब गई  थी

इतनी हंसमुख हर दुख और परेशानी को धुएं में उड़ाने वाली लड़की बिल्कुल बुझ गई  थी। मां ने सबके समझाने पर काॅलेज जाना  शुरू कर दिया था।सुमित  ने दबी जुबान  से लावण्या को घर चलने के लिए बोलना शुरू कर  दियापर वह मां को छोड़कर  किसी भी तरह कहीं भी जाने के लिए  तैयार  नहीं हुई।

  सुमित  के मम्मी पापा ने भी लावण्या की मां से बात कर  उसे घर  जाने के लिए  राजी करने के लिए  कहा मां भी इसी पक्ष में थी कि लावण्या अपने घर जाएपर वह किसी भी तरह अपनी मां को अकेले छोड़कर  सुमित  के घर  जाने को राजी  इसी बीच सुमित  का तबादला मुंबई  हो गयाउसका जाना जरूरी था इसलिए  वह चला गया

खिलौनों में भेदभाव कैसा – प्रीती वर्मा

फिरभी वह अक्सर  छुट्टी लेकर  आता  लावण्या को मनाने का प्रयास करता लवी मेरे साथ  मुंबई  चलो अपने घर चलो कब तक यहां रहोगी। मां से भी कहता मैं भी आपका बेटा हूं स्वैच्छिक  सेवानिवृति ले लीजिए और हमारे साथ  रहिए पर मां बेटी दोनों ही अपने घर से दूर  जाने के लिए  तैयार  नहीं थीं। यहां की एक एक ईंट में पिता की यादें बसी हैं मैं और मां कैसे ये घर छोड़ दें। सुमित  के माता पिता ने सब कुछ सुमित  पर ही छोड़ दिया था

आखिर  थक हार कर सुमित  ने भी  उसकी जिद से समझौता कर लिया   नौकरी के कारण बार बार  उसका यहां लावण्या के पास  आना भी संभव नहीं था मां भी समझा समझा कर हार गई  थी ।उधर सुमित के माता पिता भी अपने बेटे के कारण  बहुत  दुखी थे वे उसे अकेला छोड़ना नहीं चाहते थे

इसलिए  पिता ने बैंक  से वी आर एस ले लिया और मां एक प्राइवेट  स्कूल  में प्रिंसीपल  थीं तो उन्होंने नौकरी ही छोड़ दी और दोनों  मुंबई  शिफ्ट  हो गए। धीरे धीरे सुमित  का आना कम हो गया  फिर बंद हो गया   और बाद  में तो फोन भी आना एक औपचारिक ता रह गई।

लावण्या ने कई बार  फोन करने की कोशिश  की हर बार फोन स्विच्डऑफ ही मिला।इसी प्रकार  जिन्दगी चल रही थी कि एक दिन  लावण्या की बचपन की सहेली स्वाति उससे मिलने आई दोनों ने स्कूलिंग  साथ की थी फिर पिता का ट्रान्सफर  होने के कारण  स्वाति दूसरे शहर चली गई  थीअब  इस शहर में बैंक 

में नौकरी लगने पर जब वह यहां आई तो सबसे पहले उसे लावण्या ही याद आई।जब दोनों मिलीं तोबहुत देर तक पुरानी यादों में ही डूबी रहीं।स्वाति के शब्द  जैसे मरहम का काम  कर रहे थे। जब तक सुमित  थातब तक लावण्या ने उसकी उपस्थिति को अत्यन्त  सहजता से लिया थाऔर आज जब वह नहीं थातो शिद्दत  से उसे याद कर रही थी।

सर्वगुण संपन्न – शुभ्रा बैनर्जी 

स्वाति के सामने उसने पूरा मन हल्का  कर दिया था। मां के कहने पर किराया देने की शर्त  पर स्वाति लावण्या के घर के एक कमरे में रहने के लिए तैयार  हो गई  ।घर काफी बड़ा और सर्व  सुविधायुक्त  था इसलिए  किसी को कुछ भी दिक्कत  नहीं हुई। मां चाहती थी कि लवी  अपने अवसाद से बाहर  निकले

इसलिए  उन्होंने स्वाति की किराये की शर्त भी मान ली।स्वाति ने पूरे तन मन से लावण्या को इस स्थिति से उबारने के लिए  कमर कस ली।धीरे धीरे उसने लावण्या को पहले की स्थिति में लाने का प्रयास  कियाउसे पी एच डी पूरी करने के लिए  समझाया। सुमित  तथा उसके परिवार  के बारे में पता लगाया उसके बैंक  में फोन लगाया

तो पता चला कि उसने बैंक  की नौकरी छोड़ दी है। सुमित  के माता पिता तो पहले ही उसके पास  चले गए  थे स्वाति ने उनके घर जाकर  पता किया तो ज्ञात हुआ कि अपना घर भी उन्होंने बेच दिया है।अब तो परिस्थिति सेसमझौता  करने के अतिरिक्त  कोई चारा नहीं था एक शर्मा अंकल  बीच की कड़ी थे तो वेभी यू के  अपने  पुत्र  के पास  चले गए  थे ।

समय अपनी गति से चल रहा था  ।लावण्या अब डाक्टर  लावण्या बन गई  थी  तथा महारानी लक्षमी कन्या महाविद्यालय  में व्याख्याता बन गई  थी।  मां बेटी दोनों  की अपनी व्यस्त ता थी पर दोनों के मन की रिक्त ता का कोई इलाज  नहीं था। मां को रात दिन  लवी की चिन्ता सताती थी उन्हें रात रात भर नींद नहीं आती थी जानती थींलवी कहती कुछ  नहीं है

पर उसकी जिन्दगी में सुमित  का स्थान कोई नहीं ले सकता है अब तो स्वाति भी साथ नहीं है चार साल  रहकर वह भी चली गई  आज वह भी अपनी नौकरी घर गृहस्थी  मेंव्यस्त हो गई  है संवाद का साधन बस फोन ही हैवह भी अब सीमित  है।पर जब वह यहां से गई  थी तो जाते जाते मां को एक बात बता गई  थी कि सुमित  सुदूर अमेरिका में बस गया हैउसके माता पिता भी उसके साथ  हैं 

तुम्हे क्या पता…..?   – उषा भारद्वाज

 शायद उसने वहां विवाह  भी कर लिया है ।मां ने यह बात  लावण्या को नहीं बताई  थी  वह अंतरमन से चाहती थी कि सब कुछ  भूलकर  लावण्या अपनी जिन्दगी में आगे बढ़े  पर  उसकेभ्रमजाल से निकालने का कोई रास्ता उन्हें नजर नहीं आ रहा था। 

लावण्या पता नहीं कब तक  अपने अतीत में खोई रहती किअचानक अंग्रजी विभाग कीसुनिधि भट्टाचार्य  ने  लावण्या को झकझोरा  लावण्या कहां हो तुम चलो बड़ी थकान  लग रही है कार्यक्रम  समाप्त  हो गया है चलकर कैंटीन में चाय पीते हैं।लावण्या अचानक  सपने से जागीलगा जैसे सुमित  कह रहा है कब तक यहां रहोगी लवी अपने घर चलो।

      -मधुलता  पारे

       भोपाल   म.प्र.

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!